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समाज सुधार कैसे हो?

06 सितम्बर
“पहले स्वयं सुधरो, फिर दुनिया को सुधारना” एवं “क्या करें दुनिया ही ऐसी है”। वस्तुतः यह दोनो कथन विरोधाभासी है। या यह कहें कि ये दोनो कथन मायावी बहाने मात्र है। स्वयं से सुधार इसलिए नहीं हो सकता कि दुनिया में अनाचार फैला है, स्वयं के सदाचारी बनने से कार्य सिद्ध नहीं होते और दुनिया इसलिए सदाचारी नहीं बन पा रही कि लोग व्यक्तिगत रूप से सदाचारी नहीं है। व्यक्ति और समाज दोनों परस्पर सापेक्ष है। व्यक्ति के बिना समाज नहीं बन सकता और समाज के बिना व्यक्ति का चरित्र उभर नहीं सकता। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत सुधार के लिए सुधरे हुए समाज की अपेक्षा रहती है और समाज सुधार के लिए व्यक्ति का सुधार एक अपरिहार्य आवश्यकता है।

ऐसी परिस्थिति में सुधार की हालत यह है कि ‘न नौ मन तैल होगा, न राधा नाचेगी’। तो फिर क्या हो?……

“उपदेश मत दो, स्वयं का सुधार कर लो दुनिया स्वतः सुधर जाएगी।”  हमें जब किसी उपदेशक को टोकना होता है तो प्रायः ऐसे कुटिल मुहावरों का प्रयोग करते है। इस वाक्य का भाव कुछ ऐसा निकलता है जैसे यदि सुधरना हो तो आप सुधर लें, हमें तो जो है वैसा ही रहने दें। उपदेश ऐसे प्रतीत होते है जैसे उपदेशक हमें सुधार कर, सदाचारी बनाकर हमारी सदाशयता का फायदा उठा लेना चाहता है। यदि कोई व्यक्ति अभी पूर्ण सदाचारी न बन पाया हो, फिर भी नैतिकताओ को श्रेष्ठ व आचरणीय मानता हुआ, लोगो को शिष्टाचार आदि के लिए प्रेरित क्यों नहीं कर सकता?

निसंदेह सदाचारी के कथनो का अनुकरणीय प्रभाव पडता है। लेकिन यदि कोई मनोबल की विवशता के कारण पूर्णरुपेण सदाचरण हासिल न कर पाए, उसके उपरांत भी वह सदाचार को जगत के लिए अनुकरणीय ग्रहणीय मानता हो। दुनिया में नैतिकताओं की आवश्यकता पर उसकी दृढ आस्था हो, विवशता से पालन न कर पाने का खेदज्ञ हो, नीतिमत्ता के लिए संघर्षरत हो और दृढता आते ही अपनाने की मनोकामना रखता हो, निश्चित ही उसे सदाचरण पर उपदेश देने का अधिकार है। क्योंकि ऐसे प्रयासों से नैतिकताओं का औचित्य स्थापित होते रहता है। वस्तुतः कर्तव्यनिष्ठा और नैतिक मूल्यों के प्रति आदर, आस्था और आशा  का बचे रहना नितांत ही आवश्यक है। आज भले एक साथ समग्रता से पालन में या व्यवहार में न आ जाय, यदि औचित्य बना रहा तो उसके व्यवहार में आने की सम्भावना प्रबल बनी रहेगी।

समाज से आदर्शों का विलुप्त होना, सदाचारों का खण्डित होना या नष्ट हो जाना व्यक्तिगत जीवन मूल्यों का भी विनाश है। और नैतिकताओं पर व्यक्तिगत अनास्था, सामाजिक चरित्र का पतन है.

इसलिए सुधार व्यक्तिगत और समाज, दोनो स्तर पर समानांतर और समान रूप से होना बहुत ही जरूरी है.

 

36 responses to “समाज सुधार कैसे हो?

  1. Alpana Verma

    06/09/2013 at 1:26 पूर्वाह्न

    आज समाज में गिरते मूल्यों का कारण लेख से स्पष्ट होता है,आवश्यकता है हर स्तर पर सुधार लाने की.अच्छा लेख.

     
  2. निहार रंजन

    06/09/2013 at 6:55 पूर्वाह्न

    एक-एक ईंट जोड़ने से ही सुन्दर घर का निर्माण होता है. बस खुद पर पहल करने की ज़रुरत है. सुन्दर पोस्ट.

     
  3. सतीश सक्सेना

    06/09/2013 at 7:54 पूर्वाह्न

    @इस वाक्य का भाव कुछ ऐसा निकलता है जैसे सुधरना हो तो आप सुधर लें हमें तो जो है वैसा ही रहने देंसच कहा आपने , हम खुद घटिया मानसिकता रखते हुए पूरी दुनिया को इससे अधिक खराब मानते हैं !आभार आपका !

