मेरे शाकाहार मांसाहार आलेखो को किसी भी धर्म का अपमान न माना जाय। इस आधार पर मेरा किसी भी धर्म को हीन बताने का उद्देश्य नहिं है। पर कुरिति अगर धार्मिक आस्था का चोला पहन कर आयेगी तो मैं आघात अवश्य करूंगा। मेरा मक़्सद अहिंसा है, जीव दया है, बस मेरी बात इतनी सी है कि कंई प्रकार की हिंसाओं से बचा जा सकता है तो क्यों न बचें।
हर व्यक्ति को पाप को पाप स्वीकार करना चाहिए, जैसे कि मैं स्वीकार करता हूं मेरे शाकाहार से, मेरे गमन-आगमन से और जीवन के कई कार्यों से जीवहिंसा होती है,और यह पाप भी है। बस ध्यान मेरा यही रहता है कि अनावश्यक,और बडी जीवहिंसा न हो।
न कि पाप में भी धर्म बताया जाय। पाप को धर्म बताकर हम अपनी अनुकूलताएँ साधें।
कहते है कि किसी की आस्थाओं और भावनाओं को ठेस नहिं पहूंचानी चाहिए, मै तो कह्ता हूं बेशक ठेस पहूंचाओ अगर आस्थाएं कुरिति है। इन ठेसों से ही उन आस्थाओं को सम्हलने का अवसर मिलता है। बस ठेस किसी अच्छी बात को बुरा साबित करने की भावना से न पहूंचाई जाय।