* प्रतिशोध लेने का आनंद मात्र एक दिन का होता है, जबकि क्षमा करने का गौरव सदा बना रहता है।
* सच्ची क्षमा समस्त ग्रंथियों को विदीर्ण करने का सामर्थ्य रखती है।
* हर परिस्थिति में स्वयं को संयोजित संतुलित रखना भी क्षमा ही है।
* क्षमा देने व क्षमा प्राप्त करने का सामर्थ्य उसी में है जो आत्म निरिक्षण कर सकता है
* क्षमापना आत्म शुद्धि का प्रवाहमान अनुष्ठान है, सौम्यता, विनयसरलता, नम्रता शुद्ध आत्म में स्थापित होती है।
अनामिका की सदायें ......
20/09/2010 at 12:05 पूर्वाह्न
उच्च विचार.आभार.
संगीता स्वरुप ( गीत )
02/10/2010 at 3:19 अपराह्न
उत्तम विचार