     
  4. yashoda agrawal

    06/09/2013 at 8:48 पूर्वाह्न

    आपने लिखा….हमने पढ़ा….और लोग भी पढ़ें; …इसलिए शनिवार 07/089/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी…. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….लिंक में आपका स्वागत है ……….धन्यवाद!

     
  5. yashoda agrawal

    06/09/2013 at 8:49 पूर्वाह्न

    शुभ प्रभातसही मौके परसही पोस्टसादर

     
  6. पूरण खण्डेलवाल

    06/09/2013 at 9:17 पूर्वाह्न

    सटीक आलेख !!

     
  7. सुज्ञ

    06/09/2013 at 12:02 अपराह्न

    आभार!!

     
  8. वाणी गीत

    06/09/2013 at 1:49 अपराह्न

    सुधार लाने के लिए स्वयं का सुधरना भी आवश्यक ही है क्योंकि लोग सुनकर जितना नहीं सीखते , देखकर सीखते हैं !!

     
  9. रविकर

    06/09/2013 at 4:08 अपराह्न

    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।

     
  10. डॉ. मोनिका शर्मा

    06/09/2013 at 4:20 अपराह्न

    समाज परिवारों से बना है और परिवार हमसे बने हैं ….. हम बदलेंगें तो सब बदलेगा

     
  11. ताऊ रामपुरिया

    06/09/2013 at 4:42 अपराह्न

    बहुत ही चिंतनीय विषय लिया है आपने. इस पर विचार भी हमें ही करना पडेगा.रामराम.

     
  12. भारतीय नागरिक - Indian Citizen

    06/09/2013 at 5:43 अपराह्न

    और सुधारने वाले मौज करते रहें।

     
  13. राजीव कुमार झा

    06/09/2013 at 7:04 अपराह्न

    समाज से आदर्शों का विलुप्त होना, सदाचारों का खण्डित होना या नष्ट हो जाना व्यक्तिगत जीवन मूल्यों का भी विनाश है। बहुत सही कहा.

     
  14. प्रतिभा सक्सेना

    07/09/2013 at 5:04 पूर्वाह्न

    चारों ओर के वातावरण का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहना ,जिस समाज में व्यक्ति रहता है और जिसमें उसे जीना है उससे निरपेक्ष हो कर नहीं रह सकता.स्वयं अपनी मानसिकता सुधारते हुए समाज में तदनुकूल परिस्थितियां बनाना और उसे सचेत करना भी आवश्यक है .

     
  15. कालीपद प्रसाद

    07/09/2013 at 9:09 पूर्वाह्न

    बच्चे जो कुछ सीखते है ,पहले माँ बाप और परिवार से शिखते हैं ,फिर विद्यालय से सीखते हैं अंत में समाज से सीखता है ,अगर इन तीनो स्तर में से कोई भी भ्रष्ट हुआ तो उसका प्रभाव तो बच्चे पर पड़ेगा ही .हमारा परिवार भी भ्रष्ट हैं और समाज भी ,फिर बच्चे से सच्चाई की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?latest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !

     
  16. सुज्ञ

    07/09/2013 at 12:54 अपराह्न

    रविकर जी, आपका आभार!!

     
  17. Onkar

    07/09/2013 at 2:45 अपराह्न

    सच कहा, सुधार की शुरुआत अपने से होनी चाहिए

     
  18. Darshan jangra

    07/09/2013 at 5:54 अपराह्न

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल – रविवार-8/09/2013 को समाज सुधार कैसे हो? ….. – हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर …. Darshan jangra

     
  19. सुज्ञ

    07/09/2013 at 6:04 अपराह्न

    दर्शन जी,आपका बहुत बहुत आभार!!

     
  20. Pratibha Verma

    07/09/2013 at 6:17 अपराह्न

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

     
  21. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:07 पूर्वाह्न

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा आज मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर ….ललित चाहार

     
  22. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:11 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहारClick Here and Get More

     
  23. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:12 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहारClick Here and Get More

     
  24. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:13 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहारClick Here and Get More

     
  25. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:22 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहार

     
  26. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:23 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहार

     
  27. Lalit Chahar

    08/09/2013 at 8:26 पूर्वाह्न

    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ….. – हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ….ललित चाहार

     
  28. प्रवीण पाण्डेय

    08/09/2013 at 12:36 अपराह्न

    आदर्श सदा ही पथ प्रदर्शक रहते हैं।

     
  29. संजय अनेजा

    11/09/2013 at 11:38 पूर्वाह्न

    ’व्यक्ति के बिना समाज नहीं बन सकता और समाज के बिना व्यक्ति का चरित्र उभर नहीं सकता’ – दोनों ही एक दूसरे से प्रभावित होते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते भी हैं। बातें विरोधाभासी हैं लेकिन सच भी तो यही है। हममें सुधार की आवश्यकता हमेशा रहेगी और समाज तब तक नहीं सुधरेगा जब तक समुचित न्याय\दंड विधान नहीं होगा।

