पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर विशिष्ट विद्वान बन गया था।
एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही। इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।
जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।
पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ युवा हैं।”
उदात्त दृष्टि जीवन में प्रसन्नता की कुँजी है।
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हिन्दी ब्लॉगजगत की उन्नति एक दूसरे के विकास में सहभागिता से ही सम्भव है। ” together we progress ” सूत्र ही सार्थ है। यश-कीर्ती की उपलब्धि भले न्यायसंगत न हो, ‘टांग खींचाई’ तो निर्थक और स्वयं अपने ही पांवो पर कुल्हाड़ी के समान है। सभी की सफलता के प्रति उदात्त भावना ही सामुहिक रूप से सभी की सफलता है। विकास सदैव सहयोग में ही निहित है।
सतीश सक्सेना
29/08/2012 at 12:21 अपराह्न
आभार इस अच्छी पोस्ट का सुज्ञ जी …रविन्द्र प्रभात को शुभकामनायें !
संतोष त्रिवेदी
29/08/2012 at 12:29 अपराह्न
सकारात्मक सोच का हमेशा स्वागत किया जाना चाहिए ! आपका आभार
राजन
29/08/2012 at 1:04 अपराह्न
अपनी असफलता को भी सकारात्मक रूप से लेना बहुत मूश्किल है वह युवक दुखी नहीं हुआ ये अच्छी बात है लेकिन उसे यही मानकर बैठने की बजाए सफलता के लिए और मेहनत करनी चाहिए।
सुज्ञ
29/08/2012 at 1:17 अपराह्न
राजन जी,बिलकुल सही कहा आपने… यही मानकर बैठने की बजाए सफलता के लिए और मेहनत……वस्तुतः सकारात्मक सोच के अभिगम में पुरूषार्थ को प्रधानता देने का स्वभाव घुला होता ही है। आलसी प्रमादी व निराश सकारात्मक नहीं हो सकता।
काजल कुमार Kajal Kumar
29/08/2012 at 2:33 अपराह्न
If we start viewing things from higher pedestal, we enjoy.
anshumala
29/08/2012 at 2:53 अपराह्न
कहानी पुरानी है इसलिए युवक का सोचना सही है किन्तु आज का भारत होता तो एक और भर्ती घोटाला सामने होता :)सबके उन्नति की कामना करना एक मानव से कुछ ज्यादा की उम्मीद हो गई , हा दूसरो की सफलता से इर्ष्या ना करना और खुद की सफलता के लिए फिर से मेहनत में जुट जाने की सीख ली जा सकती है ( यदि बात को बस कहानी तक ही सिमित रखे तो )
सदा
29/08/2012 at 4:49 अपराह्न
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति … आपका दृष्टिकोण एवं विचार स्वागतयोग्य हैं ..आभार
सुज्ञ
29/08/2012 at 6:01 अपराह्न
:)@यदि बात को बस कहानी तक ही सिमित रखे तो कहानियाँ जीवन में से ही उगती है, जीवन का प्रेरणा स्रोत बनती है और जीवन में ही धुलमिल जाती है।
प्रेम सरोवर
29/08/2012 at 7:09 अपराह्न
बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति… आभार। मेरे पोस्ट "प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।
anshumala
29/08/2012 at 8:29 अपराह्न
आप ने बाद में परिकल्पना सम्मान की बात लिखी है मुझे लगा कही ये आप की कहानी उससे जुडी हुई ना हो इसलिए मैंने कहा की मै जो कह रही हूं बस कहानी के सन्दर्भ में है परिकल्पना के नहीं | कहानिया तो होती ही है जीवने में सीख लेने के लिए |
प्रवीण पाण्डेय
29/08/2012 at 10:31 अपराह्न
यही सोच हम सबको आगे बढ़ायेगी।
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
30/08/2012 at 12:03 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी.. डॉ व्यक्ति नौकरी के साक्षात्कार के लिए पहुंचे.. दोनों से तीन प्रश्न पूछे गए.. ध्यान दें.. पहले व्यक्ति का साक्षात्कार:१. वह कौन सा जीव है जिसकी १८ टांगें और १४ हाथ होते हैं? – नहीं जानता.२. विश्व के सबसे छोटे नगर का क्षेत्रफल दशामलव् के तीन अंकों तक बताओ? – नहीं पता.३. मछलियों के दाँत कैसे ब्रश किये जाने चाहिए? – मालूम नहीं./दूसरे व्यक्ति का साक्षात्कार:१. बेटा, पापा का स्वास्थ्य अब कैसा है? – जी पहले से बहुत सुधार है.२. और चाचा जी इलाहाबाद में ही हैं ना? – पिछले महीने कानपुर ट्रांसफर हुआ है.३. तुम्हें किस शहर में पोस्टिंग चाहिए? – सर, बस यहीं हेड ऑफिस में हो जाता तो अच्छा था./परिणाम: दूसरा व्यक्ति चुन लिया गया, क्योंकि उसने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए..प्रतिक्रया: पहला व्यक्ति खुश था कि दूसरे व्यक्ति का ज्ञान सामर्थ्य उससे अधिक था कि उसने सभी कठिन प्रश्नों के उत्तर दे दिए!!/'परिकल्पना सम्मान' से सम्मानित सभी ब्लॉगर/चिट्ठाकारों को बधाई!!हिन्दी ब्लॉगजगत की विकास भावना के लिए आयोजकों को भी बधाई!!
शालिनी कौशिक
30/08/2012 at 2:26 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी यदि ऐसी सोच आज सभी की हो जाये तो इस दुनिया के बहुत सारे विवाद स्वयं ही मिट जायेंगे.बहुत सार्थक प्रस्तुति.बधाई. .तुम मुझको क्या दे पाओगे ?
दिलबाग विर्क
30/08/2012 at 7:58 पूर्वाह्न
आपकी पोस्ट 30/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई हैकृपया पधारेंचर्चा – 987 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सुज्ञ
30/08/2012 at 8:28 पूर्वाह्न
सलिल जी,यह टिप्पणी तो मेरी पोस्ट पर भारी है
सुशील
30/08/2012 at 9:32 पूर्वाह्न
वाकई में आपकी बात में दम है उदात्त दृष्टि जीवन में प्रसन्नता की कुँजी है। एक नौकरी की तलाश में गयानौकरी उसे कहीं नहीं दिखी एक बेरोजगार घर में बैठाबहुत खुश हुआ उस दिनउसे पता चला जब नौकरीकिसी और के साथ चली गयी !
रश्मि प्रभा...
30/08/2012 at 11:57 पूर्वाह्न
हम विवाद करें ही क्यूँ ?
संजय @ मो सम कौन ?
01/09/2012 at 8:02 पूर्वाह्न
यही है उदार मानस, उदात्त दृष्टि|सलिल भाई की टिप्पणी ने सोने पर सुहागा वाला काम किया|सबको बधाई है जी हमारी तरफ से भी|
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
06/09/2012 at 8:04 पूर्वाह्न
🙂
smt. Ajit Gupta
21/11/2012 at 5:50 अपराह्न
सलिल जी ने इस पोस्ट के बारे मे बताया, पता नहीं कैसे छूट गयी थी। अच्छा उदाहरण है।
सुज्ञ
21/11/2012 at 7:51 अपराह्न
बडा अच्छा लगता है जब कोई पुरानी पोस्ट पर पहुँचता है. आभार दीदी!!सलिल जी का बहुत बहुत आभार!!