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ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिव्यक्ति के लिए…………

13 दिसम्बर
(1) 
 
है सभ्यता की मांग शिक्षा संस्कार की।
विवेक से पाई यह विद्या पुरस्कार सी।
अश्लील दृश्य देखे मेरे देश की पीढी।
गर्त भी इनको लगती विकास की सीढी।
नवपीढी कहीं कपडों से कंगली न हो जाय।
और नाच इनका कहीं जंगली हो जाय।
इसलिये मैं लिखता नूतन शक्ति के लिए।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिव्यक्ति के लिए॥
(2)
आभिव्यक्ति का अक्षर अनुशासन है हिन्दी।
सहज सरल समझ का संभाषण है हिन्दी।
समभाषायी छत्र में सबको एक करती है।
कई लोगों के भारती अब तो पेट भरती है।
प्रलोभन में हिन्दी का कहीं हास होजाए।
और मेरी मातृ वाणी का उपहास हो जाय।
इसलिए मैं लिखता मेरी भाषा के लिए।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिलाषा के लिए॥
 (3)
मानव है तो मानवता की कद्र कुछ कीजिए।
अभावग्रस्त बंधुओ पर थोडा ध्यान दीजिए।
जो सुबह खाते और शाम भूखे सोते है
पानी की जगह अक्सर आंसू पीते है।
आंसू उनके उमडता सैलाब हो न जाए।
और देश के बेटे कहीं यूं तेज़ाब हो न जाए।
इसलिए मैं लिखता अन्तिम दीन के लिए।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस यकीन के लिए॥
 (4)
निरीह जीवहिंसा में जिनको शर्म नहीं है।
बदनीयत के सब बहाने, सच्चा कर्म नहीं है।
यूँ भूख स्वाद की कुतर्की में मर्म नहीं है।
‘जो मिले वह खाओ’ सच्चा धर्म नहीं है।
दिलों से दया भाव कहीं नष्ट हो न जाए।
सभ्यता विकास आदिम भ्रष्ट हो न जाए।
इसलिये मैं लिखता सम्वेदना मार्ग के लिए।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ दु:चिंतन त्याग के लिए।
____________________________________________
 
5 टिप्पणियां

Posted by पर 13/12/2010 में बिना श्रेणी

 

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5 responses to “ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिव्यक्ति के लिए…………

  1. राज भाटिय़ा

    13/12/2010 at 11:06 अपराह्न

    ्बहुत सुंदर जी धन्यवाद

     
  2. sanjay jha

    14/12/2010 at 12:06 अपराह्न

    'sugya-rajhans' yahi kah sakte in moti-mala ke liye……prnam

     
  3. sanjay jha

    14/12/2010 at 12:07 अपराह्न

    aur han kripya guruji ke 'kavy therepy' evam acharyaji 'alvida blogri' ke tino bhag avashya dekhen…..pranam.

     
  4. amar jeet

    18/12/2010 at 8:42 पूर्वाह्न

    ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस अभिव्यक्ति के लिए…………बहुत सुंदर भाव बस इसी तरह लिखते रहे ब्लॉग के लिए ……….

     
  5. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’

    18/12/2010 at 3:47 अपराह्न

    आपके विचार मन को झंकृत कर जाते हैं। हमारी सदभावनाऍं स्‍वीकारें।———छुई-मुई सी नाज़ुक… कुँवर बच्‍चों के बचपन को बचालो।

     

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