विनम्रता
16
मई
विनम्रता आपके आंतरिक प्रेम की शक्ति से आती है। दूसरों को सहयोग व सहायता का भाव ही आपको विनम्र बनाता है। यह कहना गलत है कि यदि आप विनम्र बनेंगे तो दूसरे आपका अनुचित लाभ उठाएँगे। जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गज़ब का धैर्य पैदा करती है। आपमे सोचने समझने की क्षमता का विकास करती है। विनम्र व्यक्तित्व का एक प्रचंड आभामंडल होता है। धूर्तो के मनोबल उस आभा से स्वयं परास्त हो जाते है। उल्टे जो विमम्र नहीं होते वे आसानी से प्रभावित हो जाते है क्योंकि धूर्त को तो मात्र मीठी बातों से उसका अहं सहलाना भर होता है। अहंकार यहाँ परास्त हो जाता है। किन्तु जहाँ विनम्रता होती है वहाँ तो सत्य की अथाह शक्ति भी होती है, जो मनोबल प्रदान करती है।
विनम्रता के प्रति समर्पित आस्था जरूरी है। मात्र दिखावे की विनम्रता असफ़ल ही होती है। ‘पहले विन्रमता से निवेदन करूंगा यदि काम न हुआ तो भृकुटि टेढी करूंगा’ यह चतुरता विनम्रता के प्रति अनास्था है, छिपा हुआ अहं भी है। कार्य पूर्व ही अविश्वास व अहं का मिश्रण असफलता ही न्योतता है। सम्यक् विनम्र व्यक्ति, विनम्रता को झुकने के भावार्थ में नहीं लेता। सच्चाई उसका पथप्रदर्शन करती है। निश्छलता उसे दृढ व्यक्तित्व प्रदान करती है।
अहंकार आपसे दूसरों की आलोचना करवाता है। वह आपको आलोचना-प्रतिआलोचना के एक प्रतिशोध जाल में फंसाता है। अहंकार आपकी बुद्धि को कुंठित कर देता है। आपके जिम्मेदार व्यक्तित्व को संदेहयुक्त बना देता है। अहंकारी दूसरों की मुश्किलों के लिए उन्हें ही जिम्मेवार कहता है और उनकी गलतियों पर हंसता है। अपनी मुश्किलो के लिए सदैव दूसरों को जवाबदार ठहराता है और लोगों से द्वेष रखता है।
विनम्रता हृदय को विशाल, स्वच्छ और ईमानदार बनाती है। यह आपको सहज सम्बंध स्थापित करने के योग्य बनाती है। विनम्रता न केवल दूसरों का दिल जीतने में कामयाब होती है अपितु आपको अपना ही दिल जीतने के योग्य बना देती है। आपके आत्म-गौरव और आत्म-बल में उर्ज़ा का अनवरत संचार करती है। आपकी भावनाओं के द्वन्द समाप्त हो जाते है, साथ ही व्याकुलता और कठिनाइयां स्वतः दूर होती चली जाती है। एक मात्र विनम्रता से सन्तुष्टि, प्रेम, और साकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है।
Rakesh Kumar
16/05/2011 at 9:19 अपराह्न
"एक मात्र विनम्रता से सन्तुष्टि, प्रेम, और साकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है।"विनम्रता का अति सुन्दर विश्लेषण कर सार्थक विवेचना की है आपने.जो ज्ञान संपन्न है ,आत्मशक्ति का जिन्होंने अर्जन किया है वे ही विनम्र होने की भी सामर्थ्य रखते हैं. विनम्रता कमजोरी नहीं ताकत है.ज्ञानसम्पन्न और शक्तिसंपन्न व्यक्तित्व की खुशबू है,जो सभी पर अपना सकारात्मक प्रभाव डाल आकर्षित करती है.आपकी अनुपम ज्ञान से परिपूर्ण अभिव्यक्ति को सादर नमन.
