आज चर्चा छेडने का भाव है, व्यक्तित्व विकास के विषय पर. मुझे प्रतीत होता है हमारे व्यक्तित्व के चार बडे शत्रु है जो हमारे व्यक्तित्व, हमारे चरित्र को सर्वप्रिय बनने नहीं देते.
मैंने थोडा सा चिंतन किया तो बडा आश्चर्य हुआ कि- विज्ञान – मनोविज्ञान भी इन्हें ही प्रमुख शत्रु मानता है. और गौर किया तो देखा नीति शिक्षा भी इन चारों को अनैतिकता का मूल मानती है. घोर आश्चर्य तो तब हुआ जब दर्शन अध्यात्म भी इन चारों को मानव चरित्र के घोर शत्रु मानता है. और तो और, दंग रह गया जब देखा कि धर्म भी इन चारो को ही पाप प्रेरक कहता रहा.
आगे देखा तो पाया कि छोटे बडे सारे अवगुण इन चार दूषणों के चाकर है. चारों की अपनी अपनी गैंग है. हरेक के अधीन उसकी कक्षा और श्रेणी अनुसार दुर्विचार, दुष्कृत्य कार्यशील है.
क्या आप अनुमान लगा सकते है कि हमारे व्यक्तित्व के या व्यक्ति के चरित्र के यह चार शत्रु कौन है?
आप अपनी अपनी दृष्टि से चार शत्रुओं को उजागर कीजिए, चिन्हित कीजिए, और फिर आप और हम चर्चा विवेचन करते है और इनकी पहचान सुनिश्चित करते है…….
(चर्चा अच्छी जमी तो यह श्रंखला जारी रखेंगे…)
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