जिस तरह हीरे में चमकने का प्राकृतिक स्वभाव होने के उपरांत भी वह हमें प्राकृतिक चमकदार प्राप्त नहीं होता। हीरा स्वयं बहुत ही कठोर पदार्थ होता है। उसे चमकाने के लिए, उससे भी कठोर व तीक्ष्ण औजारों से प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है। उसकी आभा उभारने के लिए कटाई-घिसाई का कठिन श्रम करना पडता है। दाग वाला हिस्सा काट कर दूर करना पडता है। उस पर सुनियोजित और सप्रमाण पहलू बनाने होते है। सभी पहलुओं घिस कर चिकना करने पर ही हीरा अपनी उत्कृष्ट चमक देता है। अगर हीरे में चमक अभिप्रेत है तो उसे कठिन श्रम से गुजरना ही पडेगा। ठीक उसी प्रकार सद्गुण हमारी अंतरात्मा का स्वभाव है, अपनाने कठिन होते ही है। सदाचार हमारे जीवन के लिए हितकर है, श्रेयस्कर है। यदि जीवन को दैदिप्यमान करना है तो कठिन परिश्रम और पुरूषार्थ से गुजरना ही होगा है। यदि सुंदर चरित्र का निर्माण हमारी ज्वलंत इच्छा है तो कटाव धिसाव के कठिन दौर से गुजरना ही होगा। सुहाते तुच्छ स्वार्थ के दाग हटाने होंगे। आचार विचार के प्रत्येक पहलू को नियमबद्ध चिकना बनाना ही होगा। यदि लक्ष्य उत्कृष्ट जीवन है तो स्वभाविक है, उन मूल्यों को प्राप्त करने लिए पुरूषार्थ भी अतिशय कठिन ही होगा।
यदि हम गहनता से विचार करें तो पाएंगे कि जो व्यक्ति अपने जीवन मूल्यों पर अडिग रहता है, निडर होकर जीता है। उसका अंतस आत्मबल से और भी निखर उठता है। जो भी इन मूल्यों को अपनाता हैं, उसे कर्तव्य निष्ठा का एहसास होता है। वह निर्भय होकर अपनी बात कहता है, स्वार्थ अपूर्ती से उपजने वाला भय उसे नहीं होता क्योंकि उसे कोई स्वार्थ ही नहीं होता। वह हर पल स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है। द्वंद्वं से मुक्त रहकर अपना निर्णय लेता है और दुविधा मुक्त हो अपने कार्य का निस्पादन करता है। अगर आप गहराई से समझें तो यही जीवन मूल्य हमारे लिए सुदृढ़ सुरक्षा कवच की तरह काम करते हैं। परिणाम स्वरूप हमें हर परिस्थिति में डट कर सामना करने का प्रबल साहस प्राप्त होता है. हमें लोग सम्मान की दृष्टि से देखते है। जीवन मूल्यों पर डटे रहने से तुच्छ सी इच्छाए, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएं अवश्य चुक सकती है, मगर जीवन मूल्यों पर चलकर इच्छाओं और आकांक्षाओं के क्षणिक लाभकारी सुख से लाख गुना श्रेष्ठ सुख, शांति, संतुष्टि, प्रेम और स्थायी आदर सहज ही प्राप्त हो जाता है। मानव जीवन के लिए वस्तुतः स्थायी सुख ही श्रेयस्कर है।
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
07/08/2013 at 6:55 अपराह्न
मानव जीवन के लिए स्थायी सुख ही श्रेयस्कर है। ,,,RECENT POST : तस्वीर नही बदली
Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
07/08/2013 at 7:08 अपराह्न
true।। as usual a wonderful post।
प्रवीण पाण्डेय
07/08/2013 at 7:18 अपराह्न
पारदर्शिता सदा ही अच्छी लगती है, सुन्दर आलेख
ताऊ रामपुरिया
07/08/2013 at 8:07 अपराह्न
बहुत सटीक बात कही आपने.रामराम.
डॉ. मोनिका शर्मा
07/08/2013 at 8:16 अपराह्न
सार्थक लेख……आपसे पूर्ण सहमति है….
Anurag Sharma
07/08/2013 at 8:39 अपराह्न
@ जीवन मूल्य हमारे लिए सुदृढ़ सुरक्षा कवच की तरह काम करते हैं। परिणाम स्वरूप हमें हर परिस्थिति में डट कर सामना करने का प्रबल साहस प्राप्त होता है- अंधेरे का भय स्वभाविक है, प्रकाश हमें निर्भय करता है। जिसे हम नहीं जानते वह कठिन लगता है, परिचय का अर्थ आसानी होता है। आदर्श मूल्य भी, अपनाते ही सरल बन जाते हैं।
कुशवंश
07/08/2013 at 8:56 अपराह्न
जीवन मूल्यों का बड़ा ही सटीक मूल्यांकन और प्रेरणादायक भी , सुज्ञ जी आपकी बातें हमेश दिल को छूती हैं .यूं ही प्रेरित करते रहे .. बधाई
Kailash Sharma
07/08/2013 at 9:12 अपराह्न
बहुत सारगर्भित और प्रेरक प्रस्तुति….
संजय अनेजा
07/08/2013 at 11:16 अपराह्न
’जीवन मूल्यों पर डटे रहने से तुच्छ सी इच्छाए, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएं अवश्य चुक सकती है, मगर जीवन मूल्यों पर चलकर इच्छाओं और आकांक्षाओं के क्षणिक लाभकारी सुख से लाख गुना श्रेष्ठ सुख, शांति, संतुष्टि, प्रेम और स्थायी आदर सहज ही प्राप्त हो जाता है।’यही सत्य हैं।
निहार रंजन
08/08/2013 at 10:18 पूर्वाह्न
सुन्दर पोस्ट.
देवेन्द्र पाण्डेय
09/08/2013 at 2:05 अपराह्न
सत्य बोलने वाला अधिक सहज जीवन जीता है।
शिवनाथ कुमार
17/08/2013 at 8:37 अपराह्न
नैतिक मूल्यों की रक्षा ही स्थायी सुख देता है पूरी तरह से सहमत हूँ आपसे सादर आभार!
ब्लॉग - चिठ्ठा
01/09/2013 at 12:05 अपराह्न
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।कृपया "ब्लॉग – चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग – चिठ्ठा