- अच्छा क्या है यह सभी जानते है, पर उसपर आचरण करने वाले विरले होते है।
- सुखमय जीवन के लिए मन की शान्ति जरूरी है।
- जीवन की उठापटक में सफलता पूर्वक जीवन जीना ही साधना है।
- मानव जीवन ही ऐसा जीवन है जिसमें हम श्रेयस्कर कर सकते है।
- सादगी से बढकर जीवन का अन्य कोई श्रृंगार नहीं है।
- यशलोलुप और पामर व्यक्ति मानवता की सच्ची सेवा नहीं कर सकता।
- जब दृष्टि बदलेगी तो विचार स्वतः ही बदल जाएंगे।
- दूसरों के शोषण और अपने पोषण की मनोविकृति ही मानव की अशान्ति का कारण है।
- सदैव यह चिंतन रहना चाहिए कि मुझे जो प्रतिकूलता मिल रही है वह मेरे द्वारा ही उत्पन्न की हुई है।
- किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध से सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?
नीरज गोस्वामी
01/06/2011 at 8:24 अपराह्न
इन में सिर्फ किसी एक बात को जीवन में उतार लें तो बहार आ जाए…नीरज
Patali-The-Village
01/06/2011 at 8:41 अपराह्न
बहुत सुन्दर प्रेरणादायक प्रस्तुति| धन्यवाद|
संगीता स्वरुप ( गीत )
01/06/2011 at 9:22 अपराह्न
बहुत प्रेरणादायक सूक्तियां
रश्मि प्रभा...
01/06/2011 at 10:01 अपराह्न
किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?mulmantra diya aapne
डॉ॰ मोनिका शर्मा
01/06/2011 at 10:06 अपराह्न
बहुत सुंदर है चिंतन के चटकारे ….. इनका स्वाद लगना ज़रूरी है….
Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com )
01/06/2011 at 11:22 अपराह्न
सूक्तियों में जीवन मूल्य गर्भित हैं.
सम्वेदना के स्वर
01/06/2011 at 11:51 अपराह्न
इन सूक्तियों को अच्छा कहना शायद इनकी सार्थकता नहीं.. इन्हें व्यवहार में लाना ही इनकी सफलता है.. और यह कठिन भी नहीं अगर इच्छा शक्ति हो!!
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
02/06/2011 at 12:04 पूर्वाह्न
कोशिश करता हूं कि कम से कम एक पर चल सकूं…
शालिनी कौशिक
02/06/2011 at 12:40 पूर्वाह्न
ek se badhkar ek .
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
02/06/2011 at 5:11 पूर्वाह्न
किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध से सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?प्रयास करता हूँ, आभार!
JC
02/06/2011 at 7:04 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी, आपने कहा, "अच्छा क्या है यह सभी जानते है, पर उसपर आचरण करने वाले विरले होते है।" आदि आदि…ऐसे अनंत प्रश्नों के उत्तर पाने हेतु प्राचीन ज्ञानियों, ऋषि – मुनियों ने भी एकांत में, 'अंतर्मुखी' हो, गहराई में जा मन को साध यही निष्कर्ष निकाला कि वास्तव में सृष्टि-कर्ता निराकार है (अनंत शक्ति का स्रोत, नादबिन्दू, विष्णु यानि 'विषैला अणु'), और अनंत शून्य के भीतर साकार प्रतीत होता ब्रह्माण्ड और उसका सत्व पृथ्वी उसके मन में प्रगट होते बुलबुले समान क्षणिक अस्थायी अनंत विचार हैं और मानव (उसका प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब) उसके अनंत जीवन काल में उसके भूत के किसी काल विशेष को दर्शाते दर्पण अथवा कंप्यूटर समान है!…
Ravikar
02/06/2011 at 8:48 पूर्वाह्न
Palan kar raha hunसादगी से बढकर जीवन का अन्य कोई श्रृंगार नहीं है। &from today—-हम क्रोध से सम्बंध तोड़ते है।jis din gadbad hogi, sambandhit vyakti se kshama maangne me der nahi lagaaunga, pakka vayada.
anupama's sukrity !
02/06/2011 at 9:23 पूर्वाह्न
सदैव यह चिंतन रहना चाहिए कि मुझे जो प्रतिकूलता मिल रही है वह मेरे द्वारा ही उत्पन्न की हुई है।किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध से सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?bahut sunder margdarshan.
Rakesh Kumar
02/06/2011 at 9:53 पूर्वाह्न
आपके ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं हो पा रही है.
Rakesh Kumar
02/06/2011 at 9:56 पूर्वाह्न
आपने अच्छे सार्थक विचार प्रस्तुत किये हैं.सभी अच्छे लगे.यह बहुत अच्छा लगा किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध से सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?क्रोध विवेक का हरण कर लेता है.एक अच्छी व सुन्दर पोस्ट के लिए आभार,सुज्ञ भाई.
ajit gupta
02/06/2011 at 10:44 पूर्वाह्न
बहुत ही प्रेरक वाक्य, आभार।
संगीता स्वरुप ( गीत )
02/06/2011 at 10:53 पूर्वाह्न
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है …..चुने हुए चिट्ठे ..आपके लिए नज़राना
prerna argal
02/06/2011 at 10:56 पूर्वाह्न
किसी के एकबार गलत व्यवहार से उसके साथ सम्बंध तोड़ लेते है। और यह हमारा क्रोध हमारे साथ बार बार गलत व्यवहार करता है, हम क्रोध से सम्बंध तोड़ क्यों नहीं देते?bahut gyaanverdhak vichaar.badhaai sweekaren/please visit my blog and feel free to comment.thanks.
Dilbag Virk
02/06/2011 at 11:53 पूर्वाह्न
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है ,.कृपया पधारें चर्चा मंच
Sawai Singh Rajpurohit
02/06/2011 at 12:01 अपराह्न
आदरणीय हंसराज 'सुज्ञजी,आपकी पोस्ट प्रेरणा से भरी है आभार आपका
CS Devendra K Sharma "Man without Brain"
02/06/2011 at 12:48 अपराह्न
achhce vichar prastut kie hain….अच्छा क्या है यह सभी जानते है, पर उसपर आचरण करने वाले विरले होते है। is wakya ka samarthan karte hue bas itna kahna chahunga ki jo galat karta hai vo jaan bujhkar galt nahi karta…jo galat karta hai wo pahle khud ko justify karta hai ki haa, wah jo bhi kar raha hai theek hai….agyantawash wah wo kar deta hai jo nahi karna chahta…kahne peechhe uddeshya yah hai ki kuchh bhi karne se pahle jisme galat hone ka sandeh ho, swayam ko nishpaksh vyakti ki kasauti me rakhkar apne hi girebaan me jhaank lena chahiye….
सुज्ञ
02/06/2011 at 2:24 अपराह्न
देवेन्द्र जी,अज्ञानता के विषय में भी वही कहुँगा कि 'ज्ञान अच्छा है सभी जानते हैं…' फ़िर भी विवेक हमें अपने गलत कामों के गलत होने का आभास दे देता है। उस विवेक को अक्सर परे फैकते हुए हम गलती को justify करने का प्लान गलती के पूर्व ही बना चुकते है।जैसे मज़ाक में भी किसी का अपमान करने पर हम जानते होते है वह गम्भीरता से भी लेगा। फिर भी करते हैं। और उसके गम्भीरता से लेने पर बडी मासूमियत से कहते है मुझे पता नहीं था(अज्ञानता), तूँ सिरियसली लेगा।
राज भाटिय़ा
02/06/2011 at 2:49 अपराह्न
अच्छा क्या है यह सभी जानते है, पर उसपर आचरण करने वाले विरले होते है। सहमत हे जी इन सुंदर विचारो से, धन्यवाद
Sachin Malhotra
02/06/2011 at 4:29 अपराह्न
बहुत बढ़िया !
सदा
07/06/2011 at 12:27 अपराह्न
बेहद प्रेरणात्मक एवं सार्थक प्रस्तुति ।