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नम्रता

16 अक्टूबर
भवन्ति नम्रास्तरवः फ़लोदगमैर्नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घना:।
अनुद्धता  सत्पुरुषा: समृद्धिभिः  स्वभाव एवैष परोपकारिणम्॥
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– जैसे फ़ल लगने पर वृक्ष नम्र हो जाते है,जल से भरे मेघ भूमि की ओर झुक जाते है, उसी प्रकार सत्पुरुष  समृद्धि पाकर नम्र हो जाते है, परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
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3 responses to “नम्रता

  1. अनामिका की सदायें ......

    16/10/2010 at 10:37 अपराह्न

    आभार.

     
  2. M VERMA

    17/10/2010 at 4:51 पूर्वाह्न

    साधुवाद सुन्दर विचार के लिये

     
  3. पं.डी.के.शर्मा"वत्स"

    17/10/2010 at 8:47 अपराह्न

    आहा! क्या सुन्दर विचार हैं….आभार्!

     

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प्रयागराज और वाराणसी के बीच गंगा नदी के समीप ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।

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