आजीविका मुक्तक
- आजीविका कर्म भी धर्म-प्रेरित चरित्र युक्त करना चाहिए।
- जीवन निर्वाह के साथ साथ जीवन निर्माण भी करना चाहिए।
- परिवार का निर्वाह गृहस्वामी बनकर नहीं बल्कि गृहन्यासी (ट्रस्टी) बनकर निस्पृह भाव से करना चाहिए।
- सत्कर्म से प्रतिष्ठा अर्जित करें व सद्चरित्र से विश्वस्त बनें।
- कथनी व करनी में समन्वय करें।
- कदैया (परदोषदर्शी) नहिं, सदैया (परगुणदर्शी) बने।
- सद्गुण अपनानें में स्वार्थी बनें, आपका चरित्र स्वतः परोपकारी बन जायेगा।
- इन्द्रिय विषयों व भावनात्मक आवेगों में संयम बरतें।
- उपकारी के प्रति कृतज्ञ भाव और अपकारी के प्रति समता भाव रखें।
- भोग-उपभोग को मर्यादित करके, संतोष चिंतन में उतरोत्तर वृद्धि करनी चाहिए।
- आय से अधिक खर्च करने वाला अन्ततः पछताता है।
- कर्ज़ लेकर दिखावा करना, शान्ती बेच कर संताप खरीदना है।
- प्रत्येक कार्य में लाभ हानि का विचार अवश्य करना चाहिए, फिर चाहे कार्य ‘वचन व्यवहार’ मात्र ही क्यों न हो।
- आजीविका-कार्य में जो साधारण सा झूठ व साधारण सा रोष विवशता से प्रयोग करना पडे, पश्चाताप चिंतन कर लेना चाहिए।
- राज्य विधान विरुद्ध कार्य (करचोरी, भ्रष्टाचार आदि) नहीं करना चाहिए। त्रृटिवश हो जाय तब भी ग्लानी भाव महसुस करना चाहिए।
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टैग: आत्मचिंतन, व्यवसाय, सुविचार
Gourav Agrawal
28/11/2010 at 5:29 पूर्वाह्न
सत्य, सुन्दर, सारगर्भित
डॉ॰ मोनिका शर्मा
28/11/2010 at 5:45 पूर्वाह्न
हर पंक्ति जीवन में उतारने योग्य …
संगीता स्वरुप ( गीत )
28/11/2010 at 2:06 अपराह्न
बहुत सारगर्भित सीख …अच्छी प्रस्तुति
Vandana ! ! !
28/11/2010 at 2:47 अपराह्न
ऐसे सद्गुणों व सद्विचारों से जीवन जिसका अलंकृत हो, उससे ज्यादा भाग्यशाली कौन होगा. अच्छी सीख मिलती है आपके पोस्ट में आकर. सबको अमल करने की कोशिश भी करुँगी, मैं इतना तो मानती हूँ अब भी मुझमे बदलाव की जरूरत है.
सुज्ञ
28/11/2010 at 4:02 अपराह्न
गौरव जी, डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,संगीता जी दीदी,आभार आपका इस सराहाना के लिये।
सुज्ञ
28/11/2010 at 4:05 अपराह्न
वन्दना !!!जी,सभी को बदलाव की आवश्यक्ता होती ही है, आखिर हमारा उद्देश्य उत्थान है उतरोत्तर उत्थान!!
POOJA...
28/11/2010 at 4:08 अपराह्न
आज फ़िर कुछ खास बातें सीखने को मिलीं… जो हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी हैं…
अमित शर्मा
28/11/2010 at 5:07 अपराह्न
सत्य, सुन्दर, सारगर्भित
अमित शर्मा
28/11/2010 at 5:08 अपराह्न
आपके ब्लॉग पर हमेशा नई ज्ञानपूर्ण बातें सीखने को मिलती है आभार आपका
deepak saini
28/11/2010 at 6:05 अपराह्न
ज्ञानपूर्ण बातें हर पंक्ति जीवन में उतारने योग्य …
अर्चना तिवारी
28/11/2010 at 6:35 अपराह्न
सुंदर विचार …
केवल राम
28/11/2010 at 7:33 अपराह्न
सद्गुण अपनानें में स्वार्थी बनें, आपका चरित्र स्वतः परोपकारी बन जायेगा। सारी बातें जीवन में धारण करने वाली हैं …शुक्रिया चलते -चलते पर आपका स्वागत है
सुज्ञ
28/11/2010 at 8:17 अपराह्न
पूजा जी,अमित जी,दीपक सैनी जी,अर्चना तीवारी जी,केवल राम जी,इस प्रस्तूति को सराहने के लिये आपका आभार।
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
28/11/2010 at 9:09 अपराह्न
एक एक बात अनुकरणीय!
mahendra verma
28/11/2010 at 10:16 अपराह्न
अनुकरणीय संदेश देती हुई सुंदर प्रस्तुति।
दिगम्बर नासवा
29/11/2010 at 12:30 अपराह्न
इस सभी बातों का पालन करना आसान नहीं पर अगर शुरुआत भी हो सके तो कितना अछा हो ….
arvind
29/11/2010 at 1:36 अपराह्न
सत्य, सुन्दर, सारगर्भित
अरविन्द जांगिड
29/11/2010 at 7:33 अपराह्न
सुन्दर रचना के लिए आपका, आत्मीय धन्यवाद.
