Monthly Archives: दिसम्बर 2010
विज्ञ बनो, अनभिज्ञ नहीं..
गुणों को सम्मान
एक व्यक्ति कपडे सिलवाने के उद्देश्य से दर्जी के पास गया। दर्जी अपने काम में व्यस्त था। उसे व्यस्त देखकर वह उसका निरिक्षण करने लगा, उसने देखा सुई जैसी छोटी चीज को सम्हाल कर, वह अपने कॉलर में लगा देता और कैंची को वह अपनें पांव तले दबाकर रखता था।दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो इस प्रकार रखने का उद्देश्य मात्र यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे। किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उँच-नीच के उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है, अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटकर जुदा करने का कार्य करती है, अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
वह सोचने लगा, कितना गूढ़ रहस्य है। सही ही तो है, लोग भी अपने इन्ही गुणो के कारण उपयुक्त महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें अन्ततः अपमान ही मिलता है
कैंची, आरा, दुष्टजन जुरे देत विलगाय !
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
संतब्लॉगर के आशीर्वाद
(गुरु नानक वाणी की बोध कथा का ब्लॉग रुपान्तरण)
ब्लॉगजगत में एक संत ब्लॉगर, ब्लॉग दर ब्लॉग घूम रहे थे। साथ एक शिष्यब्लॉगर भी था। संतब्लॉगर छांट-छांट कर ब्लॉग्स पर आशीर्वचन – टिप्पणियाँ कर रहे थे। अच्छे विचारों वाले ब्लॉग्स पर आशिर्वाद देते “आपका ब्लॉग उजडा रहे” और दुर्विचारों वाले ब्लॉग्स पर आशिर्वाद देते “आपका ब्लॉग, पोस्ट-दर-पोस्ट से भरा-पू्रा रहे”
शिष्यब्लॉगर को बडा आश्चर्य हो रहा था, उसने पूछा महात्मन् यह क्या? आप बुरे विचार फ़ैलाने वालों को तो पोस्टों से भरने-फूलने का आशिर्वाद दे रहे है, और अच्छे ब्लॉग्स को उजडने का? यह क्या बात हुई गुरूवर?
संतब्लॉगर ने शिष्य को समझाते हुए कहा- वत्स!, अच्छे विचारवान ब्लॉगर कहीं भी जाय, हमेशा अच्छे विचारों का प्रसार ही करेंगे, जब उनके ब्लॉग पर गप्प गोष्ठियां नहीं जमेगी तो वे निश्चित ही दूसरे ब्लॉग्स पर अच्छे विचारों की टिप्पणीयां करेंगे, जिससे अच्छे विचारों का प्रसार चौतरफा होगा। उनका अधिक विचरण सुविचारों को समृद्ध करेगा।
शिष्यब्लॉगर- तो फ़िर दुर्विचारों वाले ब्लॉग्स को अधिक पोस्ट का आशिर्वाद क्यों भंते?
संतब्लॉगर- वत्स!, वे दुर्विचार वाले ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखते रहें, मात्र लिखने में ही व्यस्त रहेंगे। इस तरह उन्हें दूसरे ब्लॉग्स पर कुविचार टिप्पणियाँ करने का समय ही नहीं मिलेगा। न वे विचरण करेंगे न सौजन्यवश सज्जनों को कुसंगत में जाने की मजबूरी रहेगी। जिससे दुर्विचार उनके अपने ब्लॉग तक सीमित हो जाएँगे और उसका प्रसार न होगा, और। जिन पाठको का सद्विचारों से दूर दूर तक कोई नाता न होगा, वे पाठक जाय भी तो क्या। और इस तरह दुर्विचारों का प्रसार व प्रचार भरे पूरे होने के अहंकार में कुंठित हो जाएगा।
शिष्यब्लॉगर, संतब्लॉगगुरू की औजस्वी निर्मलवाणी में छिपी दूरदृष्टि देख नतमस्तक हो गया।
ब्लॉगजगत में स्थान
दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो उद्देश्य यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे, किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटने का, जुदा करने का कार्य करती है अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
ब्लॉगर सोचने लगा कितना गूढ रहस्य है, सही तो है ब्लॉगर भी अपने इन्ही गुणो के कारण उचित महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, ब्लॉगजगत में सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें कोई सभ्य ब्लॉगर महत्व नहीं देता।
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
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ब्लॉगजगत, संतब्लॉगर और आशिर्वाद
लक्ष्य पतीत
यात्री पैदल रवाना हुआ, अंधेरी रात का समय, हाथ में एक छोटी सी टॉर्च। मन में विकल्प उठा, मुझे पांच मील जाना है,और इस टॉर्च की रोशनी तो मात्र पांच छः फ़ुट ही पडती है। दूरी पांच मील लम्बी और प्रकाश की दूरी-सीमा अतिन्यून। कैसे जा पाऊंगा? न तो पूरा मार्ग ही प्रकाशमान हो रहा है न गंतव्य ही नजर आ रहा है। वह तर्क से विचलित हुआ, और पुनः घर में लौट आया। पिता ने पुछा क्यों लौट आये? उसने अपने तर्क दिए – “मैं मार्ग ही पूरा नहीं देख पा रहा, मात्र छः फ़ुट प्रकाश के साधन से पांच मील यात्रा कैसे सम्भव है। बिना स्थल को देखे कैसे निर्धारित करूँ गंतव्य का अस्तित्व है या नहीं।” पिता ने सर पीट लिया……
सार:-
अल्प ज्ञान के प्रकाश में हमारे तर्क भी अल्पज्ञ होते है, वे अनंत ज्ञान को प्रकाशमान नहीं कर सकते। जब हमारी दृष्टि ही सीमित है तो तत्व का अस्तित्व होते हुए भी हम उसे देख नहीं पाते।
गंतव्य की दुविधा
यात्री पैदल रवाना हुआ, अंधेरी रात का समय, हाथ में एक छोटी सी टॉर्च। मन में विकल्प उठा, मुझे पांच मील जाना है,और इस टॉर्च की रोशनी तो मात्र पांच छः फ़ुट ही पडती है। दूरी पांच मील लम्बी और प्रकाश की दूरी-सीमा अतिन्यून। कैसे जा पाऊंगा? न तो पूरा मार्ग ही प्रकाशमान हो रहा है न गंतव्य ही नजर आ रहा है। वह तर्क से विचलित हुआ, और पुनः घर में लौट आया। पिता ने पुछा क्यों लौट आये? उसने अपने तर्क दिए – “मैं मार्ग ही पूरा नहीं देख पा रहा, मात्र छः फ़ुट प्रकाश के साधन से पांच मील यात्रा कैसे सम्भव है। बिना स्थल को देखे कैसे निर्धारित करूँ गंतव्य का अस्तित्व है या नहीं।” पिता ने सर पीट लिया……
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिव्यक्ति के लिए…………
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ब्लॉग मैं लिखता हूँ बस सुमार्ग के लिए
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ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस यकीन के लिए
मानव है तो मानवता की कद्र कुछ कीजिए।