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समाज का चिंतन
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विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
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मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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वन्दना महतो !
22/01/2011 at 4:02 पूर्वाह्न
बिलकुल सही चिंता जताई है आपने. विकास के नाम पर लोग दिन ब दिन अलग थलग होते जा रहे है.
डॉ॰ मोनिका शर्मा
22/01/2011 at 5:45 पूर्वाह्न
सामूहिकता की समरसता का सुख अलग ही होता है…..इससे दूर हो रहे हैं… विचारणीय
Rahul Singh
22/01/2011 at 6:51 पूर्वाह्न
सविनय असहमत सुज्ञ जी. अपने इर्द-गिर्द एक बार फिर नजर दौड़ाएं.यह जरूर माना जा सकता है कि उपरी और सरसरी तौर पर देखने से ऐसा ही लगता है, जैसा आपने लिखा है, किन्तु अगर ऐसा है तो वह सतह पर है. मेरे निवेदन पर एक बार प्रयास करें मानवता, सामाजिकता की न जाने कितनी मिसालें आपके दिख जाएंगी, उसके बाद आने वाली आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.
सुज्ञ
22/01/2011 at 9:18 पूर्वाह्न
राहुल जी,प्रस्तुत चिंतन में मानव की सामुहिकता (समाज)पर चिंता जतायी गई है।आपकी असहमति अपार हर्ष दे रही है कि मानवता और सामाजिकता पर सकारात्मक सोच कायम है,उम्मीदें है।और जो इस विचार से सहमत हो चिंता प्रकट कर रहे है,उनकी भी मनोभावना तो सामुहिकता समरसता रूपी समाज के अस्तित्व के पक्ष में है।
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
22/01/2011 at 11:02 पूर्वाह्न
बुद्धि और विवेक में क्या अन्तर है… रामचरितमानस में एक चौपाई भी है.. बुद्धि और विवेक के बारे में..
sanjay jha
22/01/2011 at 11:18 पूर्वाह्न
prabudh-jano ke tippani pe aapki prati-tippani kaintzar rahega……pranam.
सुज्ञ
22/01/2011 at 12:50 अपराह्न
भारतीय नागरिक जी,'बुद्धि' जिसका उपयोग उचित अनुचित जानने में किया जाता है। जो सोच और विचारों का मंथन मात्र है, बुद्धि द्वारा ज्ञात उचित अनुचित में से उचित का चुनाव 'विवेक'कहलाता है।संजय झा जी,इस प्रतिउत्तर से कदाचित न्याय कर पाया होऊं।
ZEAL
22/01/2011 at 1:09 अपराह्न
सब तरह के लोग हैं समाज में , कुछ पशुवत , कुछ मित्रवत ।
विरेन्द्र सिंह चौहान
22/01/2011 at 2:03 अपराह्न
Main aapse Sahmat hun. 'Budhhi' aur 'vivek' ke baare men Apke vichar pasand aaye. 'Divya' ji ne bhi sahi likha hai ki Dona hi trah ke log hai yahaan par.Jo achhe log hai vo prerit karte hain, umeed jagaten hain.
Kailash C Sharma
22/01/2011 at 3:00 अपराह्न
बहुत सुन्दर चिंतन..वास्तव में कई मायनों में तो पशु आचरण से भी निम्न हो चुके हैं..
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
22/01/2011 at 7:07 अपराह्न
सुज्ञ जी!समाज की प्रवृत्ति का सही चित्रण!!
प्रतुल वशिष्ठ
22/01/2011 at 7:32 अपराह्न
.मित्र सुज्ञ जी, पशु होना वैसे तो कोई गुनाह नहीं किन्तु बुद्धि और भाषा होने के बावजूद भी पशुवत रहना गुनाह है. समाज की अवधारणा सभ्यता की प्राथमिक शर्त है. मैंने कभी संसार में पशु के न होने पर चिंतन किया था तो यह प्राप्त हुआ. यह कविता रात्रिकालीन है. इस कारण स्यात 'चिंतन' में 'तमस' तत्व की संभावना अधिक हो सकती है. ………… पशु ………….यदि पशु न होतातो पशुता न होती …
प्रतुल वशिष्ठ
22/01/2011 at 7:33 अपराह्न
…पशुता न होती तो मन शांत होता…
प्रतुल वशिष्ठ
22/01/2011 at 7:33 अपराह्न
..मन शांत होता, क्या रति भाव होता?
प्रतुल वशिष्ठ
22/01/2011 at 7:34 अपराह्न
..रति भाव से ही तो सृष्टि बनी हैरति भाव में भी तो पशुता छिपी हैहै पशुता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती वरना मनुष्य देव की योनि पाताअमैथुन कहाता, अहिंसक कहाता तब सृष्टि की कल्पना भी न होतीसंसार संसार होने न पाताहोता यहाँ भी शून्य केवलअतः पशु से ही संसार संभव।.
राज भाटिय़ा
22/01/2011 at 7:45 अपराह्न
आज मनुष्यों ने भाषा,वाणी,बुद्धि,विवेक और चिंतन होते हुए भी समाज को तार तार कर उसे झुंड (भीड) बना दिया हैं। सिर्फ़ पैसो के लिये आज मनुष्या जानवर बन गया हे, ओर दुसरो का खुन पी रहा हे
उपेन्द्र ' उपेन '
22/01/2011 at 10:03 अपराह्न
सुज्ञ जी बहुत ही सार्थक चिंतन……… समाज की बदलती दशा को बहुत ही अच्छी तरह से आप ने दिखाया है. सच आदमी दिन प्रति दिन असामाजिक होता जा रहा है जो चिंता का विषय है.
deepak saini
22/01/2011 at 11:43 अपराह्न
Sarthak chintansamaj humse hai jaisa dekho vaisa paogeachchha bhi bura bhi
वाणी गीत
23/01/2011 at 8:31 पूर्वाह्न
सार्थक चिंतन !
संगीता स्वरुप ( गीत )
23/01/2011 at 6:56 अपराह्न
आज मनुष्यों ने भाषा,वाणी,बुद्धि,विवेक और चिंतन होते हुए भी समाज को तार तार कर उसे झुंड (भीड) बना दिया हैं।सटीक और सार्थक चिंतन ..
madansharma
29/01/2011 at 9:15 अपराह्न
बड़े अच्छे लेख प्रस्तुत कर रहे हैं सुज्ञ जी ।
हल्ला बोल
28/04/2011 at 4:30 अपराह्न
sugy ji, shubhkamna. jai sri Ram