RSS

Tag Archives: पाखण्ड

अविवेक बुद्धि

पुराने समय की बात है एक सेठ नें न्याति-भोज का आयोजन किया। सभी गणमान्य और आमन्त्रित अतिथि आ चुके थे, रसोई तैयार हो रही थी इतने में सेठ नें देखा कि भोजन पंडाल में एक तरफ एक बिल्ली मरी पडी थी। सेठ नें सोचा यह बात सभी को पता चली तो कोई भोजन ही ग्रहण नहीं कर पाएगा। अब इस समय उसे बाहर फिकवाने की व्यवस्था करना भी सम्भव न था। अतः सेठ नें पास पडी कड़ाई उठा कर उस बिल्ली को ढ़क दिया। सेठ की इस प्रक्रिया को निकट खडे उनके पुत्र के अलावा किसी ने नहीं देखा। समारम्भ सफल रहा।

कालान्तर में सेठ स्वर्ग सिधारे, उन्ही के पुण्यार्थ उनके पुत्र ने मृत्यु भोज का आयोजन किया। जब सब तैयारियों के साथ भोजन तैयार हो गया तो वह युवक इधर उधर कुछ खोजने लगा। लोगों ने पूछा कि क्या खोज रहे हो? तो उस युवक नें कहा – बाकी सभी नेग तो पूरे हो गए है बस एक मरी हुई बिल्ली मिल जाय तो कड़ाई से ढक दूँ। लोगों ने कहा – यहाँ मरी बिल्ली का क्या काम? युवक नें कहा – मेरे पिताजी नें अमुक जीमनवार में मरी बिल्ली को कड़ाई से ढ़क रखा था। वह व्यवस्था हो जाय तो भोज समस्त रीति-नीति से सम्पन्न हो।

लोगों को बात समझ आ गई, उन्होंने कहा – ‘तुम्हारे पिता तो समझदार थे उन्होने अवसर के अनुकूल जो उचित था किया पर तुम तो निरे बेवकूफ हो जो बिना सोचे समझे उसे दोहराना चाहते हो।’

कईं रूढियों और परम्पराओं का कुछ ऐसा ही है। बडों द्वारा परिस्थिति विशेष में समझदारी पूर्वक किए गए कार्यों को अगली पीढ़ी मूढ़ता से परम्परा के नाम निर्वाह करने लगती है और बिना सोचे समझे अविवेक पूर्वक प्रतीको का अंधानुकरण करने लग जाती है। मात्र इसलिए – “क्योंकि मेरे बाप-दादा ने ऐसा किया था” कुरितियाँ इसी प्रकार जन्म लेती है। कालन्तर से अंधानुकरण की मूर्खता ढ़कने के उद्देश्य से कारण और वैज्ञानिकता के कुतर्क गढ़े जाते है। फटे पर पैबंद की तरह, अन्ततः पैबंद स्वयं अपनी विचित्रता की कहानी कहते है।

 

टैग: , , , , , , , ,

कृपणता कैसी कैसी………

आस्था दरिद्र : जो सत्य पर भी कभी आस्थावान नहीं हो पाता।

त्याग दरिद्र : त्याग समर्थ होते हुए भी, जिससे कुछ नहीं छूटता।

दया दरिद्र : प्राणियों पर लेशमात्र भी अनुकम्पा नहीं करता।

संतोष दरिद्र : आवश्यकता पूर्ण होनें के बाद भी इच्छा तृप्त नहीं हो पाता।

वचन दरिद्र : जिव्हा पर कभी भी मधुर वचन नहीं ला पाता।

विवेक दरिद्र : बुद्धि होते हुए भी विवेक का उपयोग नहीं कर पाता।

मनुजता दरिद्र : मानव बनकर भी जो पशुतुल्य तृष्णाओं से मुक्त नहीं हो पाता।

धन दरिद्र : जिसके पास न्यून भी धन नहीं होता।

उपकार दरिद्र : कृतघ्न, उपकारी के प्रति आभार भी प्रकट नहीं कर पाता।

  • पाकर गुण दौलत असीम, मानव दरिद्र क्यों रह जाता?

