एक कंजूस सेठ थे। धर्म सभा में आखरी पंक्ति में बैठते थे। कोई उनकी ओर ध्यान भी नहीं देता था। एक दिन अचानक उन्होंने भारी दान की घोषणा कर दी। सब लोगों ने उन्हें आगे की पंक्ति में ले जाकर बैठाया, आदर सत्कार किया।
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धनसंचय यदि लक्ष्य है,यश मिलना अति दूर।
यश – कामी को चाहिए, त्याग शक्ति भरपूर ॥
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सेठ ने कहा – “यह सत्कार मेरा नहीं, पैसे का हो रहा है।”
तभी गुरू बोले,- “पैसा तो तुम्हारे पास तब भी था, जब तुम पीछे बैठते थे और तुम्हें कोई पूछता नहीं था। आज तुम्हारा आदर इसलिये हो रहा है क्योंकि तुमने पैसे को छोड़ा है , दान किया है। तुम्हारे त्याग का सत्कार हो रहा है।”
अहंकार के भी अजीब स्वरूप होते है।
कभी हम वस्तुस्थिति का बहुत ही संकीर्ण और सतही अर्थ निकाल लेते है। दान अगर प्रकट हो जाय तो हमें दिखावा लगता है लेकिन प्रकटीकरण अन्य के लिए प्रोत्साहन का सम्बल बनता है इस यथार्थ को हम दरकिनार कर देते है, दिखावे और आडम्बर द्वारा श्रेय लेने की महत्वाकांक्षा निश्चित ही सराहनीय नहीं है किन्तु उसी में बसे त्याग और त्याग के प्रोत्साहन प्रेरणा भाव की अवहेलना भी नहीं की जा सकती।
आसक्ति का त्याग निश्चित ही सराहनीय है।
सम्बन्धित सूत्र…
त्याग शक्ति
प्रोत्साहन हेतू दान का महिमा वर्धन
Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
28/06/2013 at 7:56 अपराह्न
यह बात तो है।
ताऊ रामपुरिया
28/06/2013 at 7:58 अपराह्न
सही विष्लेषण किया आपने.रामराम.
Anupama Tripathi
28/06/2013 at 8:06 अपराह्न
sundar evam sarthak …
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
28/06/2013 at 9:08 अपराह्न
बहुत उम्दा सटीक विष्लेषण,,,Recent post: एक हमसफर चाहिए.
ब्लॉग बुलेटिन
28/06/2013 at 9:29 अपराह्न
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काँच की बरनी और दो कप चाय – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
सुज्ञ
28/06/2013 at 9:59 अपराह्न
शिवम् भाई, आभार!!
सतीश सक्सेना
29/06/2013 at 9:29 पूर्वाह्न
आसक्ति का त्याग , मुश्किल तो है ही ..मंगलकामनाएं आपकी प्रयत्नों के लिए !
प्रवीण पाण्डेय
29/06/2013 at 9:31 पूर्वाह्न
दान दे सकना एक गुण है, अन्यथा सब धन से चिपक कर बैठ जाते हैं।
Sriram Roy
29/06/2013 at 12:35 अपराह्न
wah…bhut sundar rachna…
vandana gupta
29/06/2013 at 12:41 अपराह्न
आज तुम्हारा आदर इसलिये हो रहा है क्योंकि तुमने पैसे को छोड़ा है , दान किया है। तुम्हारे त्याग का सत्कार हो रहा है।" …………बहुत गहरी बात कह दी
Anurag Sharma
30/06/2013 at 7:15 पूर्वाह्न
वाह! सिक्के का दूसरा पहलू दिखने का शुक्रिया।
के. सी. मईड़ा
30/06/2013 at 11:44 पूर्वाह्न
सही बात है । त्याग का मान होता है न कि कंजुसी से बचाए हुए धन का । सार्थक संदेश….
संजय अनेजा
01/07/2013 at 12:05 पूर्वाह्न
बात में दम है।
Neetu Singhal
01/07/2013 at 5:04 अपराह्न
निकृष्ट कर्म द्वारा उपार्जित अर्थ के दान का क्या अर्थ…..? विभिन्न आपदाओं के पश्चात् 'दान' की जो दुकानें खुल जाती हैं, कृपा कर कोई उसे बंद करवाए ये दुकाने प्राय: संपन्न वर्ग द्वारा ही संचालित होती है और'प्रधान मंत्री' द्वारा भी…..