RSS

सपेरों का एक ब्लॉग-माध्यम

26 अक्टूबर

फिरते कितने खेलबाज, यहां झोले रंगाकार लिए।
द्वेषों के है सांप छाब में, क्रोधों की फुफकार लिए।
हाथ उनके टिपण-पात्र है, सिक्कों की झनकार लिए।
परपीड़न का मनोरंजन है, बैचेनी बदकार लिए॥
महाभयंकर नागराज अब, मानव के अनुकूल हुए।
एक नई फुफकार के खातिर, दर्शक भी व्याकुल हुए।
सम्वेदना के फ़ूल ही क्या, भाव सभी बस शूल हुए।
क्या राही क्या दुकानदार सब, खेल में मशगूल हुए॥
___________________________________________
 

टैग: , , ,

23 responses to “सपेरों का एक ब्लॉग-माध्यम

  1. abhishek1502

    26/10/2010 at 6:36 अपराह्न

    अति उत्तम ,सही नब्ज पकड़ी है आप ने आप को इस रचना के लिए बधाई

     
  2. रचना

    26/10/2010 at 7:01 अपराह्न

    wonderful and very true

     
  3. मनोज कुमार

    26/10/2010 at 7:27 अपराह्न

    ग़ज़ब की अभिव्यक्ति। काफ़ी विचारोत्तेजक। आभार।(फ़ुल=फूल)आपकी टिप्पणी बॉक्स में कुछ सम्स्या है। क्या लिखता हूं दिखता नहीं ठीक से)समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया

     
  4. सुज्ञ

    26/10/2010 at 7:36 अपराह्न

    अभिषेक जी,रचना जी,आभार आपका आपने भाव को सही पकडा।मनोज जी,आभार इस सुंदर टिप्पणी के लिये।सुधार के लिये आभार,टिप्पणी बॉक्स तो ठीक काम कर रहा है।

     
  5. सतीश सक्सेना

    26/10/2010 at 8:44 अपराह्न

    यह सच्चाई है यहाँ की …हर चेहरा सपेरे का है ! चेहरे पहचानने आने चाहिए….आपको हार्दिक शुभकामनायें !

     
  6. राजेश उत्‍साही

    26/10/2010 at 8:45 अपराह्न

    सुज्ञ जी कविता भी पढ़ी और चित्र भी देखा । जबरदस्‍त हैं। यहां ब्‍लाग जगत में भी कुछ ऐसा ही लग रहा है कि सपने अपने ब्‍लाग के पिटारे में एक एक सांप रख लिया है। जो कहने को तो शायद दंत विहीन है,पर जब सपेरे का मन होता है उसके दांत वापस लगा देता है और वह उसकी बीन पर जहर उगलने लगता है। चित्र में एक सपेरा साधु का भेष धरे अपनी एक टांग के बल पर सांप को उत्‍तेजित करने का प्रयत्‍न कर रहा है, हालांकि वह जानता है कि सांप दंत विहीन है इसलिए कुछ नहीं करेगा। लेकिन अगर वह दंत विहीन न हो तो शायद उससे भागते भी नहीं बने। पीछे खड़ी भीड़ भी बस मजा लेने के मूड में है लेकिन नहीं जानती कि अगर सांप पिटारे से निकला तो सबको भागना ही पड़ेगा। ब्‍लाग जगत पर जिस तरह से आजकल ब्‍लागर अपना खेल दिखा रहे हैं वह भी कुछ इसी तरह का चित्र उपस्‍िथत कर रहा है।

     
  7. जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar

    26/10/2010 at 9:22 अपराह्न

    सुज्ञ जी,‘परपीडन का मनोरंजन है’यहाँ 'Stop cruelty against animals' के उद्‌घोष की याद दिलाती है यह पंक्ति। ‘महाभयंकर नागराज अब, मानव के अनुकूल हुए।’यहाँ तो राष्ट्रकवि दिनकर जी की वे पंक्तियाँ याद आ गयीं कि- "रे अश्वसेन! तेरी वंशज…."‘सम्वेदना के फ़ूल ही क्या, भाव सभी बस शूल हुए।’यह चित्र यथार्थपरक है…बधाई!सुज्ञ जी, इस सबसे इतर, कुछ जगहों पर मुद्रण-दोष रह गये हैं। यथा-‘फ़ूफ़कार’‘फ़ुफ़्कार’‘फ़िरते’ ‘कितने’‘छाब’‘नईं’‘फ़ूल’‘परपीडन’‘मशगूल’ आदि।________________________________यदि आप अनुमति दें, तो इस संदर्भ में ‘शुद्ध भाषा-लेखन’ पर एक आलेख अपने ब्लॉग पर लिखूँ।एक बात और… यदि हम-आप एक-दूसरे की सिर्फ़ प्रशंसा ही करते रहे एवं ग़लतियों पर ध्यानाकर्षण नहीं कराया,तो फिर कुछ सीखने को कहाँ मिलेगा… हमे आपसे और आपको दूसरों से? है कि नहीं..?

