रचनाकार: अज्ञात
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सद्चरित्र ही घर का आराधना कक्ष है।
सेवा सहयोग ही घर के गलियारे है।
प्रोत्साहन ही घर की सीढियां है।
विनय विवेक घर के झरोखे है।
प्रमुदित सत्कार ही घर का मुख्यद्वार है।
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-मनुस्मृति, अ 4 श्लो 30
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— पाखण्डियों का, निषिद्ध-कर्म करने वालो का, बिल्ली के समान दगाबाज़ों का, बगुले के समान दिखावटी आचार पालने वाले धूर्तों का, शठों का, शास्त्र की विरुद्धार्थ व्याख्या करनें वालों का वचन मात्र से भी सत्कार न करना चाहिए।
(जो अपने हित के लिये धर्म का निषेध करते है, उस विचारधारा का इन पाखण्डियों में समावेश हो जाता है।)
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-प्रतुल वशिष्ठ
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घर |
जा बैठे उद्यान में तो, महक आये फ़ूलों की।
कामीनी की सेज़ बस, कामेच्छा ही जगनी है॥
काजल की कोठरी में, कैसा भी सयाना घुसे।
काली सी एक रेख, निश्चित ही लगनी है॥
कहे कवि ‘सुज्ञ’राज, इतना तो कर विचार।
कायर के संग शूर की, महेच्छा भी भगनी है॥
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भवन्ति नम्रास्तरवः फ़लोदगमैर्नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घना:।अनुद्धता सत्पुरुषा: समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणम्॥
– जैसे फ़ल लगने पर वृक्ष नम्र हो जाते है,जल से भरे मेघ भूमि की ओर झुक जाते है, उसी प्रकार सत्पुरुष समृद्धि पाकर नम्र हो जाते है, परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
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भवन्ति नम्रास्तरवः फ़लोदगमैर्नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घना:।अनुद्धता सत्पुरुषा: समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणम्॥
– जैसे फ़ल लगने पर वृक्ष नम्र हो जाते है,जल से भरे मेघ भूमि की ओर झुक जाते है, उसी प्रकार सत्पुरुष समृद्धि पाकर नम्र हो जाते है, परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
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विचार वेदना की गहराई
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दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय
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ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।
चरित्र विकास
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