विरेन्द्र सिंह चौहान
29/11/2010 at 8:32 अपराह्न
सत्य वचन.
ZEAL
29/11/2010 at 9:32 अपराह्न
उपयोगी विचार ।
डा० अमर कुमार
30/11/2010 at 2:46 पूर्वाह्न
नासवा जी की बात को आगे बढ़ाते हुये…जब यही सब पालन करना है, तो ज़िन्दगी में लुत्फ़ ही क्या रहा..?भाई लोग पकड़-धकड़ कर मुझे पागलखाने न पहुँचा दें, तो ग़नीमत मानियेगा ।प्रत्यक्षम किं प्रमाणम ? इनमे से कई सूत्र मैंने अपने जीवन में उतार रखा है, यकीन मानें क्रैक या हाफ़-माइँड माना जाता हूँ !
दीपक डुडेजा DEEPAK DUDEJA
30/11/2010 at 12:26 अपराह्न
जीवन को अपने पूर्णता की और अग्रसर करने हेतु उत्तम विचार……. यदि अपना ले तो धरा स्वर्ग से भी अच्छी हो जाए .साधुवाद
सुज्ञ
30/11/2010 at 12:48 अपराह्न
डा. अमर कुमार जी,आपका आना हर्षित कर गया, यह चाहत थी कई दिनो से!!, आभार बंधु!!@प्रत्यक्षम् किं प्रमाणम्…॥ ?गुणग्राहक हमेशा अर्ध-पागलो में खपते है, संवेदनशील लोग सनकी कहे जाते है। और सद-गुणवानो को तो विक्षिप्त ही करार दे दिया जाता है। क्योकि अधिसंख्य लोग सहज पतन को सामान्य व्यवहार की तरह लेते है, जबकि गुणो को स्वीकार करना तो बहाव के विपरित दृढ आस्था से तैरना है, जैसे बिना किसी दृष्यमान लाभ के कठोर परिश्रम करना। ऐसा कठिन कार्य सनकी ही कर पाते है। इसीलिये यह मुहावरा बना है शायद कि बैठे ठाले ‘कौन कहे आ बैल मुझे मार’लेकिन कोयल काले रंग के उल्हाने से गाना क्यों छोडे!
सतीश सक्सेना
30/11/2010 at 5:26 अपराह्न
यह श्रंखला बहुत अच्छी और दुर्लभ है, बचपन में अधिकतर दुकानों पर लटके पोस्टर से ही ऐसे विचार और ज्ञान मिलता था ! सवाल अपने जीवन में उतारने का नहीं, कम से कम पढ़कर व्यवहार में लाने की सोंचे तो सही …केवल सोचने मात्र से भी प्रकाश दिखेगा ! बहुत दिन बाद आ पाया ..आगे शिकायत नहीं दूंगा ! आप यकीनन अच्छा कार्य कर रहे हैं सुज्ञ ! हार्दिक शुभकामनायें !
P.N. Subramanian
01/12/2010 at 10:35 पूर्वाह्न
संतुलित जीवन हेतु बेहद अनुकरणीय दिशा निर्देश. आभार.
देवेन्द्र पाण्डेय
01/12/2010 at 7:34 अपराह्न
सुंदर विचार।जैसे पानी की बूदें पत्थर पर भी छेद कर देती है वैसे ही अच्छे विचार पढ़ते-पढ़ते कुछ तो मन शुद्ध हो ही जाएगा। आपकी प्रयास वंदनीय है।
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
02/12/2010 at 4:28 अपराह्न
सुज्ञ जी,बहुत ही सारगर्भित और जीवनोपयोगी विचार हैं !आज ऐसे ही चिंतन की आवश्यकता है !-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Girish Billore 'mukul'
03/12/2010 at 2:15 पूर्वाह्न
सामयिक बातब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आधिकारिक रपट
सुज्ञ
03/12/2010 at 12:30 अपराह्न
@सलिल जी,@महेन्द्र वर्मा जी,@दिगम्बर नासवा जी,@अरविन्द जी@अरविन्द जांगिड जी,@विरेन्द्र जी,@दिव्या जी,@दीपक डुडेज़ा जी,@सतीश जी,@सुब्रमणियन जी,@देवेन्द्र जी,@मर्मज्ञ जी,@गिरिश जी 'मुकुल'आप सभी का आभार, सराहना के लिये।
rashmi ravija
03/12/2010 at 2:53 अपराह्न
हर वाक्य में सुन्दर सारगर्भित सन्देश छुपा है….जीवन में उतारने योग्य
Amrita Tanmay
05/12/2010 at 7:47 अपराह्न
आपने जो भी मार्ग बताया ..उसपर चलकर ही स्वयं के उत्थान का आकलन किया जा सकता है . प्रेरक .पोस्ट
Asha Saxena
12/11/2012 at 8:21 अपराह्न
जानने और सीखने योग्य बातें |दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |आशा