वहीं थोड़ी सी भी प्रतिकूल परिस्थिति आने पर, अधिसंख्य लोगों को स्वार्थ में सफल होते देखकर, नास्तिक के सब्र का बांध टूट जाता है। जब भी बह भलाई का बदला बुराई से मिलता देखता है, उसके भौतिक नियमों में खलबली मच जाती है। वह यह निश्चित कर लेता है कि सदाचार का बदला सदैव बुरा ही मिलता है। फिर वह ही क्यों अनावश्यक सदाचार निभाकर दुख पीड़ा और प्रतीक्षा मोल ले? धर्मग्रंथों से मिलने वाली उर्ज़ा के अभाव में, ‘नास्तिक-सदाचार’ लम्बी दौड नहीं दौड सकता। आधार रहित ‘नास्तिक-सदाचार’ पैर रहित अर्थात निराधार से होते है। कोई मजबूत मनोबल युक्त नास्तिक दृढ भी रह जाय जो कि सम्भव है, किन्तु यह अपवाद है। और यह ध्रुव सत्य है कि बिना कारण कोई कर्म नहीं होता। पुरूषार्थ के लिए भी हमें पर्याप्त नैतिक बल प्रेरणा चाहिए।
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नास्तिक के लिए सदाचार निष्प्रयोजन
कौन सी सुबह जलाओगे तमन्नाओं का चराग़………?
आज कल के चक्कर में ही, मानव जाता व्यर्थ छला॥
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सज्ज्न बोलो दुर्गम पथ पर, तुम न चलोगे कौन चलेगा?
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निर्मल-संदेश
दाग सदा उजले पर लगे, इस चलन को मत भूलो॥
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सार्थक पुरूषार्थ
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पाथेय बांध संबल, गंतव्य दूर तेरा॥ उठ जाग……
रचनाकार: अज्ञात
(यह गीत मेरे लिये नवप्रभात का प्रेरक है)
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घबराए जब मन अनमोल
घबराए जब मन अनमोल, चित हो जाए डांवाडोल।
तब मानव तूं अन्तर खोल, धम्मं शरणं गच्छामि॥
पर्वत सम जब बाधा हो, घनघोर घटा सम उल्झन हो।
तब तुझमें बस चिंतन हो, धम्मं शरणं गच्छामि॥
चिंता साथ न छोड रही, कल्पना आगे दौड रही।
शुभ्र ध्यान हित बोल सही, धम्मं शरणं गच्छामि॥
रोग भी मन आघात करे, मन रह रह प्रलाप करे।
शरण तेरे संताप हरे, धम्मं शरणं गच्छामि॥
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भाग्य काम करता है या कर्म अथवा पुरुषार्थ, समय बलवान है या प्रकृति ? कारण क्या है?
चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं
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