सारी कठिनाईयां परिवर्तित होकर हमारी ज्वलंत इच्छाओं में तब्दिल हो जाती है। यह मनेच्छा उत्तरोत्तर उँचाई सर करने की मानसिक उर्ज़ा देती रहती है। जैसे एड्वेन्चर का रोमांच हमें दुर्गम रास्ते और शिखर सर करवा देता है। अगर ऐसी ही तीव्रेच्छा सद्गुण अंगीकार करने में प्रयुक्त की जाय तो जीवन को मूल्यवान बनाना कोई असम्भव कार्य भी नहीं है।
मैं तो मानता हूँ, आप क्या कहते है?