‘वह शिष्य अपने गुरु का नाम रटने लगा। अनेक बार नाम जपने के बाद उसने पानी पर चलने की बात सोची पर जैसे ही पानी में उतरा डुबकी खा गया। मुंह में पानी भर गया। बड़ी मुश्किल से बाहर आया। बाहर आकर वह बड़ा क्रोधित हुआ। गुरु के पास जाकर बोला, ‘आपने तो मुझे धोखा दिया। मैंने कितनी ही बार आप का नाम जपा, फिर भी डुबकी खा गया। यों मैं तैरना भी जानता हूं। मगर मैंने सोचा कि बहुत जप लिया नाम। अब तो पूरी हो गई होगी श्रद्धा वाली शर्त और जैसे ही पानी पर उतरा डूबने लगा। सारे कपड़े खराब हो गए। कुछ बात जंची नहीं। ‘ गुरु ने कहा, ‘कितनी बार नाम का जाप किया?’ शिष्य ने कहा, ‘ हजार से भी ऊपर। किनारे पर खड़े- खड़े भी किया। पानी पर उतरते समय भी और डूबते-डूबते भी करता रहा।
‘ गुरु ने कहा, ‘बस तुम्हारे डूबने का यही कारण है। मन में सच्ची श्रद्धा होती तो बस एक बार का जाप ही पर्याप्त था। मात्र एक बार नाम ले लेते तो बात बन जाती। सच्ची श्रद्धा गिनती नहीं अपने ईष्ट के प्रति समर्पण मांगती है।