(गुरु नानक वाणी की बोध कथा का ब्लॉग रुपान्तरण)
ब्लॉगजगत में एक संत ब्लॉगर, ब्लॉग दर ब्लॉग घूम रहे थे। साथ एक शिष्यब्लॉगर भी था। संतब्लॉगर छांट-छांट कर ब्लॉग्स पर आशीर्वचन – टिप्पणियाँ कर रहे थे। अच्छे विचारों वाले ब्लॉग्स पर आशिर्वाद देते “आपका ब्लॉग उजडा रहे” और दुर्विचारों वाले ब्लॉग्स पर आशिर्वाद देते “आपका ब्लॉग, पोस्ट-दर-पोस्ट से भरा-पू्रा रहे”
शिष्यब्लॉगर को बडा आश्चर्य हो रहा था, उसने पूछा महात्मन् यह क्या? आप बुरे विचार फ़ैलाने वालों को तो पोस्टों से भरने-फूलने का आशिर्वाद दे रहे है, और अच्छे ब्लॉग्स को उजडने का? यह क्या बात हुई गुरूवर?
संतब्लॉगर ने शिष्य को समझाते हुए कहा- वत्स!, अच्छे विचारवान ब्लॉगर कहीं भी जाय, हमेशा अच्छे विचारों का प्रसार ही करेंगे, जब उनके ब्लॉग पर गप्प गोष्ठियां नहीं जमेगी तो वे निश्चित ही दूसरे ब्लॉग्स पर अच्छे विचारों की टिप्पणीयां करेंगे, जिससे अच्छे विचारों का प्रसार चौतरफा होगा। उनका अधिक विचरण सुविचारों को समृद्ध करेगा।
शिष्यब्लॉगर- तो फ़िर दुर्विचारों वाले ब्लॉग्स को अधिक पोस्ट का आशिर्वाद क्यों भंते?
संतब्लॉगर- वत्स!, वे दुर्विचार वाले ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखते रहें, मात्र लिखने में ही व्यस्त रहेंगे। इस तरह उन्हें दूसरे ब्लॉग्स पर कुविचार टिप्पणियाँ करने का समय ही नहीं मिलेगा। न वे विचरण करेंगे न सौजन्यवश सज्जनों को कुसंगत में जाने की मजबूरी रहेगी। जिससे दुर्विचार उनके अपने ब्लॉग तक सीमित हो जाएँगे और उसका प्रसार न होगा, और। जिन पाठको का सद्विचारों से दूर दूर तक कोई नाता न होगा, वे पाठक जाय भी तो क्या। और इस तरह दुर्विचारों का प्रसार व प्रचार भरे पूरे होने के अहंकार में कुंठित हो जाएगा।
शिष्यब्लॉगर, संतब्लॉगगुरू की औजस्वी निर्मलवाणी में छिपी दूरदृष्टि देख नतमस्तक हो गया।
राज भाटिय़ा
27/12/2010 at 11:18 अपराह्न
अरे मुझे लगता हे मैने इसे कल परसॊ भी पढा था? ओर टिपण्णी भी दी थी, लेकिन मेरी टिपण्णी दिखाई नही दे रही?
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
28/12/2010 at 11:15 पूर्वाह्न
सार्थक चिंतन।———अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क। मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
रंजना
28/12/2010 at 2:16 अपराह्न
हा हा हा हा…जबरदस्त…एकदम सही कहा संत (सीनियर)ब्लागर ने…
sanjay jha
29/12/2010 at 10:22 पूर्वाह्न
aap to chikni rassi se lapet diye…..pranam.
Kunwar Kusumesh
29/12/2010 at 2:45 अपराह्न
बहुत बढ़िया .सुज्ञ जी, मुझे भी लग रहा है की इस पर मैं पहले टिप्पणी दे चुका हूँ.मगर वो टिप्पणी दिख नहीं रही
सुज्ञ
30/12/2010 at 7:38 अपराह्न
राज भाटिया जी,कुंवर कुसुमेश जी,यह मेरा 'सुबोध' ब्लॉग है, एक तरह का री-ठेल ब्लॉग। जहां सुज्ञ की रचनाओं को परिष्कृत कर पुनः प्रकाशित करता हूं।एक तो वह सम्वर्धित हो जाती है, और अन्य पाठकों तक पहूँचती भी है।आपको असुविधा के लिये खेद है।