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ब्लॉग मैं लिखता हूँ बस सुमार्ग के लिए
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विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी
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anshumala
13/12/2010 at 5:20 अपराह्न
ब्लॉग लेखन पर आप के विचारो की ये कडिया अच्छी लग रही है | वैसे खुद को हम कैसे परखे की हम विचार दे रहे है या कुविचार |
सुज्ञ
13/12/2010 at 5:32 अपराह्न
अंशुमाला जी,भारी करी!!!एक ही तरीका है, यदि हम कोई विचार स्वार्थवश रखते है तो विचारों में अहित दृ्ष्टिगोचर हो जाता है। यदि उसमें सर्वसुखाय नजर आये तो समझना चाहिए यह सुविचार ही है।
कविता रावत
13/12/2010 at 6:23 अपराह्न
मनों से अनुकम्पा कहीं नष्ट हो न जाए।सभ्यता विकास आदिम भ्रष्ट हो न जाए।इसलिये मैं लिखता सम्वेदना मार्ग के लिए।ब्लॉग मैं लिखता हूँ कुविचार त्याग के लिए…….बहुत अच्छे विचार है आपके …ऐसे ही सभी ब्लोग्गेर्स के सोच बने यही शुभकामना है …
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
13/12/2010 at 6:35 अपराह्न
सद्विचारों के लिये धन्यवाद..
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
13/12/2010 at 6:46 अपराह्न
सद्विचारों के लिये धन्यवाद..
Arvind Mishra
13/12/2010 at 7:38 अपराह्न
इससे अच्छी जगहं कहीं और मिलेगी भी नहीं कुविचार त्यागने के लिए 🙂
सुज्ञ
13/12/2010 at 8:02 अपराह्न
अरविन्द जी,एकदम सत्यवदन टिप्पणी, सक्षात अरविन्द मिश्र ब्राण्ड 🙂
Kunwar Kusumesh
13/12/2010 at 9:20 अपराह्न
निरपराध जीवहिंसा में जिनको शर्म नहिं है।बदनीयत के है बहाने, सच्चा कर्म नहिं है।भूख स्वाद की कुतर्की में मर्म नहिं है।‘जो मिले वह खाओ’ सच्चा धर्म नहिं है।बात बहुत अच्छी कही है आपने मगर जीव हत्या करने वालों कि समझ में आये तब न
मनोज कुमार
13/12/2010 at 10:54 अपराह्न
आपके सुविचार से प्रेरणा मिलती है। इसे ग्रहण करना ही चाहिए।
सतीश सक्सेना
13/12/2010 at 11:18 अपराह्न
बढ़िया वचन हंसराज जी ! आपका आभार !
राज भाटिय़ा
13/12/2010 at 11:30 अपराह्न
अति सुंदर विचार जी धन्यवाद
डॉ॰ मोनिका शर्मा
13/12/2010 at 11:58 अपराह्न
सार्थक विचार…..
पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
14/12/2010 at 3:26 पूर्वाह्न
इसलिये मैं लिखता सम्वेदना मार्ग के लिए।ब्लॉग मैं लिखता हूँ कुविचार त्याग के लिए।!सुविचार! बस आप यूँ ही पथ पर दीप जलाते चलिए…..ताकि हम जैसे राहगीरों को भी अंधमार्ग में भटकने की नौबत न आन पडे 🙂
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
14/12/2010 at 5:30 अपराह्न
सुज्ञ भाई, अच्छी सोच है। ऐसी सोच कम देखने को मिलती है।———दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
कुमार राधारमण
14/12/2010 at 10:57 अपराह्न
जिस घड़ी मन में यह बात आ जाए कि मैं कुविचारों से घिरा हूं,शुद्धिकरण की प्रक्रिया उसी वक्त शुरु हो गई समझिए। फिर उसका माध्यम ब्लॉग बने या कुछ और।
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
15/12/2010 at 11:00 पूर्वाह्न
चेतना को संस्कारित विचारों से सुवासित करती आपकी पोस्ट अच्छी लगी !शुभकामनाओं के साथ ,-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Apanatva
22/12/2010 at 1:25 अपराह्न
sarthak lekhan…..aabhar
रंजना
23/12/2010 at 1:47 अपराह्न
वाह…क्या बात कही है…