ऐसा खोजुं मैं मित्र ब्लॉग जगत में………
- बुद्धु :जिसका अपमान हो और उसके मन को पता भी न चले।
- आलसी : किसी को चोट पहूंचाने के लिये हाथ भी न उठा सके।
- डरपोक : गाली खाकर भी मौन रहे।
- कायर : अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा कर दे।
- मूर्ख : कुछ भी करो, या कहो क्रोध ही न करे।
- कडका : जलसेदार गैरजरूरी खर्च न कर सके।
- जिद्दी : अपने गुणों पर सिद्दत से अड़ा रहे।
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abhishek1502
30/10/2010 at 8:40 अपराह्न
निराला अंदाज ,आप का कुछ भी कहने का अंदाज बहुत निराला है .अगर मैं सोच लू की मैं आप की पोस्ट नही पढूंगा तो मैं निश्चित ही हार जाऊंगा
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
30/10/2010 at 11:58 अपराह्न
सोचना पड़ेगा..
सम्वेदना के स्वर
31/10/2010 at 12:03 पूर्वाह्न
इतनी ईमानदारी कहाँ कि इस पोस्ट में वर्णित किसी भी सम्वर्ग में स्वयम् को वर्गीकृत कर पाऊँ!!
एस.एम.मासूम
31/10/2010 at 2:07 पूर्वाह्न
अरे मित्र 'सुज्ञ' जी ऐसा मित्र मैं भी बहुत दिनों से तलाश रहा था. आज जा के मिला है आप के रूप मैं.
दिगम्बर नासवा
31/10/2010 at 4:25 अपराह्न
आपका कहने का अंदाज़ निराला है … अलग है … बातों में दम है ….
Kunwar Kusumesh
31/10/2010 at 4:45 अपराह्न
इस पोस्ट में नयापन है .अनूठी और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई शायद इसी को innovation कहते हैं.कुँवर कुसुमेश ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com
संगीता स्वरुप ( गीत )
31/10/2010 at 4:47 अपराह्न
क्षमा करने वाला कायर तो नहीं होता …बाकी पर अभी विचार कर रही हूँ
Arvind Mishra
31/10/2010 at 4:58 अपराह्न
मजेदार स्वगत कथन -हा हा !
Gourav Agrawal
01/11/2010 at 3:51 अपराह्न
अगर सूक्ष्म दृष्टि से ना देखें तो सारी बातें सही है , मान गए आपको
Gourav Agrawal
01/11/2010 at 3:55 अपराह्न
और "मूर्ख" शब्द की नयी "ब्लोग जगत परिभाषा" इस ब्लॉग पर आता जाता रहता हूँ और अभी तक फोलो नहीं किया था :))मैं अभी तक मूर्ख था :))
सुज्ञ
01/11/2010 at 4:05 अपराह्न
गौरव जीबस मुझे मिल गया मित्र।
ZEAL
02/11/2010 at 2:11 अपराह्न
.वाह वाह वाह !!!….आज से ही ये सभी दुर्गुण खुद में पैदा करने की कोशिश करुँगी। Smiles !.
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:32 अपराह्न
..बुद्धु : जिसका अपमान हो और उसके मन को पता भी न चले।@ ब्लॉग जगत में फिलहाल इस तरह के बुद्दू नहीं मिलते, नये किस्म के बुद्धिजीवी मिलते हैं जिनका अपमान न भी करो तो भी उन्हें की गयी 'आलोचना' अपमान लगने लगती है. ..
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:32 अपराह्न
..आलसी :किसी को चोट पहुँचाने के लिये हाथ भी न उठा सके।@ इस जगत में ऐसे आलसी कतई नहीं हैं. यहाँ इतने चुस्त लोग हैं कि एक घंटे में १०० ब्लोगों पर 'प्रशंसासूचक' टिप्पणियाँ डाल आते हैं. ..
