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यदि……कर न सको तो…
08
जनवरी
यदि भला किसी का कर न सको तो,बुरा किसी का मत करना।
यदि अमृत न हो पिलाने को तो, ज़हर के प्याले मत भरना।
यदि हित किसी का कर न सको तो, द्वेष किसी से मत करना।
यदि रोटी किसी को खिला न सको तो,भूख-भीख पे मत हंसना।
यदि सदाचार अपना न सको तो, दुराचार डग मत धरना।
यदि मरहम नहिं रख सकते तो, नमक घाव पर मत धरना।
यदि दीपक बन नहिं जल सकते तो, अन्धकार भी ना करना।
यदि सत्य मधुर ना बोल सको तो, झूठ कठिन भी ना कहना।
यदि फूल नहिं बन सकते तो, कांटे बन न बिखर जाना।
यदि अश्क बिंदु न गिरा सको तो, आंख अगन न गिरा देना।
यदि करूणा हृदय न जगा सको तो, सम्वेदना न खो देना।
यदि घर किसी का बना न सको तो,झोपडियां न जला देना।
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Akhtar Khan Akela
08/01/2011 at 8:58 अपराह्न
vaah bhaayi vaah aapka aydi bhut khub he or is ydi ko hm to yaad rkhenge hi shi lekin agr kisi or ne bhi yaad rkha to zindgi j sudhr jaayegi . akhtar khan akela kota rajthan
संजय भास्कर
08/01/2011 at 9:02 अपराह्न
बहुत खूब, लाजबाब !
deepak saini
08/01/2011 at 9:08 अपराह्न
अनमोल वचन
राज भाटिय़ा
08/01/2011 at 10:09 अपराह्न
आज कल यही सब तो हो रहा हे , बस आप ने दो शव्द ज्यादा लिख दिये हे कही ”मत” तो कही ”ना” बस इन्हे हटा कर देखे लोग आप का कहना मान रहे हे.बहुत सुंदर बात कही अप ने धन्यवाद
Rahul Singh
08/01/2011 at 10:32 अपराह्न
गुडी गुडी नसीहतें.
मनोज कुमार
08/01/2011 at 10:35 अपराह्न
बहुत अच्छी सूक्तियां। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का प्रथम पाठ पढाने वाले महाकवि विद्यापति
anshumala
08/01/2011 at 10:54 अपराह्न
इनमे से एक दो बुरे काम तो कर ही लेती हु कभी अनजाने में कभी जान कर | शायद सभी करते होंगे नहीं करते तो इन्सान से भगवान ना बन जाते |
सुज्ञ
08/01/2011 at 11:12 अपराह्न
राज जी,शानदार मानवीय युक्ति,सही बात यही करता है मानव!!अंशुमाला जी,यह पूरा इन्सान के लिये है, यदि की छूट सहित। अन्यथा भगवान के लिये यदि वाले वाक्यांश का कोई मायने नही। यदि का उपयोग करते हुए मानव कभी भगवान नहीं बन सकता।
सतीश सक्सेना
08/01/2011 at 11:21 अपराह्न
बेहतर सन्देश …..मगर पढ़ेगा कौन ?? काश हम लोग इसे समझ सकें …. आभार सुज्ञ जी !
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
09/01/2011 at 2:12 पूर्वाह्न
सुज्ञ जी!पढना भी और गुनना भी! समझना भी मुश्किल नहीं. अनुकरण करना तो और भी आसान है.शुरुआत किए बिना छोड़ देना ही भूल है!
सुज्ञ
09/01/2011 at 8:41 पूर्वाह्न
सलिल जी,श्रेष्ठ साकारात्मक अभिगम है आपका,जहाँ चाह वहाँ राह!!प्रेरक वचन है आपके
anshumala
09/01/2011 at 5:50 अपराह्न
सुज्ञ जी मेरे लिए तो दानव और देवता दोनों ही मानव के ही दो रूप है | जिनमे ये सारे अवगुण है जो इन अवगुणों को जान कर अपनाता है वो दानव के समान हुआ और जो हर परिस्थितीमें इन गुणों को अपनाये वो मानव भगवान के समान है | हम जैसे मानव तो बस ऐसे है जो खुद से ना तो द्वेष की शुरुआत करते है ना किसी के जले पर नामक छिड़कते है लिकिन कोई यही काम हमारे साथ करे तो सबक सिखाने के उद्देश से इन अवगुणों को आपनाने से भी परहेज नहीं करते है | क्या करे हम आम इन्सान जो है | ये विचार कही से भी आप की बात गलत कहने के लिए नहीं कह रही हु ये सिर्फ एक विचार है | मै तो स्वयं चाहती हु की ऐसे अच्छे विचार आप निरंतर लिखते रहे कम से कम पढ़ा कर कही ना कही दिमाग में बैठे रहेंगे हमें खुद को सुधारने के लिए प्रेरित करते रहेंगे |
सुज्ञ
09/01/2011 at 6:45 अपराह्न
अंशुमाला जी,गुणवान को देवस्वरूप मान लेने में कोई बुराई नहीं है।किन्तु अवगुणी व द्वेषी से बदले या सबक स्वरूप भी द्वेष करने से सबक तो बहुत कम मिलता है पर बदले की एक श्रंखला का निर्माण अवश्य हो जाता है।मेरे द्वारा प्रस्तुत सदविचार मेरे होते ही नहीं है,ऐसी बातों के विचार-बीज तो महापुरूषों प्रदत्त होते है,मुझे क्या कोई मुझे गलत भी कह दे?आपने सही कहा,"कम से कम पढ़ कर कही ना कही दिमाग में बैठे रहेंगे हमें खुद को सुधारने के लिए प्रेरित करते रहेंगे"|बस यही आस्था है मेरी भी,तत्काल कोई परिणाम दिखाई नहीं देते,बार बार गुनने-मनने से इन विचारो के 'सद्विचार' होनें का दृढ विश्वास मन में स्थाई रहे, बस।ऐसा होता नहीं?, ऐसा करेगा कौन?, यह सम्भव नहीं?, मानेगा कौन?जैसी नाकारात्मकता इन विचारो को चोट पहुंचाती है। और मन में उतरने नहीं देती।
Kunwar Kusumesh
09/01/2011 at 9:10 अपराह्न
सुन्दर सन्देश,अच्छी बातें.अनुकरणीय