दानं प्रियवाक्सहितं, ज्ञानमगर्व क्षमान्वितं शौर्यम्।
वित्तं त्यागनियुक्तं, दुर्लभमेतच्च्तुष्ट्यं लोके॥
–विष्णुश्रम
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अर्थ:
प्रियवचन सहित दान, गर्व रहित ज्ञान, क्षमा युक्त शौर्य, त्याग सहित धन। लोक में यह चार बातें बडी दुर्लभ है।
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शास्त्र-विवेचन
1-शास्त्रों का अध्यन, शास्त्र के मूल आशय को समझने के लिये निराग्रह मनस्थिति होनी चाहिए।
2-शास्त्रकारों का अभिप्राय समझकर, उसी दृष्टि से अर्थ और भावार्थ करना चाहिए।
3-जो विषय बुद्धिग्राह्य न हो, उसे सही परिपेक्ष में समझने का प्रयास होना चाहिए, व्यर्थ उपहास नहिं करना चाहिए।
“विचार विमर्श, चर्चा आदि तो धर्म-शास्त्रार्थ के ही अंग है, संशय-समाधान दर्शन-मंथन में आवश्यक तत्व है।
बिना जाने ही तथ्य खारिज करना मिथ्यात्व का लक्षण है। और यहां मिथ्यात्वी ही पाखण्डी माना गया है।“
धर्म-तत्व में मूढता, संसार तर्क में शूर।
कर्म-बंध के कारकों पर, गारव और गरूर?
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VICHAAR SHOONYA
22/10/2010 at 10:37 अपराह्न
बिलकुल सत्य कहा है.