_____________________________________________________________________________
चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं
26
अक्टूबर
॥लक्ष्य॥
लक्ष्य है उँचा हमारा, हम विजय के गीत गाएँ।
चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं॥
तेज सूरज सा लिए हम, ,शुभ्रता शशि सी लिए हम।
पवन सा गति वेग लेकर, चरण यह आगे बढाएँ॥
हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
हो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥
हम अभय निर्मल निरामय, हैं अटल जैसे हिमालय।
हर कठिन जीवन घडी में फ़ूल बन हम मुस्कराएँ॥
हे प्रभु पा धर्म तेरा, हो गया अब नव सवेरा।
प्राण का भी अर्ध्य देकर, मृत्यु से अमरत्व पाएँ॥
-रचनाकार: अज्ञात
मनोज कुमार
26/10/2010 at 6:57 अपराह्न
सुंदर भाव को प्रस्तुत करती रचना।समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया
ZEAL
26/10/2010 at 9:17 अपराह्न
Very inspiring and motivating creation.
ajit gupta
28/10/2010 at 6:12 अपराह्न
बहुत अच्छी प्रार्थना, शुभकामनाएं।