पहले ने दूसरे से पूछा, “क्योंजी! क्या आपको बोझ नहीं लगता?”
दूसरे वाले ने कहा, “तुम्हारे सिर पर अपने खाने का बोझ है, मेरे सिर पर परिवार को खिलाकर खाने का। स्वार्थ के बोझ से स्नेह समर्पण का बोझ सदैव हल्का होता है।”
स्वार्थी मनुष्य अपनी तृष्णाओं और अपेक्षाओं के बोझ से बोझिल रहता है। जबकि परोपकारी अपनी चिंता त्याग कर संकल्प विकल्पों से मुक्त रहता है।
प्रवीण पाण्डेय
06/10/2012 at 7:48 अपराह्न
सच में, यदि परोपकार का सोच लें तो, ईश्वर बहुत दे देता है, सम्हालने के लिये।
संतोष त्रिवेदी
06/10/2012 at 8:20 अपराह्न
….सही कहा!
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
06/10/2012 at 8:30 अपराह्न
सुन्दर सन्देश! सचमुच स्वार्थ की कीमत बहुत भारी है।
संजय @ मो सम कौन ?
06/10/2012 at 8:48 अपराह्न
अंतर नजरिये का, वही असली अंतर है।
रश्मि प्रभा...
06/10/2012 at 9:50 अपराह्न
कितनी बड़ी बात … ये है जीवन की असली कला
रविकर
06/10/2012 at 10:43 अपराह्न
सटीक |आदरणीय ||
शालिनी कौशिक
06/10/2012 at 11:18 अपराह्न
nice presentation
डॉ॰ मोनिका शर्मा
07/10/2012 at 4:21 पूर्वाह्न
बिल्कुल सही…..
वाणी गीत
07/10/2012 at 6:33 पूर्वाह्न
बोझ काम करने वाले की मानसिकता पर भी निर्भर होता है ….बढ़िया !
सतीश सक्सेना
07/10/2012 at 8:34 पूर्वाह्न
यह सही कहा …
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
07/10/2012 at 1:10 अपराह्न
मंदिर के निर्माण में पत्थर तोडते मजदूरों का वक्तव्य याद आ गया.. पहला रोते हुए बोला – दिखाई नहीं देता पत्थर तोड़ रहा हूँ.दूसरे ने कराहते हुए कहा – मजदूरी कर रहा हूँ.तीसरा गाते हुए कहने लगा – भगवान का मंदिर बना रहा हूँ. /पीड़ा में आनंद की अनुभूति प्रदान करता है निस्वार्थ कर्म!! प्रेरक कथा सुज्ञ जी!
रचना दीक्षित
07/10/2012 at 6:25 अपराह्न
जीवन की एक और कला और निस्वार्थ कर्म की सच्ची शिक्षा.
Ankur jain
08/10/2012 at 2:18 अपराह्न
सीख देती प्रस्तुति…सुन्दर आलेख
मंथन
07/11/2012 at 2:37 अपराह्न
स्वार्थ के बोझ से स्नेह समर्पण का बोझ सदैव हल्का होता है …..सारगर्भित पंक्ति