यात्री पैदल रवाना हुआ, अंधेरी रात का समय, हाथ में एक छोटी सी टॉर्च। मन में विकल्प उठा, मुझे पांच मील जाना है,और इस टॉर्च की रोशनी तो मात्र पांच छः फ़ुट ही पडती है। दूरी पांच मील लम्बी और प्रकाश की दूरी-सीमा अतिन्यून। कैसे जा पाऊंगा? न तो पूरा मार्ग ही प्रकाशमान हो रहा है न गंतव्य ही नजर आ रहा है। वह तर्क से विचलित हुआ, और पुनः घर में लौट आया। पिता ने पुछा क्यों लौट आये? उसने अपने तर्क दिए – “मैं मार्ग ही पूरा नहीं देख पा रहा, मात्र छः फ़ुट प्रकाश के साधन से पांच मील यात्रा कैसे सम्भव है। बिना स्थल को देखे कैसे निर्धारित करूँ गंतव्य का अस्तित्व है या नहीं।” पिता ने सर पीट लिया……
सार:-
अल्प ज्ञान के प्रकाश में हमारे तर्क भी अल्पज्ञ होते है, वे अनंत ज्ञान को प्रकाशमान नहीं कर सकते। जब हमारी दृष्टि ही सीमित है तो तत्व का अस्तित्व होते हुए भी हम उसे देख नहीं पाते।
राज भाटिय़ा
20/12/2010 at 9:34 अपराह्न
आज के नोजवानो को अल्प ग्याण ही हे, जो दुर की नही सोचते, बस आज की ओर नजदीक की ही सोचते हे, बहुत सुंदर विचार. धन्यवाद
sanjay jha
21/12/2010 at 12:19 अपराह्न
achhi tatwa-mimansha…..pranam.
नीरज गोस्वामी
21/12/2010 at 3:52 अपराह्न
कमाल की बात कही है आपने…साधुवाद.नीरज
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
21/12/2010 at 4:16 अपराह्न
मैंने "सुग्य" पर इस बोध कथा को पहले ही पढ़ी है !मन को आलोकित कर देने वाली रश्मियाँ पैदा करती है यह लघु कथा !-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुज्ञ
21/12/2010 at 4:50 अपराह्न
राज भाटिय़ा जी,संजय झा जी,नीरज गोस्वामी जी,ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी,प्रस्तूति की सराहना के लिये आभार।(यह लघु-कथा 'सुज्ञ'ब्लॉग से यहाँ पुनः प्रकाशित की गई है)
अमित शर्मा
22/12/2010 at 11:43 पूर्वाह्न
शायद ऐसे ही गाफिल हो रहे है आज सभी ……………….
विरेन्द्र सिंह चौहान
22/12/2010 at 7:20 अपराह्न
अल्प ज्ञान के प्रकाश में हमारे तर्क भी अल्पज्ञ होते है, वे अनंत ज्ञान को प्रकाशमान नहिं कर सकते। यदि हमारी दृष्टि ही सीमित है तो तत्व का अस्तित्व होते हुए भी हम देख नहिं पाते।—-सुज्ञ बिल्कुल सही कहा है आपने….आपकी बातों से सहमत न होने का कोई कारण ही नहीं।
सुज्ञ
22/12/2010 at 11:53 अपराह्न
अमित जी,विरेन्द्र जी,आभार, बंधुओं अभिव्यक्ति को आधार देने के लिये
ZEAL
23/12/2010 at 7:55 अपराह्न
बहुत बढ़िया सार बताया आपने ।आभार।
Kunwar Kusumesh
24/12/2010 at 1:25 अपराह्न
ज्ञान चक्षु खुला रहे तो अंधकार पर विजय पाई जा सकती है. तब टार्च हो या न हो कोई फर्क नहीं पड़ता
POOJA...
25/12/2010 at 11:37 पूर्वाह्न
सही कहा आपने… अल्पज्ञान ज्ञान न होने से भी खतरनाक है…धन्यवाद…
Kailash C Sharma
30/04/2011 at 7:29 अपराह्न
बहुत सार्थक कथन..