- निराग्रह विचार (अपने विचारों का आग्रह छोड दें)
- सत्य तथ्य स्वीकार (श्रेष्ठ अनुकरणीय आत्मसात करें)
- विवाद उपेक्षा ( विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें)
विनम्रता आपके आंतरिक प्रेम की शक्ति से आती है। दूसरों को सहयोग व सहायता का भाव ही आपको विनम्र बनाता है। यह कहना गलत है कि यदि आप विनम्र बनेंगे तो दूसरे आपका अनुचित लाभ उठाएँगे। जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गज़ब का धैर्य पैदा करती है। आपमे सोचने समझने की क्षमता का विकास करती है। विनम्र व्यक्तित्व का एक प्रचंड आभामण्डल होता है। धूर्तो के मनोबल उस आभा से निस्तेज हो स्वयं परास्त हो जाते है। उल्टे जो विमम्र नहीं होते वे आसानी से धूर्तों के प्रभाव में आ जाते है क्योंकि धूर्त को तो अहंकारी का मात्र चापलूसी से अहं सहलाना भर होता है। बस चापलूसी से अहंकार प्रभावित हो जाता है। किन्तु जहाँ विनम्रता होती है वहाँ तो व्यक्ति को सत्य की अथाह शक्ति प्राप्त होती है। सत्य की शक्ति, मनोबल प्रदान करती है।
विनम्रता के प्रति पूर्ण समर्पण युक्त आस्था जरूरी है। मात्र दिखावे की ओढी हुई विनम्रता, अक्सर असफ़ल ही होती है। सोचा जाता है-‘पहले विन्रमता से निवेदन करूंगा यदि काम न हुआ तो भृकुटि टेढी करूंगा’ यह चतुरता विनम्रता के प्रति अनास्था है, छिपा हुआ अहं भी है। कार्य पूर्व ही अविश्वास व अहं का मिश्रण असफलता ही न्योतता है। सम्यक् विनम्र व्यक्ति, विनम्रता को झुकने के भावार्थ में नहीं लेता। सच्चाई उसका पथप्रदर्शन करती है। निश्छलता उसे दृढ व्यक्तित्व प्रदान करती है।
अहंकार सदैव आपसे दूसरों की आलोचना करवाता है। वह आपको आलोचना-प्रतिआलोचना के एक प्रतिशोध जाल में फंसाता है। अहंकार आपकी बुद्धि को कुंठित कर देता है। आपके जिम्मेदार व्यक्तित्व को संदेहयुक्त बना देता है। अहंकारी दूसरों की मुश्किलों के लिए उन्हें ही जिम्मेवार कहता है और उनकी गलतियों पर हंसता है। जबकि अपनी मुश्किलो के लिए सदैव दूसरों को जवाबदार ठहराता है। और लोगों से द्वेष रखता है।
विनम्रता हृदय को विशाल, स्वच्छ और ईमानदार बनाती है। यह आपको सहज सम्बंध स्थापित करने के योग्य बनाती है। विनम्रता न केवल दूसरों का दिल जीतने में कामयाब होती है अपितु आपको अपना ही दिल जीतने के योग्य बना देती है। जो आपके आत्म-गौरव और आत्म-बल में उर्ज़ा का अनवरत संचार करती है। आपकी भावनाओं के द्वन्द समाप्त हो जाते है। साथ ही व्याकुलता और कठिनाइयां स्वतः दूर होती चली जाती है। एक मात्र विनम्रता से ही सन्तुष्टि, प्रेम और सकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है।
जो मनुष्य, जीव (आत्मा) के अस्तित्व को मानता है, उसके लिए जीवन के लक्ष्य को खोजने की बात पैदा होती है। जो मनुष्य जीव के अस्तित्व को नहीं मानता या मात्र इस भव (मनुष्य जीवन) जितना ही इस जीवन को मानता है तो उसके लिए कमाना, खाना और मज़े (विलास) करना ( Like : ‘Eat, Drink and be merry’) यह बाह्य बातें ही जीवन-लक्ष्य होती है। अगर चिंतक नास्तिक हुआ तो कला, साहित्य, संगीत, सिनेमा आदि को भी अपने जीवन का लक्ष्य मान सकता है। किन्तु यह उच्च कक्षा के नैतिकता सम्पन्न नास्तिक के विषय में ही समझना चाहिए।
इसी प्रकार जिन जीवों को कुछ भी तत्व जिज्ञासा नहीं है, वे जीव भी बाहर के लक्ष्य में ही खो जाते है। ऐसे जीव बहिरात्मा है। वे स्थूल लक्ष्यों को ही अपने जीवन का लक्ष्य समझते है। परन्तु जिन्हें जीव के त्रैकालिक अस्तित्व में विश्वास है, वह चिंतन के माध्यम से अपने जीवन-लक्ष्य का निर्धारण करता है।
वह सोचता है कि जो सामान्य मनुष्य खाने –पीने-विलास में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं, क्या मुझे भी वैसे ही जीवन व्यतीत कर देना है? – ऐसा जीवन तो मात्र मृत्यु के लक्ष्य से ही जिया जाता है। जन्म लेना और भोग-भाग कर मर जाना? यह तो मेरे जीवन का लक्ष्य नहीं हो सकता। अथवा फिर नाम अमर रखने का लक्ष्य भी नहीं हो सकता।क्योंकि उस नाम-अमरत्व का मेरी आत्मा को कोई फायदा मिलना नहीं है। जन्म और मृत्यु के मध्य का काल किसी विशिष्ठ पुरूषार्थ के प्रयोजनार्थ है। इसलिए मेरे जीवन का कोई ऐसा उत्तम लक्ष्य अवश्य होना चाहिए, जिससे मेरा जीवन सार्थक हो। यदि वह ज्ञानियों के वचनों के बल से अपने जीवन के लक्ष्य को खोजता है, तो वह निर्णय करता है कि मेरी आत्मा की शक्तियों का चरम और परम विकास करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।
हमारे इस विकास में मुख्य बाधक कारण है- हमारे विकार। अतः हमें दो साधनो को अपनाना होगा। पहला साधन है- विकारों पर विराम। और दूसरा साधन है- गुणों के समरूप भावों का आराधन। विकारों के विराम हेतू व्रत-नियम-संयम है और आत्मा में सद्गुणों के उत्थान हेतू ज्ञान-दर्शन-चरित्र का आराधन है। इसी साधना का चरम बिंदु सत्-चित-आनंद अवस्था होगी। इसी से मोक्ष रूप लक्ष्य की सिद्धि होती है।
विचार वेदना की गहराई
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दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।
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