मेरी मातृ वाणी का उपहास हो न जाय।
Monthly Archives: दिसम्बर 2010
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिलाषा के लिए
मेरी मातृ वाणी का उपहास हो न जाय।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ अभिव्यक्ति के लिए
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मृगतृष्णा सी होती है मैत्री
अपेक्षाएं हो असीम, मृगतृष्णा सी होती है मैत्री।
निश्छल नेह मिले कहां, मात्र दंभ पे पलती है मैत्री।
दमन के चलते है दांव, छल को ही छलती है मैत्री।
मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पर चलती है मैत्री।
निपट जाते है जब काम, स्वार्थ सी खलती है मैत्री।
जीवन के 50 वर्ष मैने बालक अवस्था में ही खो दिए
आज मेरा चिंतन दिवस है। निश्चित ही बहुमूल्य मनुष्य जीवन पाना अतिदुर्लभ है। पता नहीं कितने ही शुभकर्मों के पश्चात यह मनुष्यायु प्राप्त होती है। कठिन शुभकर्मों से उपार्जित इस प्रतिफल को मुझे वेस्ट करना है या पुनः उत्थान विकास के लिये इनवेस्ट करना है।
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पाथेय बांध संबल, गंतव्य दूर तेरा॥ उठ जाग……
रचनाकार: अज्ञात
(यह गीत मेरे लिये नवप्रभात का प्रेरक है)
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