जितना लिया इस प्रकृति से, उसका रत्तीभर अंश भी लौटाने की तेरी नीयत नहिं। लौटाना क्या, संयत उपयोग की भी तेरी कामना न बनी। प्रकृति ने तुझे संतति विस्तार का वरदान दिया। तूं अपनी संतान को माँ प्रकृति के संरक्षण में नियुक्त करता, अपनी संतति को प्रकृति के मितव्ययी उपभोग का ज्ञान देता। निर्लज्ज, इसी तरह संतति विस्तार के वरदान का ॠण चुकाता। किन्तु तुने अपनी औलादों से लूटेरो की फ़ौज़ बनाई और छोड दिया कृपालु प्रकृति को रौंदने के लिए। वन लूटे, जीव-प्राण लूटे, पहाड के पहाड लूटे।निर्मल बहती नदियाँ लूटी,उपजाऊ जमीने लूटी। समुद्र का खार लूटा, स्वर्णधूल अंबार लूटा। इससे भी न पेट भरा तो, खोद तरल तेल भी लूटा।
तूने तो प्रकृति के सारे गहने उतार, उसे उजाड ही कर दिया। हे! बंजरप्रिय!! कृतघ्न मानव!!! प्रकृति तो फ़िर भी ममतामयी माँ ही है, उससे तो तेरा कोई दुख देखा नहिं जाता। उसकी यह चिंता रहती है, कि मेरे उजाड पर्यावरण से भी बच्चो को तकलीफ न हो। वह ईशारे दे दे कर संयम का संदेश दे रही है। पर तूं भोगलिप्त भूखा जानकर भी अज्ञानी ही बना रहा। कर्ज़ मुक्त होने की तेरी कभी भी नीयत न रही। हे! अहसान फ़रामोश इन्सान!! कृतघ्न मानव!!!
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पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
27/11/2010 at 12:15 पूर्वाह्न
प्रकृति के यहाँ कठोर दंड का प्रावधान नहीं है. वो दंड भी देती है तो वो कभी भी मानवीय धैर्य और सहनशीलता की हद नहीं तोडती…शायद इसी लिए…
निर्मला कपिला
27/11/2010 at 10:16 पूर्वाह्न
बिलकुल सही कहा आपने मानव ने सभी हदें पार कर दी। प्रकृ्रि से सीखने के बजाये उसे नष्ट करने पर तुला है। तृष्णा वो भूख है जो कभी नही मिटती। अच्छी लगी पोस्ट। धन्यवाद।
sanjay
27/11/2010 at 11:06 पूर्वाह्न
पर तेरी बेलगाम इच्छाओं की तृष्णा कभी शान्त न हुई, कृतघ्न मानव।kitni sachhi bat….pranam.
Tausif Hindustani
27/11/2010 at 11:12 पूर्वाह्न
क्या बात है 'सुज्ञ' जी एक ही लेख कई ब्लॉग पर चलिए अच्छा ही है , सुन्दर विचार जिंतनी दूर तक पहुंचे उतना ही अच्छा dabirnews.blogspot.com
विरेन्द्र सिंह चौहान
29/11/2010 at 8:00 अपराह्न
आपसे सहमत हूँ.
विरेन्द्र सिंह चौहान
29/11/2010 at 8:00 अपराह्न
आपसे सहमत हूँ.
ZEAL
30/11/2010 at 5:53 अपराह्न
अपने पर्यावरण का ध्यान नहीं रखेंगे तो विपरीत परिणाम भुगतने ही पड़ेंगे।