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Category Archives: वर्जना

वर्जनाओं के निहितार्थ

एक राजा को पागलपन की हद तक आम खाने का शौक था। इस शौक की अतिशय आसक्ति के कारण उन्हे, पाचन विकार की दुर्लभ व्याधि हो गई। वैद्य ने राजा को यह कहते हुए, आम खाने की सख्त मनाई कर दी कि “आम आपके जीवन के लिए विष समान है।” राजा का मनोवांछित आम, उसकी जिन्दगी का शत्रु बन गया।

एक बार राजा और मंत्री वन भ्रमण के लिए गए। काफी घूम लेने के बाद, गर्मी और थकान से चूर राजा को एक छायादार स्थान दिखा तो राजा ने वहां आराम के लिए लेटने की तैयारी की। मंत्री ने देखा, यह तो आम्रकुंज है, यहां राजा के लिए ठहरना, या बैठना उचित नहीं। मंत्री ने राजा से कहा, “महाराज! उठिए, यह स्थान भयकारी और जीवनहारी है, अन्यत्र चलिए।”  इस पर राजा का जवाब था, ” मंत्री जी! वैद्यों ने आम खाने की मनाई की है, छाया में बैठने से कौनसा नुकसान होने वाला है? आप भी बैठिए।” मंत्री बैठ गया। राजा जब आमों को लालसा भरी दृष्टि से देखने लगा तो मंत्री ने फिर निवेदन किया, “महाराज! आमों की ओर मत देखिए।” राजा ने तनिक नाराजगी से कहा,  “आम की छाया में मत बैठो, आम की ओर मत देखो, यह भी कोई बात हुई? निषेध तो मात्र खाने का है”  कहते हुए पास पडे आम को हाथ में लेकर सूंघने लगा। मंत्री ने कहा, “अन्नदाता!  आम को न छूए, कृपया इसे मत सूंघिए, अनर्थ हो जाएगा। चलिए उठिए, कहीं ओर चलते है”

“क्या समझदार होकर अतार्किक सी बात कर रहे हो, छूने, सूंघने से आम पेट में नहीं चला जाएगा।” कहते हुए राजा आम से खेलने लगे। खेल खेल में ही राजा नें आम का बीट तोड़ा और उसे चखने लगे। मंत्री भयभीत होते हुए बोला, “महाराज! यह क्या कर रहे है?” अपने में ही मग्न राजा बोला, “अरे थोड़ा चख ही तो रहा हूँ। थोड़ा तो विष भी दवा का काम करता है” लेकिन राजा संयम न रख सका और पूरा आम चूस लिया। खाते ही पेट के रसायनों में विकार हुआ और विषबाधा हो गई। धरापति वहीं धराशायी हो गया।

वर्जनाएँ, अनाचार व अनैतिकताओं से जीवन को बचाकर, मूल्यों को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से होती है। इसीलिए वर्जनाओं का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। जहां वर्जनाओं का अभाव होता है वहां अपराधों का सद्भाव होता है। देखिए…

एक चोर के हाथ हत्या हो गई। उसे फांसी की सजा सुनाई गई। अन्तिम इच्छा के रूप में उसने माता से मिलने की गुजारिश की। माता को बुलाया गया। वह अपना मुंह माता के कान के पास ले गया और अपने दांत माता के कान में गडा दिए। माता चित्कार कर उठी। वहां उपस्थित लोगों ने उसे बहुत ही धिक्कारा- अरे अधम! इस माँ ने तुझे जन्म दिया। तेरे पिता तो तेरे जन्म से पहले ही सिधार चुके थे, इस माँ ने बडे कष्टोँ से तुझे पाला-पोसा। उस माता को तूने अपने अन्त समय में ऐसा दर्दनाक कष्ट दिया? धिक्कार है तुझे।”

“इसने मुझे जन्म अवश्य दिया, इस नाते यह मेरी जननी है। किन्तु माता तो वह होती है जो जीवन का निर्माण करती है। संस्कार देकर संतति के जीवन का कल्याण सुनिश्चित करती है। जब मैं बचपन में दूसरे बच्चों के पैन पैन्सिल चुरा के घर ले आता तो मुझे टोकती नहीं, उलट प्रसन्न होती। मैं बेधडक छोटी छोटी चोरियाँ करता, उसने कभी अंकुश नहीं लगाया, मेरी चोरी की आदतो को सदैव मुक समर्थन दिया। मेरा हौसला बढता गया। मैं बडी बडी चोरियां करता गया और अन्तः चौर्य वृत्ति को ही अपना व्यवसाय बना लिया। माँ ने कभी किसी वर्जना से मेरा परिचय नहीं करवाया, परिणाम स्वरूप मैं किसी भी कार्य को अनुचित नहीं मानता था। मुझसे यह हत्या भी चोरी में बाधा उपस्थित होने के कारण हुई और उसी कारण आज मेरा जीवन समाप्त होने जा रहा है। मेरे पास समय होता तो माँ से इस गलती के लिए कान पकडवाता, पर अब अपनी व्यथा प्रकट करने के लिए कान काटने का ही उपाय सूझा।”

वर्जनाएँ, नैतिक चरित्र  और उसी के चलते जीवन की सुरक्षा के लिए होती है। ये सुरक्षित, शान्तियुक्त, संतोषप्रद जीवन के लिए, नियमबद्ध अनुशासन का काम करती है। वर्जनाएँ वस्तुतः जीवन में विकार एवं उससे उत्पन्न तनावों को दूर रख जीवन को सहज शान्तिप्रद बनाए रखने के सदप्रयोजन से ही होती है।

लोग वर्जनाओं को मानसिक कुंठा का कारण मानते है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि वर्जनाओं का आदर कर, स्वानुशासन से पालन करने वाले कभी कुंठा का शिकार नहीं होते। वह इसलिए कि  वे वर्जनाओं का उल्लंघन न करने की प्रतिबद्धता पर डटे रहते है। ऐसी दृढ निष्ठा, मजबूत मनोबल का परिणाम होती है, दृढ मनोबल कभी कुंठा का शिकार नहीं होता। जबकि दुविधा और विवशता ही प्रायः कुंठा को जन्म देती है। जो लोग बिना दूर दृष्टि के सीधे ही वर्जनाओं के प्रतिकार का मानस रखते है,  क्षणिक तृष्णाओं  के वश होकर, स्वछंदता से  जोखिम उठाने को तो तत्पर हो जाते है, लेकिन दूसरी तरफ अनैतिक व्यक्तित्व के प्रकट होने से भयभीत भी रहते है। इस तरह वे ही अक्सर द्वंद्वं में  दुविधाग्रस्त हो जाते है। दुविधा, विवशता और निर्णय निर्बलता के फलस्वरूप ही मानसिक कुंठा पनपती है। दृढ-प्रतिज्ञ को आत्मसंयम से कोई परेशानी नहीं होती।

अन्य सूत्र………
मन बिगाडे हार है और मन सुधारे जीत
जिजीविषा और विजिगीषा
दुर्गम पथ सदाचार
जीवन की सार्थकता
कटी पतंग
सोचविहारी और जडसुधारी का अलाव

 
 
गहराना

विचार वेदना की गहराई

॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

दृष्टिकोण

दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय

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पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on

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ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।

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