रचनाकार: अज्ञात
(यह गीत मेरे लिये नवप्रभात का प्रेरक है)
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विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
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मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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महेन्द्र मिश्र
03/12/2010 at 9:59 अपराह्न
बढ़िया रचना भाव आभार सुज्ञ जी …
sanjay jha
04/12/2010 at 10:12 पूर्वाह्न
ati sundar……pranam
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
04/12/2010 at 5:33 अपराह्न
अत्यंत प्रेरणाप्रद रचना। पढकर अच्छा लगा।———ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
सुज्ञ
04/12/2010 at 8:13 अपराह्न
महेन्द्र मिश्र जी,संजय जी,रजनीश जी,सराहना के लिये आभार
पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
04/12/2010 at 8:29 अपराह्न
उठ जाग मुसाफिर भौर भई…..लेकिन मुसाफिर बेचारा क्या करे, गलती से कुम्भकर्णी निद्रासन का वर जो माँग बैठा है 🙂
विरेन्द्र सिंह चौहान
07/12/2010 at 6:51 अपराह्न
Bahut sunder aur sarthak………..