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दृष्टिकोण
अभिप्रायः बोध : नयज्ञान -अनेकान्तवाद
अपेक्षा-बोध : नयज्ञान – अनेकान्तवाद
पिछले लेखों में हमने अनेकांत का भावार्थ समझने का प्रयास किया कि किसी भी कथन के अभिप्रायः को समझना आवश्यक है। अभिप्रायः इस बात पर निर्भर करता है कि कथन किस अपेक्षा से किया गया है। वस्तुतः कथन असंख्य अपेक्षाओं से किया जाता है किन्तु मुख्यतया सात अपेक्षाएँ होती है जिसका विवेचन यहाँ किया जा रहा है। अपेक्षाओं को जानने के सिद्धांत को नय कहते है।
“नय” सिद्धांत वक्ता के आशय या कथन को तत्कालिक संदर्भ में सम्यक प्रकार से समझने की पद्धति है।
जैसा पहले बताया गया कि प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण–धर्म रहे हुए होते है। उन अनंत गुण–धर्मों में से किसी एक को प्रमुखता देना, दूसरों को गौण रखते हुए और अन्य गुण–धर्मों का निषेध न करते हुए, एक को मुख्यता से व्यक्त करना या जानना ‘नय ज्ञान’ कहलाता है।
सात नय (सप्तनय) इस प्रकार है:-
1-नैगमनय
2-संग्रहनय
3-व्यवहारनय
4-ॠजुनय
5-शब्दनय
6-समभिरूढनय
7-एवंभूतनय
1-नैगमनय – नैगमनय संकल्प मात्र को पूर्ण कार्य अभिव्यक्त कर देता है। उसके सामान्य और प्रयाय दो भेद होते है। काल की अपेक्षा से भी नैगमनय के तीन भेद, भूत नैगमनय, भविष्य नैगमनय और वर्तमान नैगमनय होते है।
विषय के उलझाव से बचने के लिए यहाँ विस्तार में जाना अभी उचित नहीं है। कल उदाहरण दिया ही था कि ‘नैगमनय’ निगम का अर्थ है संकल्प। नैगम नय संकल्प के आधार पर एक अंश स्वीकार कर अर्थघटन करता है। जैसे एक स्थान पर अनेक व्यक्ति बैठे हुए है। वहां कोई व्यक्ति आकर पुछे कि आप में से कल मुंबई कौन जा रहा है? उन में से एक व्यक्ति बोला – “मैं जा रहा हूँ”। वास्तव में वह जा नहीं रहा है, किन्तु जाने के संकल्प मात्र से कहा गया कि ‘जा रहा हूँ’। इस प्रकार संकल्प मात्र को घटित कथन कहने पर भी उसमें सत्य का अंश रहा हुआ है। नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।
भूत नैगमनय – भूतकाल का वर्तमान काल में संकल्प करना जैसे दशहरे के दिन कहना आज रावण मारा गया। जबकि रावण को मारे गए बहुत काल बीत गया। यह भूत नैगमनय की अपेक्षा सत्य है।
भविष्य नैगमनय – जैसे डॉक्टरी पढ रहे विद्यार्थी को भविष्य काल की अपेक्षा से ‘डॉक्टर साहब’ कह देना भविष्य नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।
वर्तमान नैगमनय – जैसे सोने की तैयारी करते हुए कहना कि ‘मैं सो रहा हूँ’ वर्तमान नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।
इस प्रकार नैगमनय के परिप्रेक्ष्य में कथन की अपेक्षा को परख कर, सत्यांश लेकर, कथन के अभिप्रायः को निश्चित करना अनेकांत या अपेक्षावाद का नैगमनय है।
2-संग्रहनय – संग्रहनय एक शब्द मात्र में एक जाति की अनेक वस्तुओं में एकता या संग्रह लाता है।
जैसे कहीं व्यक्ति प्रातः काल अपने सेवक से कहे– ‘ब्रश लाना तो’ और मात्र ‘ब्रश’ कहने से सेवक ब्रश, पेस्ट, जिव्हा साफ करनें की पट्टी, पानी की बोतल, तौलिया आदि वस्तुएं ला हाजिर करे तो वह सभी दातुन सामग्री की वस्तुएँ ब्रश शब्द में संग्रहित होने से ब्रश कहना संग्रहनय की अपेक्षा सत्य है।
इस प्रकार कई शब्द एक वस्तुनाम के भीतर समाहित होने से संग्रहनय की अपेक्षा से सत्य है इस सत्यांश द्वारा अभिप्रायः सुनिश्चित करना अपेक्षावाद या सापेक्षता नियम है।
क्रमशः……………
तथ्य की परीक्षण विधि – अनेकान्तवाद
जैसे किसी व्यक्ति विशेष के बारे में सूचनाएं देते हुए कोई वक्ता कहता है कि- ‘यह व्यक्ति अच्छा है’। अब इस सूचना के आधार पर, उसके कथन में अन्तर्निहित अपेक्षा को परख कर, हमें तय करना है कि वक्ता ने किस अभिप्रायः से कहा कि ‘वह व्यक्ति अच्छा है’। आईए समझने का प्रयास करते है……
सत्यान्वेषण लैब – अनेकान्तवाद
सत्यखोजी उपकरण – अनेकान्तवाद
“सबका अपना अपना नज़रिया होता है”
यथार्थ में, हर दृष्टिकोण किसी न किसी अपेक्षा के आधार से होता है।
अपेक्षा समझ आने पर दृष्टिकोण का तात्पर्य समझ आता है।
दृष्टिकोण का अभिप्राय समझ आने पर सत्य परिशुद्ध बनता है।
परिशुद्ध अभिप्रायों के आधार पर परिपूर्ण सत्य ज्ञात होता है।
छः अंधे और हाथी – अनेकान्तवाद
- प्रस्तुत दृष्टांत का ध्येय क्या है?
- इस कथा का अन्तिम सार क्या है?
- विभिन्न प्रतीकों के मायने क्या है?
- क्या कोई और उदाहरण है जो इसका समानार्थी हो?
- यह दृष्टांत किस तरह के तथ्यों पर लागू किया जा सकता है?
सत्य की गवैषणा – अनेकान्तवाद
- मताग्रह न रखें
- पक्षपात से बचें
- सत्य के प्रति निष्ठा
- परीक्षक बनें।
- भेद-विज्ञान को समझें
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