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:33 अपराह्न
..डरपोक : गाली खाकर भी मौन रहे।@ डरपोक भी कोई नहीं मिलेगा. 'गाली' कुछ असभ्यतासूचक शब्दों में देते हैं तो कुछ पोलिश लगे साहित्यिक शब्दों में. मौन रहने वालों को तो तटस्थ कहते हैं. जो अपनी दुकानदारी चलाने में किसी से भी बिगाड़ना नहीं चाहते. यदि मैंने किसी की गाली का उत्तर प्रतिगाली से दिया तो उसके फोलोअर आगे से हमारे ब्लॉग पर आना छोड़ देंगे…. इस कारण…
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:33 अपराह्न
..कायर : अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा कर दे।@ अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा करने की हिम्मत अभी मैंने नहीं पायी. रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो" इसके दो अर्थ किये जा सकते हैं. पहला अर्थ : क्षमा उस विषैले सर्प को शोभा देती है जो विषैला है. मतलब [सर्प पक्ष से] यदि विषैला सर्प हमें काटने से बक्श दे तो वह क्षमा कहलायेगी. [हमारे पक्ष से] यदि हम विषैले सर्प को मारने से बक्शते हैं तो वह क्षमा कहलायेगा. मतलब शक्तिशाली द्वारा कमज़ोर को बक्शना क्षमा कहलाती है. लेकिन कमज़ोर शक्तिशाली को माफ़ करता है तो वह कायरता कहलायेगी…………. समझे मित्र. ..
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:43 अपराह्न
..मूर्ख : कुछ भी करो, या कहो क्रोध ही न करे।ऐसे मूर्ख भरपूर मात्रा में ढूंढें जा सकते हैं, पारखी नज़र होनी चाहिए बस, जो तटस्थ बने रहने में भलाई मानते हैं. राष्ट्रीय सोच की पोस्टों पर साम्प्रदायिक सोच मढ़कर बचने वाले ब्लोगर आपको पहचानने आने चाहिए. आपको शांतिवादी, कपोत छोडू, अपनी अचकनों पर गुलाब लगाने वाले, मिसेस माउंटबेटन [परपत्नी] के दीवाने से दोस्ती करनी चाहिए…
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:50 अपराह्न
..कडका : जलसेदार ग़ैरजरूरी खर्च न कर सके। @ आप तो वो शर्त रख रहे हैं जो आज़ के समय में हमारी शान के खिलाफ है मैं बिना जलसा किये अपनी बेटी की शादी कैसे कर दूँ. बर्थ-दे तक में मैं केक पर हज़ारों खर्च कर देता हूँ, गुब्बारों से पूरा घर पाट देता हूँ, खाना इतनी मात्रा में बचता है, कि फैकना पड़ता है. और आप उसे ग़ैर ज़रूरी कहते हैं. जाओ नहीं करनी आपसे दोस्ती. ..
प्रतुल वशिष्ठ
13/11/2010 at 9:58 अपराह्न
..जिद्दी : अपने गुणों पर सिद्दत से अडा रहे।भई मैं तो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हूँ. विविधता मेरा गुण है. एक गुण को लेकर अडिग रहना मेरे स्वभाव में नहीं. मैं कविता लिखूँगा, निबंध लिखूँगा, कहानी भी लिखूँगा, आलोचना भी करूँगा. अनुवाद भी कर लेता हूँ चाहे उसके लिये जुगत ही क्यों न करनी पड़े. अरे हाँ, मैं तो नृत्य भी कर लेता हूँ, दरअसल मैं 'एक पाठशाला का गुरु हूँ'. और साथ में मार्शल आर्ट मेरा शौक है. मेरी जिद किसी एक गुण के लिये बावरी नहीं है. हुआ ना कई नौकाओं में एकसाथ सवारी करने वाला…
सुज्ञ
14/11/2010 at 2:34 अपराह्न
प्रतुल जी,अधिसंख्य गुण होना तो अच्छी बात है। और स्पष्ठवादिता भी तो गुण ही है। और उसी पर जिद्दी भी हो, अतः मेरे मित्र ही हुए ना।और 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' वह तो क्षमा के लिये शक्तिशाली को ही शोभा देती है।