डॉ॰ मोनिका शर्मा
16/05/2011 at 9:59 अपराह्न
बहुत सुंदर….. सकारात्मक और अनुकरणीय विचार
Global Agrawal
16/05/2011 at 10:18 अपराह्न
एक मात्र विनम्रता से सन्तुष्टि, प्रेम, और साकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है। हाँ बढ़िया फंडा है , फिर से आकर पढूंगा …
सतीश सक्सेना
16/05/2011 at 11:03 अपराह्न
आपका यह लेख अपने आप में संपूर्ण है !निस्संदेह विनम्रता एक ऐसा धन है जो भले और सुयोग्य व्यक्तियों का दिल जीतने में समर्थ है और मेरा यह मानना है कि अगर हम १० दुर्जनों को छोड़, एक भी योग्य योग्य मित्र का दिल जितने में कामयाब रहे तो हम कामयाब रहे ! इस प्यारे लेख के लिए आपका आभार भाई जी !हार्दिक शुभकामनायें !
मनोज कुमार
16/05/2011 at 11:47 अपराह्न
भरे बादल और फले वृक्ष नीचे झुके रहते हैं सज्जन ज्ञान और धन पाकर विनम्र बनते हैं.
राज भाटिय़ा
16/05/2011 at 11:54 अपराह्न
हम जब भी विनम्रता बने, झुके लोगो ने लूटा ही हे, लेकिन हम ने भी आदत नही बदली
रश्मि प्रभा...
17/05/2011 at 12:06 पूर्वाह्न
vinamrata bahut hi achhi hai , per ek seema tak
संजय @ मो सम कौन ?
17/05/2011 at 7:31 पूर्वाह्न
सुबह सुबह आपका लेख पढ़कर चित्त प्रसन्न हो गया। ओढ़ी हुई विनम्रता सच में कुटिलता का ही रूप है लेकिन जो वास्तव में विनम्र है, वह धन्य है।अब एक स्वीकारोक्ति, इसे आप अहम समझें या कुछ और लेकिन जैसा रश्मिप्रभा जी ने कहा विनम्रता की भी सीमा होनी चाहिये। अति तो हर चीज की नुकसान पहुँचाती है।
सुज्ञ
17/05/2011 at 7:53 पूर्वाह्न
रश्मि जी,संजय जी,विनम्रता की एक सीमा पर सहमत हूँ, पर वह सीमा हमारे आवेश निर्धारित न करे। सामर्थ्य तक सीमा बढनी चाहिए। सीमा कर ठहर जाना उपयुक्त है। पर सीमा आते ही पलट कर पूर्ण विपरित बन जाना अनुचित है। ऐसा हुआ तो सीमा हमेशा विनम्रता तजने का बहाना होगी।जैसे ओढ़ी हुई विनम्रता को आपने कुटिलता नाम दिया,ठीक वैसे ही अति विनम्रता को मूढ़ता कहा जा सकता है। किन्तु सामान्य जन की अपेक्षा क्षमतावान सीमातीत हो सकते है, वह मूढ़ता नहीं होती।
Kunwar Kusumesh
17/05/2011 at 8:50 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया लिख रहे हैं सुज्ञ जी.सहमत.
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
17/05/2011 at 9:10 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर और उपयोगी आलेख। लेख के साथ ही मैं आपकी टिप्पणॆए से भी सहमत हूँ, विनम्रता एक व्यवहार भी है और आदत भी। उसकी सीमा नहीं होती है। एक शिष्ट व्यक्ति असहमति और विरोध में भी विनम्र प्रयास करेगा। जो विनम्र है उसे प्रयास भी क्या करना।
Rahul Singh
17/05/2011 at 10:06 पूर्वाह्न
शायद ऐसा हर व्यक्ति महसूस करता है, आपने उन्हें अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है.
