- बकरकसाई: बकरे आदि जीवहिंसा करने वाला।
- तकरकसाई: खोटा माप-तोल करने वाला।
- लकरकसाई: वृक्ष वन आदि काटने वाला।
- कलमकसाई: लेखन से अन्य को पीडा पहूँचाने वाला।
- क्रोधकसाई: द्वेष, क्रोध से दूसरों को दुखित करने वाला।
- अहंकसाई: अहंकार से दूसरो को हेय,तुच्छ समझने वाला।
- मायाकसाई: ठगी व कपट से अन्याय करने वाला।
- लोभकसाई: स्वार्थवश लालच करने वाला।
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गिरिजेश राव
29/10/2010 at 9:22 अपराह्न
कलमकसाई बहुत जमा। अभी तो और भी सम्भावनाएँ थीं जैसे देशकसाई, वेशकसाई…
फ़िरदौस ख़ान
29/10/2010 at 9:24 अपराह्न
Nice Post…
Poorviya
29/10/2010 at 9:29 अपराह्न
nam hans raj kam kasai ka .bhai bura mat manana .
अमित शर्मा
29/10/2010 at 9:51 अपराह्न
उल्लेखित आठ प्रकार के कसाइयों में से पहले और तीसरे प्रकार का तो नहीं हूँ, दूसरे नंबर का अपनी तरफ से तो सावधानी है, पर व्यापार में कुछ असावधानी से इनकार नहीं करता हूँ, कलम से भी कभी असावधानी हुयी होगी तो आप सावधान कर दीजिएगा ………………………….बाकी प्रकार के कसाईपने में किसी प्रकार की कमी नहीं है, कोशिश में लगा हूँ की इन नरक द्वारों से जल्द से जल्द दूर हो पाऊं
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
29/10/2010 at 9:58 अपराह्न
वाह!
डॉ॰ मोनिका शर्मा
29/10/2010 at 11:55 अपराह्न
Bahut Badhiya… itni tarah ke kasai…?
संगीता स्वरुप ( गीत )
30/10/2010 at 12:05 पूर्वाह्न
कलमकसाई………….. काश कलम चलाने वाले समझें इस बात को ..
सम्वेदना के स्वर
30/10/2010 at 8:29 पूर्वाह्न
सूक्ष्म अध्ययन! अभी और भी बाकी हैं (बकौल गिरिजेश जी)..
सुज्ञ
30/10/2010 at 1:40 अपराह्न
@गिरिजेश जी,सही सुझाया, ये दोनो तो महाकसाई है। @ nam hans raj kam kasai ka .@पुरविया जी,वाकई भाव पहचान गये,यह कलमकसाई पना तो हुआ ही। @अमित जी,आपकी स्वीकारोक्ति,शब्दशः मेरी भी है, उन चारों के आगमन पर संवर के प्रयास में हूं। @भारतीय नागरिक जी,@डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,आभार आपका।वाह,वाह लेना उद्देश्य नहिं, प्रयास है इन कसाईयों के प्रति अरति पैदा करना। @दीदी,@काश कलम चलाने वाले समझें इस बात को .. हां, बस दीदी सभी चलाने से पहले इस शब्द का स्मरण कर ले। @चैतन्य जी,आभार!!!@@"अभी और भी बाकी हैं"सभी से निवेदन विद्वान पाठक सुझाएँ………
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
30/10/2010 at 3:52 अपराह्न
सुज्ञ जी, ब्लॉग जगत में आजकल 'शब्दकसाई' भी तो हैं।
पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
30/10/2010 at 9:04 अपराह्न
कसाईयों की क्या दुनिया में कमी है….ये तो युग ही कसाईयों का है.
दिगम्बर नासवा
31/10/2010 at 4:27 अपराह्न
अभी तो और भी कई कसाई आयेंगे …. कर्युग है समाज भरा पड़ा है …
Gourav Agrawal
01/11/2010 at 3:57 अपराह्न
कलमकसाई …. वाह वाह वाह