विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
WordPress.com is the best place for your personal blog or business site.
जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी
The latest news on WordPress.com and the WordPress community.
अमित शर्मा
15/11/2010 at 9:51 अपराह्न
विवेक दरिद्र : परमात्मा ने हर मनुष्य को सही गलत की पहचान के लिए विवेक नामक परम शक्ति दी है. पर हम सभी विवेक धन को ठोकर मारकर महान दरिद्र बन चुके है .
अमित शर्मा
15/11/2010 at 9:52 अपराह्न
आभार इस पोस्ट के लिए
सुज्ञ
15/11/2010 at 10:10 अपराह्न
अमित जी,सही कहा……विवेक दरिद्र : बुद्धि होते हुए भी विवेक का उपयोग न करे।आभार।
सम्वेदना के स्वर
15/11/2010 at 11:49 अपराह्न
मेरे विचार में दरिद्र वो भी हैं जो किसी के उपकार को भुलाकर आभार का एक शब्द भी व्यक्त नहीं करते.. आभार कि अभिव्यक्ति उस उपकार के प्रतिदान से भी ऊपर है..
सुज्ञ
16/11/2010 at 12:01 पूर्वाह्न
चैतन्य जी,सच में आप चैतन्य है…।कृतज्ञता दरिद्र : कृतघ्न,उपकारी के प्रति आभार भी प्रकट नहिं कर पाता।
एस.एम.मासूम
16/11/2010 at 12:59 अपराह्न
सुज्ञ जी आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं . इस विषय पे मैंने भी कुछ कहा है. धन दरिद्र: जिसे अच्छे मित्र मिलें और वोह शक के कारण उस मित्रता को कुबूल ना कर सके
प्रतुल वशिष्ठ
16/11/2010 at 1:41 अपराह्न
..आस्था दरिद्र : जो सत्य पर भी कभी आस्थावान नहिं होता।@ इसकी परिभाषा यों होनी चाहिए जो सत्य जानकार भी न सत्य कहता है. या किसी लोभ के विवश मूक रहता है. उस कुटिल राजतंत्री कदय को धिक् है,यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं बधिक है. …………रामधारी सिंह दिनकर ने ऐसे आस्था दरिद्रों को बधिक की श्रेणी में रखा है. ..
प्रतुल वशिष्ठ
16/11/2010 at 1:42 अपराह्न
..त्याग दरिद्र : समर्थ होते हुए भी, जिससे कुछ नहिं छूटता।@ पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे?यदि आज़ नहीं तो सुयश और कब लेंगे? तूफ़ान उठेगा, प्रलय-बाण छूटेगा, है जहाँ स्वर्ण, बम वहीँ स्यात, फूटेगा. …………. दिनकर जी कहते हैं जहाँ त्याग नहीं होता, वहीं कारण बनता है जन-आक्रोश का, क्रान्ति का, आन्दोलन का. ..
प्रतुल वशिष्ठ
16/11/2010 at 1:42 अपराह्न
..दया दरिद्र : प्राणियों पर लेशमात्र भी अनुकम्पा नहिं करता।@दरिद्र का अर्थ यदि अभाव से है तो वह एकाधिक भावों में देखी जा सकती है. और यदि मूल्यों की अवमानना से है तो वे केवल संख्या में उतने ही हैं जितने कि वैदिक संस्कृति के आधार 'मूल्य'. अभाव तो हम बहुतेरों में सौन्दर्य का, समझ का, तौर-तरीकों (व्यवहार) का पाते हैं. लेकिन वह दारिद्र्य …… मूल्य-दरिद्रता से कमतर आंकी जाती है. ..
प्रतुल वशिष्ठ
16/11/2010 at 1:43 अपराह्न
..फिलहाल मेरा ब्लॉग टिप्पणी-दरिद्रता का शिकार है. ..
सुज्ञ
16/11/2010 at 2:09 अपराह्न
मासूम साहब,@जिसे अच्छे मित्र मिलें और वोह शक के कारण उस मित्रता को कुबूल ना कर सके।##यदि उसे शक हो और मित्रता स्वीकार न कर पाये, तो सच्चा मित्र उसका शक दूर करने का प्रयास करता है, न कि बार बार उसे शक्की होने के उल्हाने दिया करता है। जब उल्हाने दिया करता है तो उसके शक दूर होने की जगह और भी मज़बूत होते चले जाते है।
सुज्ञ
16/11/2010 at 2:14 अपराह्न
प्रतुल जी,बेहद ज्ञानवर्धक…… "यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं बधिक है. "और, दरिद्र का अर्थ,मूल्यों का अभाव ही कहलो!! अथवा गुणहीन होना दरिद्रता है।
सुज्ञ
16/11/2010 at 2:20 अपराह्न
@फिलहाल मेरा ब्लॉग टिप्पणी-दरिद्रता का शिकार है.प्रतुलजी, मेरे अकेले की कुबेरी भी न चलेगी।:)और फिर हम भी अभावो में पल रहे है।मुंह से सद्वचन कुछ ज्यादा निकल जाते है, और लोग बाबा ही समझते है। बाबा को आजकल कौन मानता है।
वाणी गीत
16/11/2010 at 5:11 अपराह्न
दरिद्र के ये भी प्रकार हैं …बहुत बढ़िया !
वन्दना
16/11/2010 at 5:38 अपराह्न
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
एस.एम.मासूम
16/11/2010 at 5:43 अपराह्न
मित्र शक का इलाज हमीक लुकमान के पास भी नहीं, शक का इलाज वक़्त के पास हुआ करता है.
सुज्ञ
16/11/2010 at 5:46 अपराह्न
वाणी जी,दरिद्रों के कुछ ज्यादा ही प्रकार है इसलिये बहुत बढिया? :))जिन जिन बातों की स्मृद्धि होती है प्रतिलोम में दरिद्रता होती है।आभार आपका।
सुज्ञ
16/11/2010 at 5:48 अपराह्न
वदना ज़ी, खुब खुब आभार।
सुज्ञ
16/11/2010 at 5:51 अपराह्न
@शक का इलाज हमीक लुकमान के पास भी नहींमासूम साहब,यह मात्र कहावत है, वक्त कोई इलाज नहिं करता। प्रयास हमें ही करने पडते है बस हमारे प्रयास वक्त ले लेते है।
एस.एम.मासूम
16/11/2010 at 6:30 अपराह्न
प्रयास कभी सफल नहीं होता यदि शक बे बुनियाद हो. मित्रता इंसान से की जाती है, विचार हर विषय पे एक जैसे हूँ यह आवश्यक नहीं,क्योंकि दो व्यक्ति कभी एक जैसे नहीं हो सकते. वोह व्यक्ति मित्र दरिद्र है, जो मित्रता को शक के कारण अस्वीकार कर दे. जीवन का लछ्य सभी इंसानों से प्रेम को बढ़ाते जाना हुआ करता है. ज़रा ज़रा सी बातों को ले के शक और दूरियां पैदा करना इंसानियत का तकाज़ा नहीं. ऐसा मेरा मानना है. आप का विषय अच्छा था इसलिए इतना सब कह गया वरना तो केवल परमात्मा ही बता सकता है कौन क्या है.?.
दिगम्बर नासवा
18/11/2010 at 2:49 अपराह्न
प्रेम दरिद्र – जो बस अपने आप से प्रेम करता है …बहुत सी नवीन परिभाषाएं हैं ..