विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
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मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी
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रश्मि प्रभा...
13/07/2011 at 6:33 अपराह्न
beshak …
अरुण चन्द्र रॉय
13/07/2011 at 7:58 अपराह्न
bahut sundar vichar
Rakesh Kumar
13/07/2011 at 11:13 अपराह्न
आपके सुन्दर विचारों से सद्-प्रेरणा का संचार होता है.बहुत बहुत आभार.
सदा
14/07/2011 at 12:09 अपराह्न
बिल्कुल सही कहा है आपने ।
रंजना
14/07/2011 at 5:08 अपराह्न
महत सद्विचार सुप्रसार हेतु कोटि कोटि आभार…
shilpa mehta
14/07/2011 at 5:51 अपराह्न
जीवन सार्थक उसका है – जो इस जद्दोजहद से निकाल सके कि मैं अपने लिए यह पा लूं, वह बना लूं | यदि आपके पास सब कुछ भी है और "कुछ और " मिल जाए इस अभिलाषा में आप भाग रहे हैं – तो आपका जीवन सार्थक नहीं हुआ है अब तक | यदि आपके पास इतना है कि आप अपने परिवार के साथ सर्वाइव कर सकते हैं, और आप के पास मानसिक शान्ति है – कुछ पाने की अंधी होड़ में आप भागे नहीं जा रहे हैं – यदि आपके पास यह सच्चाई के साथ कहने की काबिलियत है कि "ईश्वर मेरे साथ हैं, मैं सही राह पर हूँ – और यह मेरे लिए काफी है " – तो आपका जीवन सार्थक है |
सुज्ञ
14/07/2011 at 9:42 अपराह्न
शिल्पा जी,स्वागत है आपका सुबोध पर!!आपका कहना सही है। तृष्णा से दूर रहना और संतोष गुण धारण करनें में जीवन की सार्थकता है।
मनोज भारती
15/07/2011 at 1:53 अपराह्न
सार्थक जीवन पर सार्थक टिप्पणी !