     
  8. Arvind Mishra

    26/10/2010 at 9:26 अपराह्न

    नाग नागिनों और उस्तादों का टिपियाना शुरू हो चुका है -अंत में बताईयेगा कितने सांप कितने नाग कितनी नागिनियाँ और कितने उस्ताद यहाँ नमूदार हुए और कितनी केंचुले बदली गयीं !सीधे हो सुज्ञ ….और मेरी पोस्ट का इस्तेमाल अपने केवल अपनी इस पोस्ट को प्रोमोट करने के लिए किया ..यह आचारानुकूल नहीं भाई ! आगे से ध्यान रखियेगा !

     
  9. जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar

    26/10/2010 at 9:27 अपराह्न

    ऊपर मेरे उद्धरण में " रे अश्वसेन, तेरे वंशज…" पढ़ा जाय ‘तेरी’ नहीं। धन्यवाद!

     
  10. ZEAL

    26/10/2010 at 9:51 अपराह्न

    .प्रभावशाली प्रस्तुति। .

     
  11. महेन्द्र मिश्र

    26/10/2010 at 10:00 अपराह्न

    वाह बहुत बढ़िया रचना …..

     
  12. डॉ॰ मोनिका शर्मा

    26/10/2010 at 10:21 अपराह्न

    परपीडन का मनोरंजन है, बैचेनी बदकार लिए॥—————————————कमाल की सोच….. हर शब्द विचारणीय है….

     
  13. सम्वेदना के स्वर

    26/10/2010 at 10:51 अपराह्न

    हंसराज जी! आप सुज्ञ हैं!! इसलिए आपने जो लाइनें लिखी हैं, उनपर मेरा साधुवाद स्वीकार करें… रही बात बिटविन द लाइंस पढने की तो वो तो हमें पढना ही नहीं आता!

     
  14. anshumala

    27/10/2010 at 12:10 पूर्वाह्न

    सही कहा जगत में सभी बस परपीड़ा से अपना मनोरंजन ही कर रहे है |

     
  15. निरंजन मिश्र (अनाम)

    27/10/2010 at 1:17 पूर्वाह्न

    वाह! सुज्ञ जी, क्या खूब जोरदार रचना है!उम्दा प्रस्तुति!

     
  16. Udan Tashtari

    27/10/2010 at 7:52 पूर्वाह्न

    बहुत जानदार!

     
  17. डा० अमर कुमार

    27/10/2010 at 11:17 पूर्वाह्न

    हम तो ब्लॉगिंग को ज़हरमोहरा मानते आये थे,हाँ, अब लगता है कि, आप ही सही हो.. मैं गलत था ।

     
  18. प्रतुल वशिष्ठ

    27/10/2010 at 12:22 अपराह्न

    .जब मजमा लगता है तो सभी आ खड़े होते है. मनोरंजन करना दबे-छिपे रूप में ही सही हमारे स्वभाव में ही है. क्या राहगीर क्या दुकानदार, क्या टिप्पणीकर्ता क्या पोस्ट-मास्टर, क्या विचारक क्या विचार से रंक,……. सब के सब ईर्ष्या-द्वेष वाले 'सपेरे के खेल' में नज़रें गढ़ाए दिखते हैं. .

     
  19. पं.डी.के.शर्मा"वत्स"

    27/10/2010 at 1:29 अपराह्न

    ब्लागजगत की हकीकत को ब्याँ करती रचना……..हर चेहरे पर नकाब दर नकाब दर नकाब…

     
  20. mridula pradhan

    27/10/2010 at 3:03 अपराह्न

    bahot achchi lagi.

     
  21. संगीता स्वरुप ( गीत )

    28/10/2010 at 4:31 अपराह्न

    यह रचना इंसान की फितरत को बता रही है ….यह केवल ब्लॉग जगत की बात नहीं समस्त जग की बात है ..

     
  22. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन

    23/10/2011 at 1:02 पूर्वाह्न

    सुज्ञ जी, आप तो पहुँचे हुए कवि हैं। शुभकामनायें!

     
  23. shilpa mehta

    03/12/2011 at 5:31 अपराह्न

    sad

     

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

 
गहराना

विचार वेदना की गहराई

॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

दृष्टिकोण

दुनिया और ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर हितेन्द्र अनंत की राय

मल्हार Malhar

पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on

मानसिक हलचल

ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।

सुज्ञ

चरित्र विकास

WordPress.com

WordPress.com is the best place for your personal blog or business site.

हिंदीज़ेन : HindiZen

जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी

WordPress.com News

The latest news on WordPress.com and the WordPress community.

%d bloggers like this: