गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुए पहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया। अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया -क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा – हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़क गए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े।
गांव वाले दुविधा में पड़ गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें। उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा – अरे, मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहे हैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा – देखिए, आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़ और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए। उनका घमंड चूर-चूर हो गया।
smt. Ajit Gupta
09/01/2013 at 5:19 अपराह्न
कुछ ऐसे ही ज्ञानी है इस दुनिया में।
सदा
09/01/2013 at 5:43 अपराह्न
बहुत ही अच्छी बोध कथा … आभार आपका
Dr. Monika C. Sharma
09/01/2013 at 7:33 अपराह्न
ऐसा भी है….
purshottam sharam
09/01/2013 at 8:08 अपराह्न
bahut sunder
डॉ टी एस दराल
09/01/2013 at 8:16 अपराह्न
जो ज्ञान न बंटे , वह किस काम का।
देवेन्द्र पाण्डेय
09/01/2013 at 8:32 अपराह्न
आज के संदर्भ में प्रासंगिक बोध-कथा।
Kailash Sharma
09/01/2013 at 10:28 अपराह्न
बहुत सुन्दर बोध कथा…
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
10/01/2013 at 10:49 पूर्वाह्न
बिलकुल ठीक, ऐसे महाज्ञानियों की ज़रूरत किसे है!
Anita (अनिता)
10/01/2013 at 11:34 पूर्वाह्न
अच्छी कहानी!:)ज्ञान इस तरह बाँटने की ज़रूरत नहीं होती …. वो तो किसी के आचार-विचार व व्यव्हार से ही झलक जाता है …~सादर!!!
संगीता स्वरुप ( गीत )
10/01/2013 at 12:20 अपराह्न
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 10 -01 -2013 को यहाँ भी है …. सड़कों पर आन्दोलन सही पर देहरी के भीतर भी झांकें…. आज की हलचल में…. संगीता स्वरूप. .
संगीता स्वरुप ( गीत )
10/01/2013 at 12:22 अपराह्न
ज्ञानी को स्वयं पता नहीं कि किससे कब और क्या बोलना चाहिए …. ऐसे अहंकारी अकेले ही रह जाते हैं ।
Virendra Kumar Sharma
10/01/2013 at 12:23 अपराह्न
बहुत बढ़िया है सुज्ञ जी .बधाई इस बोध कथा के लिए इसीलिए कहा गया है पढ़े से गुणा (गुणी व्यक्ति )अच्छा होता है .
रेखा श्रीवास्तव
10/01/2013 at 2:09 अपराह्न
बहुत सुन्दर बोध कथा . जो ज्ञानी होते हैं वे तो इस बात का भान होने ही नहीं देते हैं बल्कि उनके ज्ञान से जब हमें सन्देश मिलता है तब उनके ज्ञान को हम जान पाते हैं।
Amrita Tanmay
10/01/2013 at 5:48 अपराह्न
बहुत-बहुत सुन्दर..
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
10/01/2013 at 9:13 अपराह्न
प्रेरक बहुत अच्छी बोध कथा …आभार recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए…
प्रवीण पाण्डेय
11/01/2013 at 9:31 पूर्वाह्न
सच कहा आपने, ज्ञान संवाद का विषय है, प्रदर्शन का नहीं।
Anju (Anu) Chaudhary
11/01/2013 at 5:40 अपराह्न
रोचक प्रसंग
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
11/01/2013 at 9:44 अपराह्न
नए सन्दर्भ में बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है आपने पुरानी कथा को!!
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार
14/01/2013 at 4:25 पूर्वाह्न
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥♥सादर वंदे मातरम् !♥♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿ मायावी ज्ञान के रूप में अच्छी बोध कथा आपने प्रस्तुत की है आदरणीय सुज्ञ जी …वैसे , इधर हम एक चुटकुला बचपन से कहते-सुनते आए हैं । इसमें ज्ञानी पुरुष के स्थान पर नेता है … # जब आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं और # जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो… मेरी क्या आवश्यकता है? के बाद यह होता है कि "गांव वाले तय करते हैं कि आधे कह देंगे हमें पता है ; आधे कह देंगे हमें पता नहीं है ।" ऐसा होने पर नेता यह कह कर सरक लेता है कि जिनको पता है कि मैं क्या कहने वाला हूं , वे लोग उन लोगों को भी बता दे , जिनको पता नहीं है कि मैं क्या कहने वाला हूं । :)) हार्दिक मंगलकामनाएं …लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर ! राजेन्द्र स्वर्णकार ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
14/01/2013 at 8:06 पूर्वाह्न
वाह!
कविता रावत
15/01/2013 at 8:09 अपराह्न
बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..आभार
Ankur Jain
22/01/2013 at 9:56 अपराह्न
बहुत सुंदर कथा…आपके ब्लॉग पर आकर हमेशा कुछ नया और ज्ञानवर्धक जानने को मिलता है।।।
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
22/01/2013 at 11:43 अपराह्न
सुंदर कथा…सटीक अभिव्यक्ति…
अल्पना वर्मा
24/01/2013 at 10:11 पूर्वाह्न
रोचक कथा ..और राजेंद्र जी की टिप्पणी सोने पर सुहागा.
Virendra Kumar Sharma
25/01/2013 at 5:18 अपराह्न
मुबारक ईद मिलादुल नबी ,गणतंत्र दिवस जैसा भी है है तो हमारा हम बदलें इसके निजाम को न रहें तमाशाई .सार्वकालिक प्रासंगिक बोध कथा .
Satish Saxena
01/03/2013 at 2:07 अपराह्न
कहाँ खो गए सुज्ञ जी …आपकी यहाँ ज़रुरत है !मंगल कामनाएं !
सुज्ञ
01/03/2013 at 4:33 अपराह्न
आदरणीय सतीश जी,पिछली 30 जनवरी को मेरे बडे भ्राता का आक्समिक निधन हो गया, अस्तु शोकसंतप्त था. अब कुछ सामान्य हूँ। बस अब आप सभी के साथ इन चौपालों में आना प्रारम्भ करता हूँ। याद करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!