विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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Rahul Singh
25/01/2011 at 7:58 पूर्वाह्न
सजग करती पंक्तियां. ('धड़ी' को 'घड़ी' सुधार करने पर विचार कर लें)
सतीश सक्सेना
25/01/2011 at 8:52 पूर्वाह्न
सही चेतावनी सुज्ञ जी ! शुभकामनायें !
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
25/01/2011 at 9:33 पूर्वाह्न
चेताने के लिय्रे धन्यवाद..
Kunwar Kusumesh
25/01/2011 at 9:36 पूर्वाह्न
ज्योत बन जीना धड़ी भर का भी सार्थक,जल के दे उजाला उस दीप का सानी नहीं है.वाह वाह .बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
sanjay jha
25/01/2011 at 10:58 पूर्वाह्न
chintaniya prashn…..pranam.
ehsas
25/01/2011 at 11:03 पूर्वाह्न
बिल्कुल सही सोच। आभार।
deepak saini
25/01/2011 at 12:01 अपराह्न
वाह, क्या बात कही हैबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
प्रतुल वशिष्ठ
25/01/2011 at 12:28 अपराह्न
.वाह भाई !उचित उपदेश को कहती कमाल की कवितायी. .
वन्दना
25/01/2011 at 1:27 अपराह्न
वाह ! क्या बात कही है…………बहुत सुन्दर्।
सम्वेदना के स्वर
25/01/2011 at 6:04 अपराह्न
सही बात है! समय चूकि पुनि का पछतानि!!
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
26/01/2011 at 12:23 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी! जब यहाँ आता हूँ, ख़ाली हाथ नहीं जाता हूँ..
उपेन्द्र ' उपेन '
26/01/2011 at 12:58 पूर्वाह्न
कौन सी सुबह जलाओगे तमन्नाओं का चराग़?शाम से ही टूट गई आस तो फिर क्या होगा?bahut hi bavpurn pratuti…….
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
26/01/2011 at 7:02 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर!
ZEAL
26/01/2011 at 10:25 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर विचार !
वन्दना महतो !
26/01/2011 at 10:39 पूर्वाह्न
ज्योत बन जीना घड़ी भर का भी सार्थक,जल के दे उजाला उस दीप का सानी नहीं है———— कितनी गहरी बात कह दी आपने!
Coral
26/01/2011 at 1:37 अपराह्न
बहुत सुन्दर रचना है आप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
Kailash C Sharma
26/01/2011 at 2:51 अपराह्न
जब वक्त ही न रहा पास तो फिर क्या होगा?बहुत सही कहा..सभी वक्त के गुलाम हैं..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनायें !
वर्ज्य नारी स्वर
26/01/2011 at 9:03 अपराह्न
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ…..बहुत सुन्दर विचार……बहुत सुन्दरआभार…………….
ana
26/01/2011 at 9:29 अपराह्न
बहुत सुन्दर रचना……….. गहरी बात…. वाह