 

 

टैग: , , , , , , ,

द्वेष की गांठें,क्रोध की गठरी

द्वेष रूपी गांठ बांधने वाले, जीवन भर क्रोध की गठरी सिर पर उठाए घुमते है। यदि द्वेष की गांठे न बांधी होती तो क्रोध की गठरी खुलकर बिखर जाती, और सिर भारमुक्त हो जाता।
__________________________________________

 

टैग: , , , , , ,

धर्म, पाखण्ड और व्यक्ति

समता, सज्जनता, सदाचार, सुविज्ञता और सम्पन्नता। निश्चित ही यह उत्तम गुण है, बस  इनका प्रदर्शन ही पाखंड है। ऐसे पाखण्ड वस्तुत: व्यक्तिगत दोष है, पर बदनाम धर्म को किया जाता है। मात्र इसलिये कि इन गुणों की शिक्षा धर्म देता है।

______________________________________

 
42 टिप्पणियां

Posted by on 02/11/2010 में बिना श्रेणी

 

टैग: , ,

कैसे कैसे कसाई है जग में

  • बकरकसाई:  बकरे आदि जीवहिंसा करने वाला।
  • तकरकसाई:  खोटा माप-तोल करने वाला।
  • लकरकसाई:  वृक्ष वन आदि काटने वाला
  • कलमकसाई: लेखन से अन्य को पीडा पहूँचाने वाला।
  • क्रोधकसाई:  द्वेष, क्रोध से दूसरों को दुखित करने वाला।
  • अहंकसाई:   अहंकार से दूसरो को हेय,तुच्छ समझने वाला।
  • मायाकसाई:  ठगी व कपट से अन्याय करने वाला।
  • लोभकसाई:  स्वार्थवश लालच करने वाला।

_________________________________________________

 

टैग: , , , , ,

धूर्तों का सत्कार न करें

पाखण्डिनो विकर्मस्थान्, वैडालवृतिकान् शठः न्।
हैतुकान् बकवृत्तिश्च, वाङ्मात्रेणापि नाचंयेत्॥

                                                                              -मनुस्मृति, अ 4 श्लो 30
____________________________________________________________________________________

— पाखण्डियों का, निषिद्ध-कर्म करने वालो का, बिल्ली के समान दगाबाज़ों का, बगुले के समान दिखावटी आचार पालने वाले धूर्तों का, शठों का, शास्त्र की विरुद्धार्थ व्याख्या करनें वालों का वचन मात्र से भी सत्कार न करना चाहिए।
(जो अपने हित के लिये धर्म का निषेध करते है, उस विचारधारा का इन पाखण्डियों में समावेश हो जाता है।)
____________________________________________________________________________________

बक वृत्ति:
एक बार सरोवर में एक बगुले को एकाग्रचित खड़ा देखकर राम ने लक्ष्मण से कहादेखो, कैसा तपस्वी है जो पूरे मनोयोग से साधना कर रहा है.” इसे एक मछली ने सुना और राम से कहा “आपको नहीं मालूम इसीने हमारे पूरे परिवार को समाप्त कर दिया है.”
बिडाल वृत्ति:
प्रायः संबंधों की आड़ में अनैतिक कार्य करना, संबंधों की मर्यादा के विपरीत आचरण बिडाल-वृत्ति कहा जाएगा. मालिक सोचता है कि उसकी पालतू बिल्ली उसकी रसोई में रखा दूध नहीं पीयेगी. लेकिन बिल्ली हमेशा यही सोचती है कि मालिक ने दूध उसी के लिये रखा है. बदनीयत को अपने खोखले तर्कों से ढकने का कार्य इसी वृत्ति वालों का है.

                                                                                                                                -प्रतुल वशिष्ठ
____________________________________________________________________________________

 

टैग: , , ,

 
गहराना

विचार वेदना की गहराई

॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

दृष्टिकोण

दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय

मल्हार Malhar

पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on

मानसिक हलचल

ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।

सुज्ञ

चरित्र विकास

WordPress.com

WordPress.com is the best place for your personal blog or business site.

हिंदीज़ेन : HindiZen

जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी

WordPress.com News

The latest news on WordPress.com and the WordPress community.