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आज कल के चक्कर में ही, मानव जाता व्यर्थ छला॥
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विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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ehsas
22/01/2011 at 10:28 पूर्वाह्न
आज करे सो कर ले रे बंधु, कल की पक्की आश नहीं।जीवन बहता तीव्र पवन सा, पलभर का विश्वास नहीं।मौत के दांव के आगे किसी की, चलती नहीं है कोई कला।आज कल के चक्कर में ही, मानव जाता व्यर्थ छला॥अति सुन्दर। आपका धन्यवाद।
राज भाटिय़ा
22/01/2011 at 7:11 अपराह्न
चलिये हम भी कल टिपण्णी करेगे जी. धन्यवाद इस सुंदर विचार के लिये
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
25/01/2011 at 4:17 अपराह्न
सुझ जी, बहुत अच्छी बात कही आपने। आभार।——-क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?