थोड़ा आगे बढ़ते ही मार्ग में उन्हें एक थैली पड़ी हुई मिली। उन्होंने थैली को खोलकर देखा। उसमें सोने की मोहरें थी। दोनों ने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, वहाँ अन्य कोई भी नहीं था। प्रसन्न होकर बड़ा भाई बड़बड़ाया, “हमारा काम बन गया। परदेस जाने की अब जरूरत नहीं रही।” दोनों को भूख लगी थी। बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा, ‘जाओ, पास के गांव से कुछ खाना ले आओ।’ छोटे भाई के जाते ही बड़े भाई के मन में विचार आया कि कुछ ही समय में यह मोहरें आधी-आधी बंट जाएंगी। क्यों न छोटे भाई को रास्ते से ही हटा दिया जाए। इधर छोटे भाई के मन में भी यही विचार कौंधा और उसने खाने में विष मिला दिया। जब वह खाने का समान लेकर लौटा तो बड़े भाई ने उस पर गोली चला दी। छोटा भाई वहीं ढेर हो गया। अब बड़े भाई ने सोचा कि पहले खाना खा लूं, फिर गड्ढा खोदकर भाई की लाश को गाड़ दूंगा। उसने ज्यों ही पहला कौर उदरस्थ किया, उसकी भी मौत हो गई।
वृद्ध की बात यथार्थ सिद्ध हुई, लालच के पिशाच ने दोनों भाईयों को खा लिया था।
जहाँ लाभ हो, वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता है। लोभ से मदहोश हुआ व्यक्ति अंध हो जाता है और उचित अनुचित पर तनिक भी विचार नहीं कर पाता।
Madan Mohan saxena
25/07/2013 at 2:48 अपराह्न
जहाँ लाभ हो, वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता है। लोभ से मदहोश हुआ व्यक्ति अंध हो जाता है और उचित अनुचित पर तनिक भी विचार नहीं कर पाता। बहुत अद्भुत अहसास…सुन्दर प्रस्तुति
पूरण खण्डेलवाल
25/07/2013 at 4:03 अपराह्न
प्रेरणात्मक कहानी !!
yashoda agrawal
25/07/2013 at 4:06 अपराह्न
इतिहास गवाह हैलालची का अंत बुरापर……आज इस युग में लालच की पराकाष्ठा का कहीं भी अंत नहीं
प्रवीण पाण्डेय
25/07/2013 at 4:16 अपराह्न
लालच धन को नरपिशाच बना देता है।
देवेन्द्र पाण्डेय
25/07/2013 at 4:23 अपराह्न
वाह! कितनी अच्छी सीख!!!
डॉ. मोनिका शर्मा
25/07/2013 at 4:34 अपराह्न
ऐसे समय तो अपना विवेक ही साथ दे सकता है ….अच्छी बोधकथा
manoj jaiswal
25/07/2013 at 5:06 अपराह्न
इस युग में लालच की पराकाष्ठा का कहीं भी अंत नहीं। सुन्दर प्रस्तुति सुज्ञ जी, जहाँ लाभ हो वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता ही है।
Ankur Jain
25/07/2013 at 6:30 अपराह्न
प्रेरक कथा…लोभ को यूंही पाप का बाप का नहीं कहा गया…
डॉ टी एस दराल
25/07/2013 at 7:00 अपराह्न
लोभ मानवीय प्रवृति है. इससे निज़ात पाकर इन्सान संत बन सकता है.
ताऊ रामपुरिया
25/07/2013 at 9:57 अपराह्न
आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक कथा है, भाई ही भाई का दुश्मन हो गया है.रामराम.
कालीपद प्रसाद
25/07/2013 at 10:03 अपराह्न
रामायण ,महाभारत काल से भाई ही भाई का दुश्मन रहा है -लोभ भाई को भाई का दुश्मन बना देता है।latest postअनुभूति : वर्षा ऋतुlatest दिल के टुकड़े
वाणी गीत
26/07/2013 at 9:22 पूर्वाह्न
लालच पिशाच ही है . अधिकांश जनता पिशाच से ग्रस्त और त्रस्त है !
vandana gupta
26/07/2013 at 12:49 अपराह्न
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(27-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।सूचनार्थ!
सुज्ञ
26/07/2013 at 2:02 अपराह्न
वंदना जी,आभार आपका!!
Kailash Sharma
26/07/2013 at 2:07 अपराह्न
सार्थक सीख देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति…
सदा
27/07/2013 at 12:19 अपराह्न
बिल्कुल सच्ची सीख देती … यह प्रस्तुति