क्यों न गर्व करें, इस देवरमणभूमि पर जिस के कण कण में अहिंसा व्याप्त है,जहां आकर हिंसाप्रधान संस्कृतियाँ भी स्वयं में दया,करूणा व शांति खोज कर उद्धत करने लगती है।जिस पर कितने भी कुसास्कृतिक आक्रमण हुए पर वह अपनी अहिंसा रूपी जडों से पुनः पल्लवित होकर, गुणों को पुनः उपार्जित कर समृद्ध बन जाती है।
क्यों न गर्व करें, इस आर्यभूमि में प्रकटे धर्मों पर,जिनका यहाँ प्रवर्तन हुआ और सहज पल्ल्वित हुए। वे कल भी सुमार्ग दर्शक थे और आज भी अपनी दिव्य उर्जा से सुमार्ग प्रकाशित बन,मानव को इस दुनिया का श्रेष्ठ, सभ्य और सत्कर्मी मनुष्य बनाए हुए है।
क्यों न गर्व करें, उन धर्म-शास्त्रों पर, जिनमें आज भी जगत के सर्वश्रेष्ठ सद्गुण निष्पन्न करने की शाक्ति है। वे आज भी मानव को सभ्य सुसंस्कृत बनाने का सामर्थ्य रखते है। जो प्रकृति के सद्भावपूर्ण उपयोग का मार्गदर्शन करते है,जो मात्र मानव हित ही नहिं बल्कि समस्त जगत की जीवसृष्टि के अनुकूल जीवन-दर्शन को प्रकाशित करते है।
क्यों न गर्व करें, उन सुधारक महापुरूषों पर, जिनकी प्रखर विचारधारा व सत्यपरख नें समय समय धर्म, समाज और संस्कृति में घुस आई विकृतियों को दूर करने के प्रयास किये। कुरितियां दर्शा कर उन्हे दूर कर, हमारे ज्ञान, दर्शन व आचरण को शुद्ध करते रहे।
सत्य धर्म सदैव हमें सद्गुण सुसंस्कार और सभ्य-जीवन की प्रेरणा देते रहे हैं। असंयम (बुराईयों) के प्रति हमारे अंतरमन में अरूचि अरति पैदा करते रहे हैं। आज हम जो भी सभ्य होने का श्रेय ले रहे है, इन्ही सद्विचारों की देन है। धर्म के प्रति मै तो सदैव कृतज्ञ रहुंगा।
दीपावली की शुभकामनाओं से पहले, देश, धर्म, समाज और संस्कारों के प्रति आभार प्रेषित करना मेरा कर्तव्य है।
उतरोत्तर, मनुष्यजन्म, आर्यक्षेत्र और धर्मश्रवण दुर्लभ है, मै तो कृतज्ञ हूँ, आप………?
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नीरज गोस्वामी
02/11/2010 at 4:02 अपराह्न
दीपावली की शुभकामनाओं से पहले, देश, धर्म, समाज और संस्कारों के प्रति आभार प्रेषित करना मेरा कर्तव्य हैवाह…आपकी भावनाएं स्तुत्य हैं…नीरज
सुज्ञ
02/11/2010 at 5:08 अपराह्न
धन्यवाद, नीरज जी
mindwassup
08/11/2010 at 7:08 अपराह्न
डाक्टर मुo असलम क़ासमीकहते है धर्म मूर्खो के लिए नही होताशायद इसी लिए धरती जनम के इतने साल बाद भी संतो के कुछ चंद नाम ही गिने जा सकते हैजरा इनकी बातो पर गौर फरमाइएये भारत को हिन्दू राष्ट बनाने का विरोध करते है और तर्क क्या देते हैक्या है अश्वमेघ यज्ञ?इस यज्ञ में एक ‘ाक्तिशाली घोड़े को दौड़ा दिया जाता था, जो भीराजा उसको पकड़ लेता उससे युद्ध किया जाता और उसके राज्य को अपने राज्यमें मिला लिया जाता था।प्रश्नयह है कि क्या ‘ाान्तिपूर्ण रह रहे पड़ोसी के क्षेत्र में घोड़ा छोड़करउसे युद्ध पर आमादा करना जायज़ होगा? और ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत परअमल करते हुए ‘ाान्ति से रह रहे पड़ोसी से युद्ध कर के उसके क्षेत्र परकब्ज़ा कर लेना, यह कौन सी नैतिकता होगी? और क्या अन्तर्राष्ट्रीय कानूनइस की अनुमति देगा?ये आर्यावर्त में फैले एक राजपरम्परा थी न की हिन्दू परम्पराइसी तरह अग्रेजो ने नीति चलायी थी की जिस राजा के संतान नही होगी उसको वो अपने राज्य में मिला लेगेदुनिया के हर कोने में इस तरह की परम्परा थीअब इनको क्या लगा की यदि हिन्दू राष्ट हो गया तो भारत का प्रधानमंती एक घोडा छोड़ेगा .जो अगर पकिस्तान या चीन में घुस गयातो वह से हमें लड़ाई करनी पड़ेगेसही मायने में भारत ने आज तक कभी लड़ाई की पहल ही नही की ,सदेव बचाव किया हैलड़ाई सदेव इस्लाम धर्म के ठेकेदार पकिस्तान ने किया है और जो भी इस्लाम राष्ट है उनकी हालत कुत्तो से भी बेबतर हैहा हा हा हा हा हा हा