मातेव रक्षति पितेव हिते वियुकंते,
लक्ष्मीस्तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्ति,
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माता की भांति रक्षा करती है, पिता की तरह हित में प्रवृत रहती है, पत्नी के समान खेद हरण कर आनंद देती है, लक्ष्मी का उपार्जन करवाती है, संसार में कीर्ति प्रदान करती है। सदविद्या वास्तव में कल्पलता के समान है।
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ZEAL
14/03/2011 at 12:02 अपराह्न
सदविद्या वास्तव में कल्पलता के समान है।So true!.