चार अखंड़ मोती
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प्रशंसा
- प्रशंसा मानव स्वभाव की एक ऐसी कमजोरी है कि जिससे बड़े बड़े ज्ञानी भी नहीं बच पाते। निंदा की आंच भी जिसे पिघला नहीं पाती, प्रशंसा की ठंड़क उसे छार-छार कर देती है।
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कषाय
- जब तक क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषाय से छूटकारा नहीं होता, तब तक दुखों से मुक्ति सम्भव ही नहीं।
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सदभावना
- सदभावना, विषय-कषाय से विरक्त और समभाव में अनुरक्त रखती है। विपत्तियों में समता और सम्पत्तियों में विनम्रता प्रदान करती है।
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समाधि
- पूर्ण विवेक से निर्णय करने के उपरांत भी यदि परिणाम प्रतिकूल आ जाय ऐसी विपरित परिस्थिति में भी उसका विरोध करने के बजाय यदि मन को समझाना आ जाय तो समाधि सम्भव है।
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टैग: चिंतनकण, जीवन शैली, जीवन-मूल्य, सद्विचार, सुक्तियाँ
रश्मि प्रभा...
20/07/2011 at 7:15 अपराह्न
anmol moti
अनामिका की सदायें ......
20/07/2011 at 7:44 अपराह्न
jab pahle 3 motiyon ko aatmsaat kar lenge to chautha moti apna roop khud-b-khud le lega.sunder sanmarg ki or le jati kriti.
कुश्वंश
21/07/2011 at 7:12 पूर्वाह्न
seep se nikle moti jo anmol hai preraaak bhi
सञ्जय झा
21/07/2011 at 10:19 पूर्वाह्न
kya marm ki baat kah dete hain aap………pranam.
रंजना
21/07/2011 at 6:26 अपराह्न
अनमोल चिंतन मोती….
Navin C. Chaturvedi
21/07/2011 at 9:36 अपराह्न
ज्ञान पूर्ण बातें ऐसे ही बांटते रहें हमारे साथ
सुज्ञ
26/07/2012 at 3:59 अपराह्न
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