एक व्यक्ति कपडे सिलवाने के उद्देश्य से दर्जी के पास गया। दर्जी अपने काम में व्यस्त था। उसे व्यस्त देखकर वह उसका निरिक्षण करने लगा, उसने देखा सुई जैसी छोटी चीज को सम्हाल कर, वह अपने कॉलर में लगा देता और कैंची को वह अपनें पांव तले दबाकर रखता था।दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो इस प्रकार रखने का उद्देश्य मात्र यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे। किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उँच-नीच के उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है, अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटकर जुदा करने का कार्य करती है, अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
वह सोचने लगा, कितना गूढ़ रहस्य है। सही ही तो है, लोग भी अपने इन्ही गुणो के कारण उपयुक्त महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें अन्ततः अपमान ही मिलता है
कैंची, आरा, दुष्टजन जुरे देत विलगाय !
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
राज भाटिय़ा
30/12/2010 at 8:16 अपराह्न
बहुत सुंदर विचार जी धन्यवाद
Rahul Singh
30/12/2010 at 9:08 अपराह्न
कैंची और आरा तो फिर भी उपयोगी हैं, दुष्ट जन के लिए क्या कहें, उन्हें भी नमन.
अनामिका की सदायें ......
31/12/2010 at 10:11 पूर्वाह्न
vaah bahut sunder darshnikta ka udaahran diya.rochak prastuti ke sath.nav varsh mangalmay ho.
sanjay jha
31/12/2010 at 10:25 पूर्वाह्न
aapke prerak prasang manmohak hote hain….pranam.
खबरों की दुनियाँ
01/01/2011 at 9:14 पूर्वाह्न
नववर्ष स्वजनों सहित मंगलमय हो आपको । सादर – आशुतोष मिश्र
अनामिका की सदायें ......
02/01/2011 at 12:07 पूर्वाह्न
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं