-कवि भंवरलाल ‘भृंग’
-कवि भंवरलाल ‘भृंग’
विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
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मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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अरुण चन्द्र रॉय
25/04/2011 at 2:42 अपराह्न
बढ़िया कविता !
रश्मि प्रभा...
25/04/2011 at 2:43 अपराह्न
achhi rachna
Rakesh Kumar
25/04/2011 at 4:27 अपराह्न
बेहतरीन,शानदारप्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,जैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।
नीरज गोस्वामी
25/04/2011 at 5:16 अपराह्न
वाह…वाह…वाह…बेहतरीन छंद…नीरज
राज भाटिय़ा
25/04/2011 at 11:13 अपराह्न
अति सुंदर कविता, धन्यवाद।
मनोज कुमार
25/04/2011 at 11:28 अपराह्न
बहुत अच्छी रचना से परिचय कराया आपने। आभार।
निर्मला कपिला
27/04/2011 at 12:29 अपराह्न
दिल से निकले हुये उद्गार। शुभकामनायें।
रंजना
29/04/2011 at 4:34 अपराह्न
ओह….मन मुग्ध हो गया…क्या कृति है….अद्वितीय !!!बहुत बहुत आभार आपका पढने का सुअवसर देने के लिए…