ajit gupta
17/05/2011 at 10:35 पूर्वाह्न
विनम्रता वह गुण है जो जन्म के साथ मिलता है लेकिन जिन्हें नहीं मिलता उन्हें भी इस गुण को साधने का प्रयास करना चाहिए। बहुत अच्छा आलेख दिया है आपने।
VICHAAR SHOONYA
17/05/2011 at 10:59 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी प्रणाम,अपने एक बहुत ही बढ़िया बात कही है और जो रही सही कसर थी वो संजय जी की टिपण्णी का जवाब देकर अपने पूरी कर दी है. वास्तव में बेहतरीन लेख. मैं भी अपने जीवन में विनम्र होने का भरसक प्रयत्न करता हूँ पर लाल बहादुर शाश्त्री जैसा मेरा शारीरिक व्यक्तित्व देखकर लोगों को मेरी विनम्रता मेरे दब्बुपने जैसी दिखाई पड़ती है. हम उत्तरभारतीय एक विशेष attitude होता है की हम पहले अपना रोब दिखा कर सामने वाले को अपने बस में करना चाहते हैं. हम लोग तो विनम्रता को दब्बूपन ही समझते हैं. उत्तभारातियों के इस दृष्टि कोण पर एक पूरी पोस्ट लिखी जा सकती है. उत्तर भारतीयों की मानसिकता को एक महाकवि के शब्दों को कुछ परिवर्तित करके कहना चाहूँगा..विनय शोभता उस मलंग को जिसके पास मजबूत बदन,उसको क्या जो डेढ़ पसली बके नम्र वचन.
Global Agrawal
17/05/2011 at 11:23 पूर्वाह्न
इस चर्चा में आनंद आ गया सच्ची, और शायद पाण्डेय जी की नयी धमाकेदार पोस्ट का संभावित विषय भी पता चल गया :))
Global Agrawal
17/05/2011 at 11:53 पूर्वाह्न
मेरे ख़याल से बात अति की नहीं 'दूरदृष्टि की कमी' की है विनम्रता के साथ किया गया व्यवहार एक बीज की तरह है अब अगर आप ऐसी मन की धरती में बीज बोने की कोशिश कर रहे हैं जहां कुछ उगने की संभावना ही नहीं है , तब तो गलती अपनी ही है , मतलब दूरदृष्टि की कमी है , एक दूसरी बात ये भी है की फसल कभी कभी लेट उगती है , मतलब दूरदृष्टि + धैर्य + विनम्रता = मन की धरती में लहलहाती सदभावना की फसल[ इसमें कईं इनडायरेक्ट, अप्रत्याशित बेनिफिट भी होते हैं , ]सार बात है….. गुण कोम्बिनेशन के साथ यूजफुल होते हैं
Global Agrawal
17/05/2011 at 12:00 अपराह्न
लेख में ये लिखा है@ एक मात्र विनम्रता से सन्तुष्टि, प्रेम, और साकारात्मकता आपके व्यक्तित्व के स्थायी गुण बन जाते है।मुझे लगता है , इसे तरह से देखे की एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए .. इस आधार पर शुरुआत विनम्रता से की जाये तो कैसा रहे
Global Agrawal
17/05/2011 at 12:07 अपराह्न
स्पष्टीकरण:दूरदृष्टि + धैर्य + विनम्रता = मन की धरती में लहलहाती सदभावना की फसल इस फोर्म्यूले में गुणों की मात्रा परिस्थिति के अनुसार बदल सकती है ,हो सकता है एक परिस्थिति में जो मात्रा 'अति' है दूरी परिस्थिति में वो मात्रा 'सही' हो ….. अध्ययन, चिंतन और अनुभव से अपने आप अनुमान होने लगता है 🙂
Global Agrawal
17/05/2011 at 12:09 अपराह्न
ये इस विषय पर मेरी अपनी सोच है ….. जरूरी नहीं की लेखक महोदय मेरे विचारों से सहमत हों 🙂
सुज्ञ
17/05/2011 at 12:31 अपराह्न
दीप जी,@जैसा मेरा शारीरिक व्यक्तित्व देखकर लोगों को मेरी विनम्रता मेरे दब्बुपने जैसी दिखाई पड़ती है.गुणों की शक्ति शारिरिक सौष्ठव में थोडे ही होती है। लडाई में गालियां देना वीरता का परिचायक थोडे ही है। यह हमारी भीरू मानसिकता है। क्यों हम दब्बु नहीं दीखना चाहते? हमारा अहंकार हमें रोकता है, दब्बु दिखने से। और अहंकार और विनम्रता दोनो विपरित गुण है।यह केवल उत्तरभारतीय attitude नहीं है, यह तो मनुष्य मात्र का attitude है। सरलता में स्थित रहना बड़ा मुश्किल होता है और वह गजब की सहनशीलता व धैर्य मांगती है, जबकि दबंग रूख अख्तियार करना सहज हो जाता है। अधूरे में पूरा कारण मिल जाता है कि विनम्रता से कार्य नहीं होता। महाकवि की उक्त काव्य विचारधारा से मैं सहमत नहीं। इसका भावार्थ तो यह हुआ कि गुणों पर भी दबंगो का एकाधिकार होता है। निर्बल को तो क्षमा देने का भी अधिकारी नहीं?उस साधु नें भी सहनशीलता की साधना नहीं की थी, जिसने सांप को न डसने का व्रत दिया और बच्चों द्वारा सताए जाने पर कहता है-'मैने तुझे डसनें को मना किया था, यह नहीं कहा था फुफ्कारना भी मत'। यहां एक स्वसुख निरधारित सीमा पर गुण त्याग का निर्देश है।
सञ्जय झा
17/05/2011 at 12:55 अपराह्न
sad-aacharan ka pratham vyabhar 'vinamrata' hi hai……sahi hai ke 'ati' kisi bhi baat ko bura bana deta hai……aur is 'ati' ki sima vyktigat hota hai……….jitni sundar path utni achhi tippani…………annandam…annandam….pranam.
VICHAAR SHOONYA
17/05/2011 at 1:01 अपराह्न
गौरव की दूरदृष्टि + धैर्य + विनम्रता और इनकी सही मात्र वाली बात में दम है..
सुज्ञ
17/05/2011 at 1:06 अपराह्न
गौरव (ग्लोबल) जी,इस बात से सहमत हूँ@"मेरे ख़याल से बात अति की नहीं 'दूरदृष्टि की कमी' की है विनम्रता के साथ किया गया व्यवहार एक बीज की तरह है अब अगर आप ऐसी मन की धरती में बीज बोने की कोशिश कर रहे हैं जहां कुछ उगने की संभावना ही नहीं है , तब तो गलती अपनी ही है , मतलब दूरदृष्टि की कमी है , एक दूसरी बात ये भी है की फसल कभी कभी लेट उगती है"और मैने कहा भी है कि- "जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गज़ब का धैर्य पैदा करती है।"@"दूरदृष्टि + धैर्य + विनम्रता = मन की धरती में लहलहाती सदभावना की फसल"मैं मानता हूँ विनम्रता के साथ ही विशालदृष्टि, दूरदृष्टि और धैर्य खीचे चले आते है। या समाहित ही होते है।@गुण कोम्बिनेशन के साथ यूजफुल होते हैं सही कहा गौरव जी, और गुणों का अपना प्राकृतिक कोम्बिनेशन होता है। जैसे सावन मे बारिश के बाद स्वतः मेघधनुष की रचना होती है, प्रकृति को रंग बिखेरने नहीं पडते। हर गुण कई गुणो का समुच्य होता है। और दूसरे गुणो पर सवार होकर ही आते है और आगे के गुण भी रचते चलते है।
Global Agrawal
17/05/2011 at 1:42 अपराह्न
