आस्था दरिद्र : जो सत्य पर भी कभी आस्थावान नहीं हो पाता।
त्याग दरिद्र : त्याग समर्थ होते हुए भी, जिससे कुछ नहीं छूटता।
दया दरिद्र : प्राणियों पर लेशमात्र भी अनुकम्पा नहीं करता।
संतोष दरिद्र : आवश्यकता पूर्ण होनें के बाद भी इच्छा तृप्त नहीं हो पाता।
वचन दरिद्र : जिव्हा पर कभी भी मधुर वचन नहीं ला पाता।
विवेक दरिद्र : बुद्धि होते हुए भी विवेक का उपयोग नहीं कर पाता।
मनुजता दरिद्र : मानव बनकर भी जो पशुतुल्य तृष्णाओं से मुक्त नहीं हो पाता।
धन दरिद्र : जिसके पास न्यून भी धन नहीं होता।
उपकार दरिद्र : कृतघ्न, उपकारी के प्रति आभार भी प्रकट नहीं कर पाता।
- पाकर गुण दौलत असीम, मानव दरिद्र क्यों रह जाता?