दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो उद्देश्य यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे, किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटने का, जुदा करने का कार्य करती है अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
ब्लॉगर सोचने लगा कितना गूढ रहस्य है, सही तो है ब्लॉगर भी अपने इन्ही गुणो के कारण उचित महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, ब्लॉगजगत में सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें कोई सभ्य ब्लॉगर महत्व नहीं देता।
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
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दीर्घतमा
27/12/2010 at 12:39 पूर्वाह्न
एक अच्छी पोस्ट सकारात्मक पहल .
राज भाटिय़ा
27/12/2010 at 12:55 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर बात कही आप ने इस कहावत के जरिये, धन्यवाद
abhishek1502
27/12/2010 at 2:24 पूर्वाह्न
very nice
वाणी गीत
27/12/2010 at 7:01 पूर्वाह्न
अच्छी और सच्ची बात !
Akhtar Khan Akela
27/12/2010 at 7:55 पूर्वाह्न
vhaan hnsraaj bhaayi bhut bdaa flsfaa aapne hmen sikha diya shukriya . akhtar khan akela kota rajsthan
Kunwar Kusumesh
27/12/2010 at 8:44 पूर्वाह्न
ज़बरदस्त सन्देश देती हुई ये पोस्ट मुझे बहुत प्यारी लगी,सुज्ञ जी.बड़ी सटीक और सही बात .
केवल राम
27/12/2010 at 9:02 पूर्वाह्न
वक़्त की नजाकत को समझते हुए प्रेरणादायक विचार , जीवन में ढालने योग्य …आपका बहुत बहुत आभार
सतीश सक्सेना
27/12/2010 at 9:35 पूर्वाह्न
बिलकुल ठीक कह रहे हैं आपक ! शुभकामनायें भाई जी !
अमित शर्मा
27/12/2010 at 10:17 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया सन्देश !तभी तो कहा गया है —-कैंची, आरा, दुष्टजन जुरे देत विलगाय !सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
पुष्पा बजाज
27/12/2010 at 10:35 पूर्वाह्न
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है . * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?हाँ ! क्यों नहीं !कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.इसमें भी एक अच्छी बात है.अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
anshumala
27/12/2010 at 11:29 पूर्वाह्न
बिल्कुल सही बात कही किन्तु हर व्यक्ति को उसके नजरिये से देखिये तो उसे लगता है की वो सही ही कर रहा है | क्या कोई खुद को गलत मानता है क्या |
सुज्ञ
27/12/2010 at 11:52 पूर्वाह्न
अंशुमाला जी,भले न कैंची स्वयं को सुई समझे,उपयोग करने वाला तो बेहतर जानता है,कौन क्या कर रहा है।
सुज्ञ
27/12/2010 at 11:54 पूर्वाह्न
अमित जी,आपका यह छंद साभार पोस्ट में सम्मलित कर रहा हूँ।धन्यवाद इस शानदार टिप्पणी के लिये।
प्रतुल वशिष्ठ
27/12/2010 at 1:57 अपराह्न
.सूई न केवल सिलती ही है बल्कि कपडे कस जाने पर उन्हें उधेड़कर दोबारा सिलती भी है. — कुछ ब्लोगर ऐसे भी तो हो सकते हैं. सूई का बेसिक काम सिलने का ही है. सूई और कैंची से आपने ब्लोगर्स स्वभावों के कपडे क़तर दिए. कमाल का है यह प्रसंग. पसंद आया. यहाँ आप सूई और कैंची से स्वभाव बता रहे हैं. दूसरी तरफ संजय अनेजा जी 'प्याज़' से तुलना कर रहे हैं. लगता है कि 'ब्लोगर-स्वभाव' पर शोध चल रहा है. .
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
27/12/2010 at 2:09 अपराह्न
सुज्ञ जी,इस पोस्ट की जितनी तारीफ़ की जाय कम है !-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
JAGDISH BALI
27/12/2010 at 2:55 अपराह्न
very fantastic post. Small but interesting and with a moral message.
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
27/12/2010 at 4:05 अपराह्न
सटीक बात की है सुज्ञ जी, बधाई।———अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क। मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
मंजुला
27/12/2010 at 5:49 अपराह्न
सटीक बात की है…. बधाई।
ZEAL
27/12/2010 at 8:37 अपराह्न
.मुझे लगता है ब्लोगर जब जोड़ने और तोड़ने में लग जाते हैं तो अपने लेखन कर्म से विमुख हो जाते हैं। इसलिए जोड़ने, तोड़ने , सम्मान और अपमान से अलग रहकर, बस साहित्य की सेवा करनी चाहिए ब्लोगर्स को। आभार। .
फ़िरदौस ख़ान
27/12/2010 at 8:56 अपराह्न
सार्थक पोस्ट… आपने सही कहा है, लेकिन हर इंसान अपने स्वभाव के मुताबिक़ ही तो काम करता है…
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
27/12/2010 at 11:46 अपराह्न
सुज्ञ जी! अनमोल वचन!! रहीम ने भी सुई को तलवार के ऊपर बतलाया है! वैसे एक और गुण है सुई में, वो सबको एक आँख से देखती है, समदर्शी है!!
स्वप्निल कुमार 'आतिश'
28/12/2010 at 2:20 पूर्वाह्न
sugya jee…. sachmuch ek gahari baat kahi aapne… blog jagat ke logon ke saamne unke bhale kee baat ek uttam udaharan ke sath prastut kee hai aapne…
वन्दना
28/12/2010 at 5:05 अपराह्न
बिल्कुल सही और सच्ची बात्।
अन्तर सोहिल
28/12/2010 at 5:07 अपराह्न
सही कहा जीइस प्रेरक पोस्ट के लिये आभारप्रणाम स्वीकार करें
विरेन्द्र सिंह चौहान
28/12/2010 at 5:57 अपराह्न
Very meaningful post. Congratulations Sir ji…..
अल्पना वर्मा
28/12/2010 at 11:43 अपराह्न
'ब्लोगर और दर्जी' की लघु कथा में सुन्दर सन्देश है .आभार.
जी.के. अवधिया
29/12/2010 at 11:34 पूर्वाह्न
सुन्दर सन्देश देता हुआ सार्थक पोस्ट!
sada
30/12/2010 at 4:09 अपराह्न
बहुत ही सुन्दर एवं गहन भावों के साथ प्रेरक प्रस्तुति …नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
amit-nivedita
31/12/2010 at 12:28 पूर्वाह्न
बहुत अच्छा संदेश,आभार। नववर्ष की शुभकामनाएं
ajit gupta
02/01/2011 at 1:58 अपराह्न
क्या बात है सुज्ञ जी, बिल्कुल आनन्द देने वाली बात कह दी। बहुत ही अच्छी प्रेरक बात।
वन्दना
02/01/2011 at 1:58 अपराह्न
आपकी अति उत्तम रचना कल के साप्ताहिक चर्चा मंच पर सुशोभित हो रही है । कल (3-1-20211) के चर्चा मंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।http://charchamanch.uchcharan.com
M VERMA
03/01/2011 at 8:48 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर आपने तो इस लघुकथ्य के जरिये ब्लागजगत का दर्शन दिखला दिया
खबरों की दुनियाँ
03/01/2011 at 9:05 पूर्वाह्न
अच्छी सीख देने वाली पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
दिगम्बर नासवा
03/01/2011 at 5:22 अपराह्न
acchhee soch darshaati है आपकी पोस्ट … बहुत अच्छा लिखा है …
Er. सत्यम शिवम
03/01/2011 at 9:13 अपराह्न
बहुत ही सुंदर…………नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए…*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)