हाँ .. तो इसका मतलब हुआ की मेरे और सुज्ञ जी एक विचार इसा विषय पर भी मिलते हैं 🙂 लेख तो अपने आप में सम्पूर्ण है ही …….. पाण्डेय जी भी सहमत हैं ..एक राज की बात :सुज्ञ जी के विचार पढने (ओपिनियन जानने )के लिए भी इस तरह के डिस्क्लेमर यूज किये जाते हैं :)@"जरूरी नहीं की लेखक महोदय मेरे विचारों से सहमत हों 🙂 "क्योंकि सुज्ञ जी के विचार पढना सदैव आनंद देता है …. उनमे हमेशा परफेक्शन होता है
Global Agrawal
17/05/2011 at 1:47 अपराह्न
सुधार : #…इसका मतलब हुआ की मेरे और सुज्ञ जी एक विचार इसा विषय पर भी मिलते हैं 🙂 …को ऐसे पढ़ें …@इसका मतलब हुआ की मेरे और सुज्ञ जी के विचार इस विषय पर भी मिलते हैं 🙂
सुज्ञ
17/05/2011 at 2:11 अपराह्न
गौरव जी,यथार्थ से सहमत होना ही चाहिए, मान मोड़ कर !!अच्छे विचार सदैव ही मिलते है।रश्मि जी, संजय जी और दीप जी को प्रतिटिप्पणी देने का यह आशय नहीं है कि मैं 'अति'सिद्धांत से सहमत नहीं, मैं सापेक्षता के सिद्धान्त का अनुसरण करता हूँ।और फिर विपरित विचारों को तो अधिक सम्मान मिलना चाहिए……दो फायदे होते है। एक तो आपको अपनी बात को अधिक स्पष्ठ करने का अवसर मिल जाता है या दो, आपको अपने विचार शुद्ध करने का मूल्यवान चांस!!
संगीता स्वरुप ( गीत )
17/05/2011 at 3:47 अपराह्न
अहंकारी दूसरों की मुश्किलों के लिए उन्हें ही जिम्मेवार कहता है और उनकी गलतियों पर हंसता है। अपनी मुश्किलो के लिए सदैव दूसरों को जवाबदार ठहराता है और लोगों से द्वेष रखता है.यह बात बिल्कुल सही लिखी है … बहुत सटीक और सार्थक लेख …
Deepak Saini
17/05/2011 at 6:21 अपराह्न
बहुत बढ़िया लिखा है आपने विनम्रता जीवन का एक आभूषण है शुभकामनये
कविता रावत
17/05/2011 at 8:25 अपराह्न
Vinamra insaan kee har jagah kadra hoti hai….bahut sundar vinamra prastuti ….
Vivek Jain
18/05/2011 at 12:22 पूर्वाह्न
विनम्रता पर बहुत बढ़िया लिखा है आपने साभार विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay
18/05/2011 at 4:39 अपराह्न
सार्थक पोस्ट ..शुभकामनायें
ZEAL
18/05/2011 at 5:40 अपराह्न
.विनम्रता हृदय को विशाल, स्वच्छ और ईमानदार बनाती है। यह आपको सहज सम्बंध स्थापित करने के योग्य बनाती है। विनम्रता न केवल दूसरों का दिल जीतने में कामयाब होती है अपितु आपको अपना ही दिल जीतने के योग्य बना देती है…Great thoughts !Thanks Sugya ji..
नूतन ..
18/05/2011 at 7:36 अपराह्न
विनम्रता आत्मशक्ति है , पर सीमा से अधिक नहीं , क्योंकि वह कमजोरी बन जाती है
ताऊ रामपुरिया
28/05/2013 at 1:07 अपराह्न
मेरी समझ से विनम्रता आंतरिक सोच का एक फ़ल है, जो स्वयं के द्वारा स्वयं के (पेड)मन पर पैदा होता है. और यह हमेशा ही सुस्वादु और गुण्कारी होता है. दूसरी तरफ़ बाजार से खरीद कर (ओढी हुई)लाया गया फ़ल है जो ज्यादा टिकाऊ नही होता है.यदि व्यक्ति अपनी सोच से ही विनम्र है तो उसे दिखावे की आवश्यकता नही पडती, इसके विपरीत की विनम्रता की पोल खुलने में जरा भी समय नही लगता.बहुत ही उम्दा आलेख.रामराम.