एक प्रयोग करने जा रहा हूँ। बस बैठे बैठे एक जिज्ञासा हो आई कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते है? वे मुझे किस तरह पहचानते है? लोगों के मानस में मेरी छवि क्या बनी है? क्या अपनी छवि जो मैं मानता रहा हूँ? ऐसी ही निर्मित है या एकदम भिन्न? कितना अलग हो सकती है, स्वयंभू धारणा और लोकदृष्टि ?
औरों की नज़र से स्वयं के बारे में प्रतिभाव लेने की गज़ब की सुविधा इस ब्लॉगिंग में है। तो क्यों न ब्लॉग जगत में इस सुविधा का उपयोग किया जाय? अपने पाठक मित्रों ब्लॉग-मित्रों को आमंत्रित करूँ और जानकारी लूँ कि वे मुझे किस तरह पहचानते है। उनकी दृष्टि में मेरी छवि क्या है? क्या वह यथार्थ बिंब है या आभासी दुनिया में आभासी ही व्यक्तित्व। यदि कुछ नकारात्मक पता चले तो क्यों न छवि को सकारात्मक बनाने का प्रयोग किया जाय?
सभी ब्लॉगर, पाठक बंधु अथवा यत्र तत्र टिप्पणीयों से मुझे जानने वाले पाठक कृपा करके अपने प्रतिभाव अवश्य दें। आज बिना लाग लपेट के, प्रोत्साहन में अपने अहं को आडे लाकर, प्रसंशा में पूरी क्षमता से कंजूसी करते हुए, निश्छल टिप्पणी करें। वे पाठक भी आज तो टिप्पणी अवश्य करे जो मात्र पढकर खिसक जाया करते है। आज आलेख को नहीं, मुझे टिप्पणियों की दरकार है। क्यों कि इसका मेरे व्यक्तित्व से सरोकार है। मेरे विचार मेरे व्यक्तित्व को कैसा आकार देते है।
आभासी दुनिया में बना बिंब, बालू शिल्पाकृति सम होगा, जिसमें परिवर्तन सम्भव है।
बेताल के शब्दों में कहुँ तो मेरी छवि के बारे में थोडा भी जानते हुए यदि लेख-पाठक मौन रहे तो उनका सिर मेरे ही विचारों से भारी होकर दर्दनिवारक गोली की शरण को प्राप्त होगा।
तो फटाफट टिप्पणी करिए कि क्या है आपकी नज़र में मेरी छवि?