     
  30. सुज्ञ

    11/09/2013 at 12:25 अपराह्न

    यथार्थ विश्लेषण किया संजय जी!!विरोधाभास इसी अपेक्षा से है व्यक्ति प्रायः न सुधरने के समाज का बहाना आगे करता है और समाज अपने बिगडे होने का ठीकरा व्यक्तिगत इकाईयों पर ठेलता है। सही भी है समाज व्यक्तिगत मानसिकताओं का सामूहिक प्रतिबिंब होता है तो स्वतंत्र व्यक्ति समाज के सामान्य चरित्र को संस्कृति बनाकर स्वयं को पेश करता है। मेरे कहने का अभिप्राय यह था कि आज दोषारोपण एक कुचक्र तरह स्थापित हो चुका है। इस कुचक्र को तोडने का क्या उपाय हो……

     
  31. सदा

    11/09/2013 at 1:24 अपराह्न

    स्वयं के सदाचारी बनने से कार्य सिद्ध नहीं होते और दुनिया इसलिए सदाचारी नहीं बन पा रही कि लोग व्यक्तिगत रूप से सदाचारी नहीं है। व्यक्ति और समाज दोनों परस्पर सापेक्ष है।पर शुरूआत तो स्‍वयं से ही करनी होगी न … बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

     
  32. संजय अनेजा

    11/09/2013 at 2:18 अपराह्न

    आपने पूछा है और आज मैं कुछ देर के लिये ऑनलाईन भी हूं तो इस खतरे के बावजूद कि मेरे विचार फ़ासीवादी प्रतीत हो सकते हैं,बताता हूँ :)मेरी राय में तो अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार उपलब्ध करवाने का कार्य परिवार\विद्यालय\समाज करे। सत्ता इन चीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करे और लोगों को परावलंबी बनाने की बजाय स्वावलंबी बनाने के प्रयास किये जाने चाहियें। उसके बाद भी कोई लोकविरुद्ध आचरण करे तो बिना किसी भी प्रकार के मोह\लालच\भय के दंड दिया जाये ताकि शेष समाज के सामने विकल्प स्पष्ट हों। अपराध-दर तभी न्यूनतम हो सकती है।

     
  33. सुज्ञ

    11/09/2013 at 3:56 अपराह्न

    आपका प्रस्तुत उपाय श्रेष्ट है, निसंदेह यही समाधान हो सकता है लेकिन मेरे मन में फिर प्रश्न उठता है कि नैतिक शिक्षा और उत्तम संस्कार उपलब्ध करवाने का कार्य परिवार\विद्यालय\समाज कैसे करे, जब त्वरित और निजि लाभप्रद सफलता ही चारों ओर मानक स्वरूप हो, विद्या शिक्षा और कौशल मात्र रोजगार लक्षी ही हो, समाज में नीति से अधिक धन सम्मान पा रहा हो, वक्रता, चालाकी और कुटिलता से ही वांछित पाने की मनोवृति सहज सामान्य मान ली गई हो, ऐसे में धारा के विपरित अटल रहने का मनोबल,दृढता से डटे रहने का प्रेरणाबल व्यक्ति\परिवार\विद्यालय\समाज कैसे उपार्जित करे……

     
  34. सुज्ञ

    11/09/2013 at 4:20 अपराह्न

    दंड विधान से अनैतिकता रोकी जा सकती है किन्तु नैतिकताओं पर निष्ठा के लिए पाबंद नहीं किया जा सकता।मुख्य प्रश्न यह है कि व्यक्ति\समाज को नैतिक मूल्यों पर निष्ठावान और उनके प्रति उत्साहित करने के क्या उपाय हो सकते है?

     
  35. Veena Srivastava

    11/09/2013 at 7:09 अपराह्न

    सुंदर प्रस्तुति….जीवन में प्रेरणा के लिए कुछ आदर्श भी होने चाहिए…

     
  36. Shekhar Suman

    16/10/2013 at 10:50 पूर्वाह्न

    मुझे तो नहीं लगता इस समाज में सुधार की कोई उम्मीद है, हर रोज देखता हूँ कई लोगों के पतन को…. लोग बस गिरना जानते हैं, रंग के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, जाती के नाम पर धर्म के नाम पर…. इंसान शब्द बोलने के साथ ही "चरित्रहीन" शब्द भी जोड़ लेना चाहिए…. मैं भी पहले यही सोचता था खुद को सुधार लेने से काम हो जाएगा…. लेकिन नहीं होगा…. ये केवल एक खुद को दिलासा देने के जैसा है….

     

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