थोड़ा आगे बढ़ते ही मार्ग में उन्हें एक थैली पड़ी हुई मिली। उन्होंने थैली को खोलकर देखा। उसमें सोने की मोहरें थी। दोनों ने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, वहाँ अन्य कोई भी नहीं था। प्रसन्न होकर बड़ा भाई बड़बड़ाया, “हमारा काम बन गया। परदेस जाने की अब जरूरत नहीं रही।” दोनों को भूख लगी थी। बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा, ‘जाओ, पास के गांव से कुछ खाना ले आओ।’ छोटे भाई के जाते ही बड़े भाई के मन में विचार आया कि कुछ ही समय में यह मोहरें आधी-आधी बंट जाएंगी। क्यों न छोटे भाई को रास्ते से ही हटा दिया जाए। इधर छोटे भाई के मन में भी यही विचार कौंधा और उसने खाने में विष मिला दिया। जब वह खाने का समान लेकर लौटा तो बड़े भाई ने उस पर गोली चला दी। छोटा भाई वहीं ढेर हो गया। अब बड़े भाई ने सोचा कि पहले खाना खा लूं, फिर गड्ढा खोदकर भाई की लाश को गाड़ दूंगा। उसने ज्यों ही पहला कौर उदरस्थ किया, उसकी भी मौत हो गई।
वृद्ध की बात यथार्थ सिद्ध हुई, लालच के पिशाच ने दोनों भाईयों को खा लिया था।
जहाँ लाभ हो, वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता है। लोभ से मदहोश हुआ व्यक्ति अंध हो जाता है और उचित अनुचित पर तनिक भी विचार नहीं कर पाता।